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    बांकेबिहारी मंदिर तो वास्तु का विवि

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    Updated: Wed, 13 Apr 2016 12:06 AM (IST)

    जितेंद्र शर्मा, वृंदावन: आध्यात्मिक मान्यता है कि भगवान तो कण-कण मे हैं, आस्था हो तो नजर आते हैं। इस

    जितेंद्र शर्मा, वृंदावन: आध्यात्मिक मान्यता है कि भगवान तो कण-कण मे हैं, आस्था हो तो नजर आते हैं। इसके बाद भी मंदिरों को उनका विशेष स्थल माना जाता है। देश में कई मंदिरों का पौराणिक इतिहास है। इनमें वृंदावन स्थित ठा. बांकेबिहारी के मंदिर खास है। आखिर इसमें ऐसा क्या है, जो दुनिया भर के भक्त यहां सिर नवाने को आतुर रहते हैं। यहां ठाकुरजी के प्रकट हुए विग्रह हैं, मगर वास्तुशास्त्रियों की नजर कुछ अलग कहती है। यह मंदिर वास्तु के लिहाज से सौ फीसद फिट है। इसे वास्तु का विश्वविद्यालय मानकर दुनिया भर के विशेषज्ञ वर्षों से नियमित रूप से यहां आ रहे हैं।

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    बांकेबिहारी का प्राकट्य स्वामी हरिदास ने निधिवन में किया था। करीब 151 वर्ष पहले भरतपुर महाराज द्वारा दान दी गई बगीचे की भूमि पर बने बांकेबिहारी मंदिर में ठाकुर जी विराजमान हो गए। यहां हर दिन हजारो आंखें बिहारी जी के विग्रह को निहारने को बेताब रहती हैं, तो कुछ नजरें यहां कुछ और ही ढूंढ रही होती हैं। पटियाला निवासी वास्तुशास्त्री संजय गुप्ता अपने 18 वर्ष के अध्ययन के दौरान वास्तु, ज्योतिष और फेंगशुई पर भारत सरकार से 25 रिसर्च पेटेंट करा चुके हैं। वे हर दूसरे माह बिहारी जी मंदिर आते हैं। कई साल मंदिर का अध्ययन किया। मन में विचार था कि पौराणिक महत्व के अन्य मंदिर भी वृंदावन में हैं, लेकिन यहां भक्तों की इतनी संख्या और मंदिर की इतनी कीर्ति क्यों है? वह कहते हैं कि मंदिर बिल्कुल शास्त्रों में बताई विधि के अनुसार बना है। बिहारी जी की मूर्ति पश्चिम में स्थापित है, पूर्व दिशा की ओर मुख है। ऊपर छत में एक छिद्र है, जिससे सूर्य की किरणें सीधे मंदिर में आती हैं। यह अनोखी ऊर्जा देती हैं।

    वास्तु के अनुसार किसी घर या मंदिर के उत्तर में कोई रास्ता जुड़ा हो, तो वहां कुबेर स्थापित हो जाते हैं। बिहारी जी मंदिर के उत्तर में दस फुट चौड़ी गली है, जिसकी वजह से यहां धन के देवता कुबेर विराजमान हैं। उत्तर-पश्चिम दिशा में जल का स्थान होना चाहिए। मंदिर के उत्तर-पश्चिम में प्याऊ है, जहां श्रद्धालु हाथ धोते हैं। इसकी वजह से कीर्ति और भीड़ बढ़ती है। इसके अलावा मंदिर के हर द्वार पर वास्तु के मुताबिक ही दहलीज है। पहले घरों में ऊंची दहलीज इसीलिए बनाई जाती थी कि नकारात्मक ऊर्जा अंदर प्रवेश नहीं करे।

    मंदिर में भी प्रवेश पर हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का ही भान होगा। फूल बंगले सजाने से भी मंदिर के यश और कीर्ति में बढ़ावा होता है, क्योंकि जब भी हम किसी भवन की पश्चिम दिशा को सजाएंगे, तो उसका फल यश-कीर्ति के रूप में मिलेगा।

    शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पड़तीं ठाकुरजी पर

    शरद पूर्णिमा पर जब प्रभु गर्भ ग्रह से थोड़ा आगे निकलते हैं, तो चंद्रमा की किरणें उनके चेहरे पर पड़ती हैं। इसी तरह यहां के वास्तु में बहुत सारी खूबियां हैं।

    कई वर्षों से चल रहा है शोध

    बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत गोपी गोस्वामी बताते हैं कि ठाकुर जी के इस मंदिर को सभी वास्तु का विवि मानते हैं। अक्सर यहां वास्तु विशेषज्ञों की टीम विदेशों से आती रहती हैं। यहां का वास्तु शास्त्रों के अनुसार ही है। वैसे मंदिर की स्थापत्य शैली राजस्थानी है। इसी शैली में जयपुर मंदिर और केशी घाट भी बना है। इनके निर्माण को पत्थर लाने के लिए ही वृंदावन में रेलवे लाइन डाली गई थी।

    प्रेम मंदिर भी अनूठा उदाहरण

    वास्तुशास्त्री संजय गुप्ता के मुताबिक संत कृपालु महाराज द्वारा बनवाया गया प्रेम मंदिर भी वास्तु का अनूठा उदाहरण है। यदि दर्शनार्थियों की संख्या के लिहाज से देखें, तो आध्यात्मिक महत्व वाले वृंदावन के अन्य मंदिरों से अधिक भक्त यहां आते हैं। बिहारीजी के बाद एक बड़ा आकर्षण प्रेम मंदिर ही है। प्रेम मंदिर का वास्तु भी बिहारी जी मंदिर की तरह ही पूरी तरह से अनुकूल है।

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