Hariyali Teej 2024: बांकेबिहारी के तीज पर विशेष दर्शन; 20 KG सोना, एक कुंतल चांदी के हिंडोला में झूलेंगे
Hariyali Teej 2024 Banke Bihari Mandir Vrindavan ठाकुर बांकेबिहारी को प्रेम की डोर से हिंडोले में झुलाने को देश दुनिया के भक्त पूरे साल इंतजार करते हैं। साल में एक ही दिन आराध्य बांकेबिहारी दिव्य और भव्य स्वर्ण-रजत हिंडोला में विराजित होकर भक्तों को दर्शन देते हैं। ऐसे में लाखों श्रद्धालु आराध्य के विलक्षण दर्शन को वृंदावन पहुंचेंगे। सात अगस्त को हरियाली तीज है।
संवाद सहयोगी, जागरण, वृंदावन। Hariyali Teej Banke Bihari Mandir: हरियाली तीज सात अगस्त को ठा. बांकेबिहारी बेशकीमती स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगे। ठा. बांकेबिहारीजी साल में एक ही दिन हिंडोले में दर्शन देते हैं।
मंदिर के करीब 162 साल के इतिहास में शुरूआती दौर में साधारण हिंडोले में ठाकुरजी भक्तों को दर्शन देते थे। लेकिन बांकेबिहारी के भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने परिवार के सहयोगियों संग ठाकुरजी का दिव्य स्वर्ण-रजत हिंडोला तैयार करवाया। इसके लिए नेपाल के टनकपुर के जंगल से लकड़ियों का इंतजाम करवाया। इसके ऊपर सोने और चांदी की परत से नक्कासी करवाई। जो अद्भुत है।
15 अगस्त 1947 को पहलीबार दिए थे दर्शन
स्वर्ण-रजत इस हिंडोले में पहली बार जब आराध्य बांकेबिहारीजी ने दर्शन दिए, उसी दिन 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था। करीब 77 साल पहले 15 अगस्त के दिन ही वृंदावन के ठा. बांकेबिहारी मंदिर में सावन मास में भगवान को झुलाने को सोने-चांदी के झूला (हिंडोला) मंदिर को समर्पित किया था।
मूलरूप से कोलकाता निवासी और ठाकुरजी के अनन्य भक्त सेठ हर गुलाल बेरीवाला ने स्वर्ण-रजत हिंडोला मंदिर प्रशासन को भेंट किया था।
दर्शन के लिए पहुंचे श्रद्धालु।
सौ करोड़ की कीमत का है हिंडोला
मंदिर सेवायत प्रह्लादवल्लभ गोस्वामी बताते हैं करीब 125 अलग-अलग भागों में तैयार हिंडोला नक्काशी कला का बेजोड़ प्रमाण है। हिंडोला तैयार करने के लिए करीब 25 लाख रुपये ख़र्च हुए। जिसकी वर्तमान कीमत करीब सौ करोड़ रुपये आंकी जाती है। पहले ये हिंडोला केवल शाम को सजाया जाता था। लेकिन, वर्ष 2015-16 में प्रयागराज उच्च न्यायालय के आदेश पर सुबह से शाम तक ठाकुरजी स्वर्ण-रजत हिंडोला में भक्तों को दर्शन देते हैं।
20 किलो सोना, एक कुंतल चांदी से पांच साल में तैयार हुआ हिंडोला
सेठ हर गुलाल के वंशज राधेश्याम बेरीवाला बताते हैं, कि सेठ हरगुलाल बेरीवाला ठाकुर बांकेबिहारीजी के परम भक्त थे और उनके दर्शन किए बिना अन्न का दाना भी स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने बताया उस जमाने में सोने-चांदी के हिंडोले बनवाने में 20 किलो सोना व करीब एक कुंतल चांदी प्रयोग की गई थी तथा हिंडोलों के निर्माण में 25 लाख रुपए की लागत आई थी। हिंडोले 1942 से बनना शुरू हुआ और 1947 में तैयार हुआ।
बनारस के कारीगरों ने बनाया था हिंडोला
हिंडोलों के लिए बनारस के प्रसिद्ध कारीगर लल्लन व बाबूलाल को बुलाया गया था। जिन्होंने नेपाल के टनकपुर के जंगलों से शीशम की लकड़ी मंगवाई। इस लकड़ी को कटवाने के बाद पहले दो साल तक सुखाया गया, फिर हिंडोलों के निर्माण का कार्य शुरु किया गया। इसके लिए बीस उत्कृष्ट कारीगरों ने लगभग पांच वर्ष तक कार्य किया। तब जाकर हिंडोलों का निर्माण संभव हो पाया। हिंडोले के ढांचे के निर्माण के पश्चात उस पर सोने व चांदी के पत्र चढ़ाए गए।
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बेहद आकर्षण है हिंडोला
सेठ हरगुलाल ने इसी प्रकार का झूला बरसाना के लाड़िली जी मंदिर के लिए भी बनवाया। झूले के निर्माण के लिए कनकपुर के जंगल से शीशम की लकड़ियां मंगाई गईं। इस तरह का झूला संपूर्ण विश्व में कहीं नहीं है। स्वर्ण हिंडोले के अलग-अलग कुल 130 भाग हैं। साथ ही हिंडोले के साथ में चार मानव कद की सखियां भी मौजूद हैं। स्वर्ण-रजत झूले का मुख्य आकर्षण फूल-पत्तियों के बेल-बूटे, हाथी-मोर आदि बने हुए हैं।