Govardhan Puja 2022: ब्रज में गोवर्धन पूजा की धूम, छबरिया भर से अन्नकूट से सुशोभित हुए गिर्राजजी महाराज
Govardhan Puja 2022 श्री गोवर्धन महाराज तेरे माथे मुकुट विराज रह्यौ। पर्वतराज गोवर्धन के आंगन में फिर जीवंत हुई द्वापर युगीन परंपरा। गिरिराजजी की पूजा कर समर्पित किया अन्नकूट। कृष्णकाल के गवाह हैं गिरिराजजी। हजारों देशी- विदेशी भक्तों ने सिर पर रखी प्रसाद की छबिरया।

मथुरा, रसिक शर्मा। अद्वितीय सौंदर्य, अद्भुत दिव्यता, अकल्पनीय श्रद्धा का प्रवाह, भक्ति में भव्यता का गजब समावेश, अलौकिक नजारा । गिरिराजजी यानी गोवर्धन महाराज के वैभव के आगे उपमाओं के ये कसीदे भी छोटे नजर आए। गिरिराज प्रभु के आंगन में भारतीय परिधान में सजी विदेशी संस्कृति भी सात कोस वारे का गुणगान करती रही। दुनिया भर का वैभव गोवर्धन में सिमट कर रह गया। गिरिराजजी की शिलाओं पर सुबह करीब साढ़े चार बजे एक बार दूध का अभिषेक शुरू हुआ तो धार ने देर शाम तक रुकने का नाम ही नहीं लिया। भक्तों ने सिर पर छाबरिया रखकर अन्नकूट प्रसाद प्रभु को समर्पित किया। बुधवार को गोवर्धन पूजा महोत्सव अपनी दिव्यता में समाहित भव्यता के कारण धार्मिक इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया।
सिर पर प्रसाद की छबिरया लेकर दानघाटी मंदिर की ओर बढ़ते श्रद्धालु।
गोवर्धन में उमड़ा भक्तों का सैलाब
बेतादाद श्रद्धा के अनवरत बहते सैलाब से तलहटी, कलियुग के देव गोवर्धन महाराज का वैभव देख मुस्कराती रही। समूचा ब्रज मंडल अपने देव का यशोगान करता रहा। परिक्रमा मार्ग में भजनों की धुनों पर नृत्य करते भक्त बेसुध होकर झूमते हुए परिक्रमा लगाने लगे। गौड़िय भक्तों ने वन महाराज के सानिध्य में आन्यौर परिक्रमा में गिरिराजजी का दूध आदि से पंचामृत अभिषेक कर अन्नकूट भोग समर्पित किया। स्थानीय पुरोहित नीरज शर्मा ने वेद मंत्रोच्चारण कर पूजा संपन्न कराई। राधाकुंड मार्ग स्थित गौडीय मठ से भी तमाम भक्त छबरिया लेकर भोग लगाने पहुंचे। इतिहास में अंकित आन्यौर का अन्नकूट स्थल आज फिर द्वापर युगीन परंपरा का गवाह बना। ब्रज निष्ठ संत कन्हैया बाबा के सानिध्य में नंदगांव बरसाना गोवर्धन आन्यौर जतीपुरा राधाकुंड परासौली के ब्रजवासी अपने अपने घरों से विभिन्न कच्चे पक्के पकवान लेकर पहुंचे और गिरिराजजी को अन्नकूट प्रसाद समर्पित किया। शाम की बेला में प्रसिद्ध मुकुट मुखाबिंद मंदिर पर सेवायत राज कुमार शर्मा राजू ठेकेदार, श्याम मास्टर, छलिया, रिसीवर उमाकांत चतुर्वेदी ने प्रभु को अन्नकूट प्रसाद समर्पित किया। हरदेव मंदिर पर गोस्वामी समाज ने अन्नकूट महोत्सव को भव्यता प्रदान की। दानघाटी मंदिर पर सेवायत मथुरा दास कौशिक ने अन्नकूट समर्पित किया। मुकुट मुखारविंद मंदिर सेवायत समाज ने भी प्रभु को अन्नकूट भोग समर्पित किया।
सिर पर प्रसाद की छबरिया लेकर चलती विदेशी भक्त।
यूं मनाया गया अन्नकूट महोत्सव
अन्नकूट महोत्सव के दिन सुबह गिरिराज प्रभु का दुग्धाभिषेक हुआ।शाम कोअन्नकूट का भोग समर्पित किया गया। इसमें कई तरह की सब्जियां, मिष्ठान, कड़ी, चावल, बाजरा, रोटी, पूआ, पूरी, पकौड़ी, खीर, माखन मिश्री आदि होते हैं। गोवर्धन गिरिराज जी के साथ अग्नि, वृक्ष, जलदेवता, गोमाता सभी देवों की आराधना की गई।
धार्मिक इतिहास के झरोखे से गोवर्धन पूजा
समूचे ब्रज मंडल के घर- घर में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट कृष्ण कालीन समय से चली आ रही धार्मिक परंपरा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार करीब पांच हजार वर्ष पूर्व कान्हा ने देवताओं के राजा इंद्र की पूजा छुड़वाकर गिरिराज महाराज की पूजा कराई। ग्वालों की टोली के संग कान्हा ने दीपावली पर सप्तकोसीय परिक्रमा लगाकर दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की। इंद्र ने मेघ मालाओं को ब्रज भूमि को बहाने का आदेश सुना दिया। मेघों की गर्जना सुन ब्रजवासी घवरा गए। ब्रज वासियों की करुण पुकार सुन सात बरस के कन्हैया ने सात दिन सात रात तक सात कोस गिरिराज को अपने बाएं हाथ की कनिष्ठ उंगली पर धारण कर इंद्र का मान मर्दन किया और ब्रज वासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया। गिरिराज पूजा में इतना दूध चढ़ाया गया कि ब्रज की नालियां दूध से भर गई। पूजन के पश्चात अन्नकूट का प्रसाद लगाया गया। तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है। मान्यता के अनुसार दीपावली के दिन भगवान श्री कृष्ण ने नंदगाव से आकर गोवर्धन की सप्तकोसीय परिक्रमा लगाई थी ।
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