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    अस्पतालों में शोपीस बने लाल, नीले, पीले डिब्बे

    By Edited By:
    Updated: Fri, 04 Dec 2015 12:32 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, मथुरा: निजी और सरकारी अस्पतालों में रखे रहने वाले लाल, पीले और नीले रंग के डिब्बे श

    जागरण संवाददाता, मथुरा: निजी और सरकारी अस्पतालों में रखे रहने वाले लाल, पीले और नीले रंग के डिब्बे शोपीस बने हुए हैं। कहीं-कहीं तो इनमें साफ-सफाई का कूड़ा डाल दिया जाता है। जनपदभर में खुले सीएचसी(सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र)-पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र)पर अस्पतालों के कचरे का निस्तारण करने की कोई व्यवस्था नहीं है।

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    न तो सीएचसी-पीएचसी पर किसी संबंधित एजेंसी की गाड़ी कचरा लेने जाती और न ही इस अस्पताल का कचरा निस्तारण की कोई व्यवस्था है। देहात में खुले इन स्वास्थ्य केंद्रों पर परिसर में खुले में या गड्ढा खोदकर अस्पताल का कचरा उढे़ल दिया जाता है और इकट्ठा होने पर इसमें आग लगा दी जाती है। इससे संक्रामक बीमारियां फैलने का डर बना रहता है। वहीं शहर के अस्पतालों में अस्पताल का कचरा निस्तारण ठीक से नहीं हो पा रहा है। कहीं तीनों रंगों के डिब्बे एक साथ नहीं रखे हैं तो कहीं ये डिब्बे खाली ही रखे हुए हैं। कुछ छोटे-मोटे क्लीनिक और नर्सिग होम ऐसे भी हैं, जहां ऐसे डिब्बे ही नहीं हैं।

    जिला अस्पताल की ब्लड बैंक की गैलरी में लाल और पीले रंग डिब्बे एक स्टैंड पर खाली रखे हुए थे, जबकि नीले रंग का डिब्बा अंदर लैब में रखा था। यहां पर लाल रंग की पॉलीथिन में अस्पताल का कचरा डाला जा रहा था। मेल सर्जिकल वार्ड के बगल में एक निर्माणाधीन कक्ष के पास पीले रंग का डिब्बा कबाड़ के रूप में पड़ा था।

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    किस डिब्बे में क्या होना चाहिए

    -लाल: पैथोलॉजी, ब्लड बैंक, ऑपरेशन थियेटर, जनरल वार्ड, बर्न वार्ड आदि में रखे रहने वाले लाल रंग के डिब्बे में ट्यूबिन, ग्लब्स, आईवी सेट, ब्लड बैग, यूरिन बैग, सि¨रज जैसी इंफेक्टेड सामग्री डाली जाती है।

    -पीला: पीले रंग के डिब्बे में मानव उत्तक (टिश्यू), रक्त रंजित रुई, पट्टियां, प्लेसेंटा (बच्चे की नाल), मान के कटे हुए भाग आदि डाले जाते हैं।

    -नीला: ब्लेड्स, दवाओं का कचरा, कांच की टूटी बोतलें, प्लास्टिक की टूटी-फूटी बोतलें आदि सामान नीले रंग के डिब्बे में डाली जाती हैं।

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    प्राइवेट पर डंडा, सरकारी बेपरवाह

    सारे नियम निजी अस्पतालों पर लागू कराए होते हैं। प्रमाण-पत्रों के नाम पर प्राइवेट डॉक्टरों को सरकारी तंत्र परेशान करता है लेकिन सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का नामोनिशान नहीं है। बायो मेडिकल वेस्ट के लिए प्राइवेट अस्पताल एक लॉग बुक मेंटेन करते हैं। यहां फ्रेंड्स ऑफ वृंदावन की गाड़ी आती है और दत्ता इंटरप्राइजेज के आगरा में लगे इंसीनेटर प्लांट में यह अस्पताल का कचरा ले जाती है। जबकि सीएचसी-पीएचसी पर इस बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण का कोई उपाय नहीं है।

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    खुले में अस्पताल के कचरे से प्रदूषण और इंफेक्शन::

    आइएमए के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ सर्जन डॉ. देवेंद्र कुमार बताते हैं कि आइएमए और नर्सिग होम एसोसिएशन से जुड़े सभी हॉस्पिटल, नर्सिग होम और क्लीनिकों से अस्पताल का कचरा उठाया जाता है। दत्ता इंटरप्राइजेज के प्लांट में इंसीनेटर से निस्तारण किया जाता है। खुले में बायो मेडिकल वेस्ट पड़ा रहने और इसमें आग लगाने से तमाम तरह के इंफेक्शन फैलने की आशंका रहती है। टीबी, निमोनिया, फेंफड़ों संबंधी बीमारी, अस्थमा, खांसी, दमा और ब्रांकाइटिस आदि बीमारियों की आशंका रहती है। इसके अलावा कटे मानव अंगों, मांस के टुकड़े, मवाद और खून आदि की बदबू से वातावरण दूषित होता है।