Banke Bihari Mandir: दर्शन के बाद आराध्य का श्रीविग्रह साथ ले गईं करौली की महारानी, एक वर्ष तक वहां विराजे थे
Banke Bihari Mandir Vrindavan करौली की महारानी अपने साथ ले गईं थीं आराध्य। भरतपुर महाराज के सहयोग से वापस आए थे ठाकुर बांकेबिहारी। पहले निधिवन में विराजते थे ठाकुर। ठाकुरजी यहां रास रचाते हैं इसलिए मंगला आरती की परंपरा नहीं है।

मथुरा-वृंदावन, जागरण, (विपिन पाराशर)। वृंदावन स्वामी हरिदास के लाड़ले ठा. बांकेबिहारी के भक्त आमजन ही नहीं राजा महाराज भी थे। बांकेबिहारी पर रीझी करौली की महारानी जब दर्शन करने आईं, तो आराध्य का विग्रह ही साथ ले गईं। बांकेबिहारी के जाने के बाद गोस्वामियों में खलबली मच गई। आराध्य को लाने की जुगाड़ लगाने लगे।
गोस्वामी लेकर आए वापस
भरतपुर के महाराजा रतन सिंह की मदद से गोस्वामी बांकेबिहारी को करौली से वापस लाए। महाराज ने मंदिर बनाने के लिए अपने बगीचे को भी दान कर दिया। इन सबके बीच एक घटना में महाराज की सेना ने आराध्य को लौटाकर लाने वाले गोस्वामी की हत्या कर दी। बांकेबिहारी जी तब निधिवन राज मंदिर में विराजते थे।
करौली की महारानी लेकर चली गईं विग्रह
करौली की महारानी के आराध्य का विग्रह ले जाने की घटना करीब 280 वर्ष पुरानी है। बिहारीजी को वापस लाने के लिए भरतपुर के महाराजा रतन सिंह ने योजना बनाई। महाराजा ने शर्त रखी कि वे बिहारीजी को भरतपुर में रखेंगे। इसके लिए तत्काल मंदिर का निर्माण करवाया। भरतपुर महाराज और बिहारीजी के सेवायत रूपानंद गोस्वामी करौली में आराध्य के दर्शन के लिए पहुंचे।
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महाराजा एक खाली पालकी लेकर गए और दर्शन के साथ ही ठाकुरजी को पालकी में बिठाकर चल दिए। इसी बीच रूपानंद गोस्वामी ने नई चाल चली। आराध्य को भरतपुर के बजाय वृंदावन लेकर आ गए। इससे नाराज भरतपुर महाराजा सेना वृंदावन भेज दी। सेना के हमले में गोस्वामी रूपानंद का निधन हो गया।
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ठाकुर बांकेबिहारी जी को करौली की महारानी 280 वर्ष पहले अपने साथ ले गईं। इसके बाद बिहारीजी को रूपानंद गोस्वामी भरतपुर के महाराज के साथ करीब एक वर्ष बाद वृंदावन लेकर आए थे। गोपेश गोस्वामी, सेवायत, ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर
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