संकर्षण की आभा से दमक उठा ब्रजमंडल
गोवर्धन (मथुरा): ब्रजमंडल ने दक्षिण को तिरुपति के रूप में दाऊ दिए तो दक्षिण के कला कौशल ने ब्र
गोवर्धन (मथुरा): ब्रजमंडल ने दक्षिण को तिरुपति के रूप में दाऊ दिए तो दक्षिण के कला कौशल ने ब्रजमंडल को उन्हें भगवान संकर्षण की मूरत के रूप में साकार कर दिव्यस्थली को समर्पित कर दिया। साढ़े पांच हजार वर्ष के इतिहास में पहली बार उत्तर और दक्षिण के कृष्णभक्त द्वापरयुग के प्रेमभरे लम्हों को जीवंत करेंगे। परिक्रमा मार्ग में आन्यौर के संकर्षण कुंड में स्थित भगवान बलभद्र की विशाल प्रतिमा का अनावरण के बाद जलाभिषेक किया जाएगा। तीन से पांच अक्टूबर तक चलने वाले आयोजन में देशभर से कृष्णभक्त शामिल होंगे।
महोत्सव का आयोजन संकर्षण कुंड का जीर्णोद्धार कराने वाली संस्था द ब्रज फाउंडेशन करा रही है। संस्था के संस्थापक अध्यक्ष विनीत नारायण के नेतृत्व में उनकी टीम ने ब्रजभूमि की दर्जनों लीलास्थलियों को विश्वस्तरीय रूप में सजा-संवारा है। महोत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष व जीएलए विश्वविद्यालय के कुलाधिपति नारायणदास अग्रवाल ने बताया कि तीन दिवसीय कार्यक्रम में कई अनुष्ठान, विभिन्न द्रव्यों से महाभिषेक, भजन, प्रवचन व रासनृत्य आदि की प्रस्तुतियां होंगी।
स्वागत समिति के अध्यक्ष व गोवर्धन से विधायक ठा. का¨रदा ¨सह ने बताया कि तीन अक्टूबर सुबह से ही सैकड़ों ब्रजवासी व ग्राम प्रधान संकर्षण भगवान के विशाल विग्रह का जलाभिषेक करेंगे। विनीत नारायण कहते हैं कि 'दुनिया के गुरु सन्यासी, सन्यासी के गुरु ब्रजवासी', इसलिए इस ऐतिहासिक महोत्सव में हमने सबसे पहले ब्रजवासियों को अभिषेक के लिए आमंत्रित किया है। श्री चिन्ना जीयार स्वामी और उनका परिवार इस अवसर पर गोवर्धन में चार दिन तक प्रवास करेंगे। सभी अनुष्ठान उन्हीं के निर्देशन में होंगे।
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इतिहास के झरोखों से संकर्षण कुंड
परिक्रमा मार्ग स्थित संकर्षण कुंड ब्रज के महत्वपूर्ण पौराणिक तीर्थस्थलों में से एक है। पास में ही दाऊजी का एक प्राचीन मंदिर भी है। इन्हें यहां पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने विराजमान किया था। यहां स्थापित विग्रह इसी कुंड में प्रकट हुआ था, जिसका वर्णन पुराणों में भी है। संकर्षण भगवान को ही दाऊजी, बलराम और बलभद्र के नाम से जाना जाता है।
कैसे हुआ इसका जीर्णोद्धार
यह दिव्य कुंड दूषित जल और भारी कूड़े-करकट से अट गया था। इसकी दुर्गध के चलते परिक्रमार्थियों को नाक पर रूमाल रखकर निकलना पड़ता था। गांव आन्यौर के लोगों ने वर्ष 2011 में द ब्रज फाउंडेशन से इसके जीर्णोद्धार की मांग की थी। द ब्रज फाउंडेशन ने एक अक्टूबर, 2012 को इसका जीर्णोद्धार श्रीश्रीश्री त्रिदंडी श्रीमन्नारायण रामानुजा चिन्ना जीयार स्वामीजी के कर कमलों से शुरू कराया था। अब यह कार्य पूर्ण हुआ, तो इसका भव्य रूप निखर आया है। अब गिरिराज जी के परिक्रमार्थी संकर्षण कुंड के द्वार पर स्थापित जय-विजय के विग्रह, पृष्ठभूमि में दाऊजी महाराज के विग्रह और उनके पीछे उन्नत भाल लिए गिरिराज महाराज का अपलक दर्शन करते हैैं।
ऐसे स्थापित हुई मूर्ति
मूर्ति के लिए 12 फीट ऊंचा पोडियम बनाया है। 24 फीट ऊंची मूर्ति की स्थापना के बाद जमीन से कुल ऊंचाई 36 फीट हो गई है। पोडियम जमीन के भीतर 11 मीटर यानि लगभग 40 फीट गहरा रखा है। मूर्ति तैयार करने के लिए 50 टन के पत्थर को पर्वत श्रृंखला से क्रेनों के माध्यम से ट्रेलरों पर हैदराबाद की शिल्पशाला तक लाया था। तराशने के बाद मूर्ति का वजन 23 टन है।
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