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    Holi: एक-दूसरे को गुलाल लगाया, फिर नृत्य कर खो बैठीं सुध-बुध; होली ने भरे विधवा माताओं के जीवन में खुशियों के रंग

    Holi 2025 वृंदावन के कृष्णा कुटीर महिला आश्रय सदन में होली के रंग में सराबोर हुईं विधवा माताएं। फूलों की होली से शुरू हुआ रंगों का सिलसिला देर तक चलता रहा। एक-दूसरे को रंग लगाते हुए विधवा माताएं अपनी सुध-बुध खो बैठीं। होली के गीतों और नृत्यों ने माहौल को खुशनुमा बना दिया। ये माताएं पश्चिम बंगाल की रहने वाली थीं।

    By Vipin Parashar Edited By: Abhishek Saxena Updated: Wed, 12 Mar 2025 11:42 AM (IST)
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    Holi 2025: कृष्णा कुटीर महिला आश्रय सदन में हुई होली में विधवा माताओं ने खेली होली

    संवाद सहयोगी, जागरण, वृंदावन। Holi 2025: यह उन माताओं के लिए खुशी के पल थे, जो अपनों से दूर आश्रय सदनों में जिंदगी गुजार रही हैं। विधवा माताओं की इस बेरंग जिंदगी में कोई है तो बस सांवले कन्हैया। मंगलवार को माताओं ने राधाकृष्ण के स्वरूपों संग फूलों की होली खेली, तो सुध-बुध खो बैठीं। फिर रसिया गायन पर एक-दूसरे को स्नेह का रंग लगाया, तो मानों नीरज जिंदगी में खुशियों के रंग भर गए।

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    नगला रामताल स्थित कृष्णा कुटीर महिला आश्रय सदन में मंगलवार को आयोजित होली महोत्सव में होली के गीत और नृत्य के प्रदर्शन के बीच होली का उल्लास घंटों चला। जिन विधवा माताओं का परिवेश सफेद साड़ी में था, वह त्योहार मनाने के लिए एक-दूसरे पर रंग बिखेरती रहीं।

    कृष्णा कुटीर महिला आश्रय सदन में हुई होली में विधवा माताओं ने खेली होली

    इन माताओं में ज्यादातर पश्चिम बंगाल की मूल निवासी हैं, उन्होंने एक-दूसरे पर फूलों की पंखुड़ियां फेंकी और रंग लगाया। नृत्य किया और कृष्ण भजन, होली गीत गाए। फूलों की होली के बाद शुरू हुई रंगों की होली। रंगों से एक-दूसरे को सराबोर किया। चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि वह कह रही हैं कि इससे अधिक खुशी कुछ भी नहीं। करीब 70 वर्ष की उम्र पार कर चुकी राधा दासी के लिए यह बड़ा उत्सव था,साथी कुंती मां और कमला दासी को रंग लगाया और बोलीं, सखी आओ री खेलो होरी।

    वृंदावन के समीप नगला रामताल के कृष्णा कुटीर महिला आश्रय सदन में मंगलवार को हुई होली में भगवान श्रीराधाकृष्ण के स्वरूपों संग फूलों की होली खेलतीं विधवा माताएं।

    एक-दूसरे को गुलाल लगाया, फिर नृत्य कर खो बैठीं सुध-बुध

    होली का आनंद दूर से कुर्सियों पर बैठ बैकुंठी देवी ले रही थीं। होली क्यों नहीं खेल रही, बोलीं, कौन न खेलना चाहेगा, लेकिन हमारे पैर काम नहीं करते। सखियों को खुश देख रही हूं तो खुशी में हमारी आंखें भी नम हो गईं। हां, साथियों का उत्साहवर्धन तालियां बजाकर किया। सदन संचालिका शिल्पा मुमगई ने कहा होली में विधवाओं कि भागीदारी रूढ़िवादी परंपरा से एक विराम का प्रतीक है, जो एक विधवा को रंगीन साड़ी पहनने से भी मना कर रही थीं।

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