Dhirendra Shashtri: अल्हड़ अंदाज, सादगी व देसी भाषा, 29 साल का युवा बना गया लाखों को अपना 'दीवाना'
29 वर्षीय धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने अपनी सादगी और देसी अंदाज से लाखों लोगों को अपना दीवाना बना लिया है। सनातन हिंदू एकता पदयात्रा के आह्वान पर हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। उनका ठेठ देसी भाषा में बातचीत करने का अंदाज, विन्रमता और भावुकता लोगों को प्रभावित करती है। अनुयायी उन्हें परिवार का सदस्य मानते हैं और उनमें अटूट आस्था रखते हैं।

आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री। फोटो: जागरण
विनीत मिश्र, जागरण, मथुरा। उम्र महज 29 वर्ष। सामान्य कद-काठी। ढीली ढाली बगलबंदी और धोती। एक आह्वान पर हजारों लोग सड़कों पर निकल आए। दस दिन तक सनातन हिंदू एकता पदयात्रा की। अगली यात्रा में फिर शामिल होने का प्रण लेकर विदा हुए। यात्रा का संयोजन करने वाले बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पीछे यूं नहीं इतने लोग चल दिए।
इसके पीछे उनका अल्हड़ अंदाज, सादगी और देसी भाषा का उपयोग है, जिसने लाखों लोगों को ''दीवाना' बना दिया। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अन्य कई संत-महंतों से उम्र में काफी छोटे हैं। इसके बाद भी उनके अनुयायियों की संख्या लाखों में है।
जब वह बागेश्वर धाम की गद्दी पर बैठते हैं, हजारों की भीड़ उमड़ती है। सनातन हिंदू एकता पदयात्रा का आह्वान किया, एक आवाज पर अनुयायियों की भीड़ सड़कों पर उतरी, तो लोग दंग रह गए। चर्चा शुरू हुई, इतनी कम उम्र के एक संत ने इतनी भीड़ जुटा ली। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को देखने और उनके अंदाज से जो परिचित हैं, उनके मन में कोई सवाल नहीं है।
उनके प्रति आस्था तो है ही, अनुयायियों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है उनका अंदाज। ठेठ देसी भाषा में बातचीत। कोई अनुयायी पहुंचा तो अल्हड़ तरीके से मिले। किसी को मजाक में ठठरी के बरे तो किसी को नक्कटा कह दिया। लेकिन इसके पीछे अनुयायी के लिए अपनत्व भी छिपा है। यह बातचीत कायल कर देती है।
दूसरा धीरेंद्र शास्त्री की विन्रमता भी लोगों को जोड़ने में काफी सहायक है। किसी से भी मिलना और फिर गले लग जाना। यहां तक कि बार-बार अपनों से बड़े और छोटों को भी नाक रगड़कर दंडवत प्रणाम करने का अंदाज भी सबको अपना बना लेता है। कहते हैं कि संत हृदय काफी भावुक होता है, सनातन हिंदू एकता पदयात्राों यह दिखा भी।
अपनों से मिले दुलार पर कई बार धीरेंद्र शास्त्री भावुक भी हो गए। कई बार मंच पर फफक कर रोए तो कई बार दंडवत प्रणाम किसी भी परेशानी के लिए माफी मांगी। छत्तीसगढ़ के रायपुर के दीनानाथ और उनकी गायत्री चार वर्षों से बागेश्वर धाम से जुड़े। पदयात्रा में दिल्ली से साथ चले। आखिर इनके अनुयायी क्यों हो, दो टूक जवाब था।
हमारी आस्था है। कोई लाग-लपेट की बात नहीं। जयपुर की सुनीता देवी भी बहन रानी के साथ पदयात्रा में आईं, उम्र पर मत जाइये। हम इनके अनुयायी हैं, उनका बात करने का अंदाज हमें प्रभावित करता है, लेकिन परिवार के सदस्य के रूप में बात करते हैं।

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