Ahoi Ashtami 2025: राधाकुंड की है बेहद खास मान्यता, निसंतान दंपती आज लगाएंगे 'विश्वास की डुबकी'
राधाकुंड, ब्रज में स्थित, आस्था का प्रतीक है। यहां श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर वध के बाद जल उत्पन्न किया और राधारानी ने कंगन से कुंड बनाया। मान्यता है कि अहोई अष्टमी की रात निसंतान दंपती यहां स्नान करने से संतान सुख प्राप्त करते हैं। हर साल, कार्तिक मास में यह कुंड श्रद्धालुओं से भर जाता है, जहां वे राधारानी से आशीर्वाद मांगते हैं। यह स्थान कामना, करुणा और कृपा का संगम है।

Ahoi Ashtami 2025: राधा कुंड की फाइल फोटो। जागरण
संवाद सूत्र, जागरण l गोवर्धन/मथुरा। ब्रज की पावन धरा पर राधाकुंड सिर्फ एक जलाशय नहीं, बल्कि आस्था का जीवंत इतिहास है। वह स्थान जहां पाप का प्रायश्चित, प्रेम का उद्गम और वरदान की परंपरा एक साथ जन्मी। कहा जाता है कि यहीं भगवान श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर वध के पश्चात अपने अपराध-बोध से मुक्त होने के लिए जल का सृजन किया था और राधारानी ने अपने कंगन से पवित्र कुंड रचा।
जब दोनों कुंड मिलकर एक हुए तो भक्ति और करुणा का ऐसा संगम बना कि स्वयं श्रीकृष्ण ने राधारानी को वरदान दिया कि जो निसंतान दंपती अहोई अष्टमी की रात इस कुंड में स्नान करेगा, उसे संतान सुख अवश्य प्राप्त होगा। तभी से यह स्थान कामना, करुणा और कृपा का तीर्थ बन गया है। हर वर्ष जब कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी आती है, तो यह कुंड आस्था के महासागर में बदल जाता है।
हजारों निसंतान दंपति लगाते हैं डुबकी
हजारों दंपति यहां राधारानी के जल स्वरूप में गोते लगाकर जीवन के सबसे मधुर आशीर्वाद, संतान सुख की कामना करते हैं। राधाकुंड की यह रात्रि सिर्फ स्नान नहीं, विश्वास का उत्सव है। यहां हर गोता एक प्रार्थना है, और हर लहर राधारानी के आशीर्वाद का संदेश है। 13 अक्टूबर की आधी रात को जब अहोई अष्टमी का शुभ क्षण आएगा, तब राधाकुंड का जल कामना, विश्वास और वरदान का संगम बन जाएगा।
सूनी झोली भरने की करेंगे प्रार्थना
दुनिया भर से पहुंचे दंपती इस पावन कुंड में स्नान कर राधारानी के चरणों में अपनी सूनी झोली भरने की प्रार्थना करेंगे। वहीं, जिनकी गोदें भर चुकी हैं, वे कृतज्ञ हृदय से जलस्वरूपा राधारानी के आभार में डुबकी लगाएंगे। कुंड की परिक्रमा करते श्रद्धालु, दीपों से झिलमिल घाट और हवा में घुली राधा नाम की धुन, यह दृश्य हर साल राधाकुंड को भक्ति और विश्वास के महासागर में बदल देता है।
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