मधुकरी परंपरा को सहेज रहे पश्चिम बंगाल के तीर्थयात्री
जागरण संवाददाता, मथुरा, वृंदावन: चैतन्य महाप्रभु और उनके अनुयायियों द्वारा ब्रज में शुरू की गई मध
जागरण संवाददाता, मथुरा, वृंदावन: चैतन्य महाप्रभु और उनके अनुयायियों द्वारा ब्रज में शुरू की गई मधुकरी परंपरा आज चंद आश्रमों तक सिमट गई है। इससे परे पश्चिम बंगाल से आने वाले तीर्थयात्री इस परिपाटी को सहेज रहे हैं। 12 मार्च को चैतन्य महाप्रभु के जन्मोत्सव पर वृंदावन में उमड़ने वाले ये श्रद्धालु तीर्थ गुरुओं के यहां मधुकरी करने जाएंगे।
मधुकरी परंपरा में मान्यता है कि वृंदावन में वास के दौरान ब्रजवासियों के यहां से भिक्षाटन कर जो भी अन्न प्राप्त होता है उसे ही ग्रहण करके जीवन-यापन और ईश्वर साधना में रत रहते हैं। इस परंपरा का निर्वहन प्राचीनकाल में साधु समाज करता था। सबसे अधिक इस परंपरा को गौड़ीय संप्रदाय ने निभाया। आज भी अनेक आश्रम ऐसे हैं जिनमें रहने वाले संत ब्रजवासियों के यहां से मधुकरी करके अपना जीवन-यापन कर रहे हैं और दिनरात ईश्वर की साधना कर रहे हैं।
तीर्थ पुरोहित पंडा सभा के संरक्षक जगदीश शर्मा ने बताया कि गौड़ीय संप्रदाय में मधुकरी परंपरा का विशेष महत्व है। इसके तहत जो भी संत और तीर्थयात्री ब्रजवासी के घर से भिक्षा के रूप में मिले अन्न को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और खाते हैं, उसे ही मधुकरी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल से जो भी श्रद्धालु यहां आते हैं, वे यमुना पूजन, तीर्थ गुरु पूजन, ब्रजवासी पूजन और मधुकरी अवश्य करते हैं। इसके बिना वे अपनी तीर्थयात्रा को पूर्ण नहीं मानते।
इस बारे में मान्यता ये भी है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि ब्रजवासी उनके अभिन्न हैं, इनसे कभी भी अलग नहीं हो सकते। यही कारण है कि ब्रजवासियों के घर से मिलने वाला भोजन श्रद्धालु भगवान का प्रसाद मानकर ही ग्रहण करते हैं।
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