Banke Bihari Vrinavan: आखिर क्यों नहीं होते रोजाना चरण दर्शन, पढ़िए 500 वर्ष पुरानी परंपरा का रोचक रहस्य
Mathura News ठाकुर बांकेबिहारी के चरणों में स्वामी हरिदास को हर रोज स्वर्ण मुद्रा मिलती थीं इसलिए नहीं होते चरण दर्शन। चरण के विलक्षण दर्शन करने वाले ...और पढ़ें

संवाद सहयोगी, वृंदावन-मथुरा। ठाकुर बांकेबिहारी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक ही दिन अक्षय तृतीया पर होते हैं। वर्षभर आराध्य के चरण पोशाक में छिपे रहते हैं। इसके पीछे रहस्य यह है कि शुरुआती दौर में स्वामी हरिदास बांकेबिहारी से लाड़ लड़ाते और उनकी सेवा में ही दिन गुजारते थे। तब ठाकुरजी की सेवा, भोग के लिए धन का अभाव रहता था। ठाकुरजी का ही चमत्कार था कि इस अभाव को दूर करने के लिए हर दिन आराध्य के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा मिलने लगी। इससे स्वामीजी उनकी सेवा करते रहे। अब मुद्रा तो नहीं निकलती, लेकिन ठाकुरजी के चरण दर्शन न कराने की परंपरा आज भी सेवायत निभा रहे हैं।
पांच सौ वर्ष पहले प्रकट हुए थे ठाकुर बांकेबिहारी
करीब पांच सौ वर्ष पहले निधिवन राज मंदिर में संगीत सम्राट स्वामी हरिदास की संगीत साधना से प्रसन्न होकर ठा. बांकेबिहारी प्रकट हुए। तब स्वामीजी लड़ैते बांकेबिहारी की भाव सेवा में डूबे रहते थे। हालात यह थे कि ठाकुरजी की दिनभर की सेवा करने के लिए आर्थिक संकट था।
शुरुआती दौर में जब स्वामीजी सुबह उठते थे, तो ठाकुरजी के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा रखी मिलती थी, स्वामीजी इसी स्वर्ण मुद्रा से आराध्य बांकेबिहारी की सेवा और भोगराग की व्यवस्था करते थे। यही कारण है कि ठाकुरजी के चरणों के दर्शन किसी को नहीं कराए जाते थे। ऐसे में स्वामी हरिदास ठाकुर जी के चरण पोशाक आदि से ढके रहते थे। ठा. बांकेबिहारीजी अक्षय तृतीया के दिन वर्ष में एक ही बार भक्तों को चरण दर्शन देते हैं।
ठाकुरजी के चरणों में अपार खजाना
ठाकुरजी के चरणों में अपार खजाना है। मान्यता है ठाकुरजी के चरण के विलक्षण दर्शन करने वाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है। यही कारण है कि अक्षय तृतीया पर आराध्य के चरण दर्शन को लाखों भक्त वृंदावन पहुंचते हैं। इस दिन ठाकुरजी सुबह तो राजा के भेष में चरण दर्शन देते हैं, और उनके चरणों में चंदन का सवा किलो वजन का लड्डू भी रखते हैं।
मंदिर सेवायतों का कहना है कि ये चंदन का लड्डू भी इसी मान्यता के तौर पर रखा जाता है कि स्वर्ण मुद्रा के दर्शन भक्तों को कराए जा सकें। सुबह राजा के भेष में चरण दर्शन देने के बाद शाम को ठा. बांकेबिहारी के पूरे श्रीविग्रह पर चंदन लेपन होता है और आराध्य अपने भक्तों को सर्वांग दर्शन देते हैं। इसलिए अक्षय तृतीया पर होते हैं चरण दर्शन
ब्रदीनाथ धाम के दर्शन खुलते हैं
अक्षय तृतीया के समय ही बद्रीनाथ धाम के दर्शन खुलते हैं, तो करीब पांच सौ वर्ष पहले एक बार वृंदावन में साधना कर रहे संतों की इच्छा बद्रीनाथ धाम के दर्शन की हुई। नियम ये था कि वृंदावन में जो साधक साधना करे, वह वृंदावन छोड़कर बाहर नहीं जाता। संतों की दुविधा को देख स्वामी हरिदास ने संतों से कहा वे अपने आराध्य के चरणों का दर्शन करवाएंगे और उन्होंने ठाकुरजी का सुंदर श्रृंगार किया।
अक्षय तृतीया के दिन संतों को ठा. बांकेबिहारी के चरण दर्शन कराए। कहा, ठाकुरजी के चरणदर्शन करने से बद्रीनाथ दर्शन का पुण्य संतों को मिलेगा। तभी ये अक्षय तृतीया पर चरण दर्शन की परंपरा शुरू हो गई।

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