तलैया बन गया तालवन
जागरण संवाददाता, मथुरा: ये साढ़े पांच हजार साल पहले की बात है। ताड़ के सुंदर पके फलों की सुगंध बलराम
जागरण संवाददाता, मथुरा: ये साढ़े पांच हजार साल पहले की बात है। ताड़ के सुंदर पके फलों की सुगंध बलराम और कृष्ण को अपने सखाओं के साथ तालवन में खींच ले गई थी। भूखे-प्यासे ग्वाल-बाल श्रीदामा, सुबल, स्तोक, तेजस्वी ने खाने के लिए फल तोड़े, तो उनके गिरने की आवाज पर राक्षस धेनुकासुर जाग गया। उसका वध कर बलराम ने वहां हल से ताल खोदा था। उस ताल से पानी पीकर सखाओं ने प्यास बुझाई थी। 52 बीघा क्षेत्रफल में फैला ये तालवन पिछले कुछ सालों तक आबाद रहा। अब विकास की मार से ऐसा विनाश हुआ कि यह सूख कर तलैया बन गया है।
हाईवे से भरतपुर मार्ग पर आठ किमी. दूर तालवन है। ये भू अभिलेखों में तारसी गांव के नाम से दर्ज है। यमुना के विश्राम घाट से सावन व भादों में शुरू होने वाली पैदल ब्रज चौरासी कोस यात्रा का मधुवन (मथुरा में ही एक स्थान) के बाद ये दूसरा पड़ाव है। मधुवन से चार किमी यात्रा कर तीर्थयात्री तालवन पहुंचते हैं। इस मार्ग पर दो किमी कच्चा मार्ग और एक किमी खरंजा है, शेष पर डामर है। पूरा मार्ग उबड़-खाबड़ है। लाखों तीर्थयात्री तालवन में डुबकी लगाने के लिए पहुंचते हैं। तालवन का ताल भू अभिलेखों में 52 बीघा में है। इसी में गो चारण की भूमि शामिल है। कुंड के किनारे पीलू और ताड़ के वृक्ष हैं, जो लुप्त होने के कगार पर हैं। कुंड पर दाऊजी का मंदिर और प्राचीन कुआं भी है।
कभी नहीं हुई खोदाई
ग्रामीणों को याद नहीं कि कुंड की सफाई के लिए सरकारी स्तर पर कोई कार्य किया गया। अथाह पानी के इस भंडार में बारिश के पानी के साथ बहकर आई मिट्टी जमा होती चली गई और 20-22 मीटर गहरा ताल अब उथला ताल बन गया। ताल जब पानी से लबालब रहता था, उस दौरान आसपास पांच मीटर पर जल स्तर था। अब जलस्तर 25 मीटर से नीचे खिसक गया। तालाब के सूखने से जंगली जानवर और पक्षियों को गर्मियों में पीने का पानी भी नसीब नहीं हो रहा है।
ताकि परंपरा न टूटे
एक तरफ मिट्टी का कटान रोकने के लिए डेढ़ दशक पहले तत्कालीन विधायक पूरन प्रकाश ने लंबाई में इसकी बीस मीटर दीवार बनवाई थी। हाल में ग्रामीणों ने पंद्रह मीटर दायरे में छोटा कुंड विकसित किया है। इसमें नलकूप से पानी भर दिया है, जिससे यहां आने वाले ब्रज चौरासी कोस के तीर्थयात्री स्नान और आचमन कर अपनी यात्रा को सार्थक कर सकें। बाकी सूखे पड़े कुंड में जलकुंभी तेज धूप में झुलस रही है। कुंड के किनारे झोपड़ी बनाकर कुछ लोग रह रहे हैं। दूसरी तरफ बिटोरा और कंड़े पाथे जा रहे हैं। ग्रामीण जानवर भी बांध रहे हैं। कुछ भूमि पर खेती की जा रही है। फिलहाल कुंड के नाम पर सूखी तलैया नजर आ रही है।
भगवान बलराम ने अपने हल से यहां कुंड खोदा था, जो जल का प्राकृतिक स्त्रोत था। कभी उसे भरने की जरूरत नहीं पड़ी। संरक्षण के अभाव में ये कुंड अटता चला जा रहा है। कुंड की भूमि पर कब्जे किए जा रहे हैं। तालवन का भागवत और गर्ग संहिता में भी उल्लेख है।
महंत गो¨वद दास, बलराम मंदिर
तालाब की कभी खुदाई नहीं हुई। न संरक्षण के लिए कोई कार्य किया। मंदिर की भूमि और श्रद्धालुओं की दान-दक्षिणा से समिति को जो धनराशि प्राप्त हो रही है, उसी से रखरखाव किया जा रहा है। पहले यहां के जंगलों में बड़ी तादाद में जंगली जानवर थे। बीस साल पहले तक यहां हिरनों के झुंड घूमते थे। ताल सूखने पर पलायन कर गए।
विजेंद्र ¨सह, तारसी
जन्माष्टमी पर लाखों लोग कुंड में स्नान करने आते हैं। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। संरक्षण के अभाव में कुंड में पानी की जगह जलकुंभी तैरने लगी और लोग धीरे-धीरे कम होते चले गए। इसके बावजूद गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत कई प्रांतों के लोग बरसात में कीचड़ भरे हुए रास्तों से होकर कुंड में स्नान करने के लिए अभी भी आ रहे हैं।
अमर ¨सह, तारसी
कुंड के संरक्षण के लिए क्षेत्रीय प्रतिनिधियों से कई बार गुजारिश की, उन्हें लिखित पत्र दिए। यहां तक कि डीएम और एसडीएम को भी कुंड की भूमि पर हो रहे अतिक्रमण को हटवाने के लिए पत्र लिखे। प्रदेश और केंद्र सरकार से लगातार पत्राचार किया जा रहा है। पर्यटन अधिकारी से भी मुलाकात की। मगर अभी तक कुंड के प्राचीन रूप को बहाल करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई।
ठाकुर बिहारी लाल, तारसी
गूल पर भी हो रहा अतिक्रमण
कुंड के प्राकृतिक जल स्त्रोत समाप्त होने के बाद मथुरा राजवाह से निकली माइनर से गूल के जरिए कुंड भरा जाता है। कुछ बरसात का पानी आकर जमा हो जाता है। नहरी पानी के साथ कुंड में जलकुंभी आ जाती थी। ये जलकुंभी तालाब पर तैरने लगी। गूल की भी खोदाई नहीं कराई जा रही है। इस जमीन पर धीरे-धीरे अतिक्रमण होता जा रहा है।
मान¨सह, तारसी
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