ShriKrishna Janambhoomi Case: केशवदेव मंदिर की भव्यता के कायल थे विदेशी यात्री, ऊंचाई और भव्यता से थे प्रभावित
Mathura News श्रीकृष्ण जन्मस्थान-शाही मस्जिद ईदगाह विवाद। फ्रांस और इटली के यात्रियों ने यात्रा वृतांत में किया मंदिर की सुंदरता का जिक्र। आज जन्मभूमि प्रकरण अदालत में है और यहां सुनवाई का दौर चल रहा है। अदालत में दस से अधिक वाद दायर हैं।
मथुरा, जागरण संवाददाता। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर आज जितना भव्य मंदिर बना है, उससे भी अधिक भव्य मंदिर 16वीं शताब्दी में था। ठाकुर केशव देव मंदिर की भव्यता ऐसी थी कि विदेशी भी मंदिर की खूबसूरती के कायल थे। मुगलकाल में आए विदेशी यात्रियों ने इसकी प्रशंसा भी खूब की।
इतालवी यात्री निकोलाई मनूची और फ्रांसीसी यात्री
दारा शिकोह के समय भारत भ्रमण पर आए इतालवी यात्री निकोलाई मनूची और फ्रांसीसी यात्री जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर ने भी विस्तार से लिखा है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की पुस्तक में इन लेखों का वर्णन है। संस्थान के सदस्य गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी बताते हैं कि फ्रांसीसी यात्री जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर 1650 में यहां आए थे। उन्होंने अपने यात्रा विवरण में ठाकुर केशवदेव मंदिर की प्रशंसा की है। उन्होंने लिखा है कि पुरी के जगन्नाथ और वाराणसी के बाद सबसे प्रसिद्ध मंदिर मथुरा का है। यह मंदिर भारत के अत्यंत उत्कृष्ट मंदिरों में से एक है। यहां लगे लाल रंग के पत्थरों में तरह-तरह के जानवरों की आकृति हैं। मंदिर इतना विशाल है कि वह पांच से छह कोस की दूरी पर भी दिखाई देता है।
मंदिर की विशालता और ऊंचाई से प्रभावित
इटालियन यात्री निकोलाई मनूची भारत में काफी समय रहे थे। वह मंदिर की विशालता और ऊंचाई से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में लिखा है कि केशवदेव मंदिर का सुवर्णाच्छादित शिखर इतना ऊंचा था कि वह 18 कोस यानी 36 मील दूर आगरा से भी दिखाई देता था।
ये भी पढ़ें...
Agra News: एक्सप्रेस-वे के पास युवती से सामूहिक दुष्कर्म, तीन घंटे तक आरोपित लूटते रहे अस्मत
इंसान नहीं देवदूतों ने बनवाया मंदिर
पुस्तक तारीख-ए-यामिनी में महमूद गजनवी के सेवादार अबू नासिर बिन मुहम्मद अल जब्बार अल उतबी ने चौथी सदी में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनाए गए मंदिर के बारे में लिखा है कि शहर के बीचों-बीच एक आलीशान मंदिर था। ये सबसे ज्यादा खूबसूरत था। जिसे लोग देवदूतों का बनाया मानते थे। उसने लिखा है कि सुल्तान महमूद ने मंदिर देकर कहा कि अगर कोई व्यक्ति इस तरह की इमारत बनाना चाहे तो उसे दस करोड़ दीनार खर्च करने पड़ेंगे। इसे बनवाने में करीब दो सौ वर्ष लगेंगे।