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    Maharas की लीला, जिसे देखने के लिए ठहरा था समय, भगवान शिव बने सखी, इसके बाद कान्हा को कहने लगे रास बिहारी

    By Abhishek SaxenaEdited By: Abhishek Saxena
    Updated: Mon, 26 Jun 2023 02:44 PM (IST)

    Maharas In Mathura Maharas सौभाग्य मद के बाद अंतर्ध्यान हुए श्रीकृष्ण को बुलाने के लिए गोपियों ने करुण गीत गाए। गोपियों की वेदना के बाद ही श्रीकृष्ण ने गोपियों की संख्या के अनुरूप स्वरूप प्रकट कर धवल चांदनी में महारास किया। इस महारास को देखने के लिए देवता धरती पर विभिन्न रूप रखकर आए थे ऐसा प्रचलित है। मथुरा में आज भी महारास की लीला जीवंत है।

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    Maharas: श्रीकृष्ण ने गोपियों की संख्या के अनुरूप स्वरूप प्रकट कर धवल चांदनी में महारास किया।

    मथुरा, डिजिटल टीम। कान्हा का गोपियों से संग रास की कथाओं से धार्मिक पुस्तकें भरी पड़ी हैं। लेकिन महारास को उनकी लीलाओं में एक बार ही परिभाषित किया गया है। क्योंकि प्रत्येक गोपी की इच्छा थी कि शरद पूर्णिमा पर धवल चांदनी में प्रभु सिर्फ उसके साथ नृत्य करें।

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    श्रीकृष्ण ने गोपियों की गिनती के अनुसार ही रूप धारण किए और सभी को अपने साथ रास करने का सौभाग्य दिया। इसलिए कान्हा का नाम रास बिहारी और चंद्रमा की धवल चांदनी में रास के कारण चंद्र बिहारी पड़ा। इसलिए बाकी सभी लीलाओं को रास का नाम दिया जाता है, जबकि इस लीला को महारास की पदवी प्राप्त है।

    महारास की दिव्यता देखकर ठहर गया था समय

    महारास की दिव्यता को देखकर समय ठहर गया था। छह महीने तक चंद्रमा अपने स्थान पर एकटक महारास को निहारते रहे। गर्ग संहिता में चंद्र सरोवर का विशेष महात्म्य बताया गया है। महारास होने के कारण इसे महारास स्थल तथा स्थानीय लोगों की भाषा में महारास चबूतरा कहा जाता है।

    भगवान शिव को लौटाया तो रखा सखी का रूप

    भगवान श्रीकृष्ण के महारास को देखने के लिए भगवान शिव भी आए। मगर, उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि यहां सिर्फ गोपियां ही शामिल हो सकती हैं। इस पर भगवान शिव ने सखी का रूप धारण कर लिया। भगवान शिव का यही रूप गोपेश्वर कहलाया।

    बलदाऊ बने शेर

    बलदाऊ कान्हा से बड़े होने के कारण महारास में शामिल हो नहीं सकते थे। इसीलिए गोवर्धन पर्वत के ऊपर खड़े होकर महारास का दर्शन करने लगे। इसी दौरान किसी गोपी की नजर पड़ी। गोपियां जैसे ही देखने लगी तो बलदाऊ शेर का स्वरूप धारण कर बैठ गए। यह भी मान्यता है कि नारद जी महारास की लीला को देखने को इतने उत्सुक थे कि गोपी बनकर लीला में प्रवेश कर गए।

    ये भी है खासियत

    भगवान रास बिहारी और चंद्र सरोवर के दर्शन हैं। महारास स्थली का रास चबूतरा है। समीप ही सूरदास जी की साधना स्थली और समाधि स्थल है। गो सेवक संत ठाकुर दास जी की साधना स्थली है। बल्लाभाचार्य जी की बैठक है।

    ऐसे पहुंचें

    परासौली जिला मुख्यालय से करीब 23 किमी और गोवर्धन से दो किमी दूरी पर स्थित है। गोवर्धन से निजी वाहन अथवा टेंपो से पहुंचा जा सकता है। महारास की भूमि अष्टाछाप के महाकवि सूरदास जी की साधना स्थली भी है। भूमि की साधना और स्पर्श से प्रभु की लीला के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता है।  

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