आत्म अवलोकन से होता क्षमताओं का विकास
मथुरा: संसार में हम चींटी, कुत्ता, गाय, हाथी, शेर, कौआ आदि अनेक प्रकार के प्राणियों को देखते हैं। हर ...और पढ़ें

मथुरा: संसार में हम चींटी, कुत्ता, गाय, हाथी, शेर, कौआ आदि अनेक प्रकार के प्राणियों को देखते हैं। हर प्राणी के शरीर की बनावट भिन्न है। सब प्राणियों में शारीरिक शक्ति और बुद्धि भी अलग-अलग होती है ।
मनुष्य भी एक सामाजिक प्राणी है परंतु यह इन सबसे श्रेष्ठ है। मनुष्य में अन्य प्राणियों से अधिक बुद्धि है। संसार में जो आविष्कार दिखाई देते हैं। वे मनुष्य की बुद्धि की उपज हैं।
मनुष्य में बुद्धि के साथ-साथ भावना का भी समावेश होता है। मनुष्य शरीर एक बहुमूल्य उपहार है, जो परमेश्वर ने हमें कृपा पूर्वक दिया है। हमें इसका अच्छे से अच्छा उपयोग करना चाहिए। पशु जब भूखा होता है तब बेचैनी से भोजन की खोज करता है। भोजन मिलने पर वह भरपेट खाता है और फिर सो जाता है। भोजन करना, सोना, सन्तान उत्पत्ति करना यही पशु का काम है।
वह इसके अतिरिक्त कुछ सोच या कर नहीं पाता, परंतु भगवान ने मनुष्य को धर्म का ज्ञान, विद्या, विवेक तथा भावना आदि दी है। मनुष्य ने धर्म का आचरण नहीं किया, विवेक से काम नहीं लिया, केवल भोजन, नींद और सन्तान उत्पत्ति में ही अपना सारा समय नष्ट कर दिया तो मनुष्य और पशु में क्या अंतर पड़ा।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जहां पल-पल में परिवर्तन होते हैं। मनुष्य में गर्भाधान से लेकर वयस्क होने तक और जीवन के अंतिम क्षणों तक परिवर्तन अर्थात विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। इन परिवर्तनों के कारण जीवन में अदभुत क्षमताओं का विकास होता रहता है।
भावनात्मक क्षमताओं का विकास-
शिशु के जन्म के समय उसका भविष्य विकसित नहीं होता है। उसको सही और गलत, भय व खुशी, अच्छे या बुरे के भेद की समझ नहीं होती। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि शिशु प्रत्येक भक्ष्य या अभक्ष्य वस्तु को खाने की दृष्टि से मुख में ले जाने का प्रयास करता हैं। साथ ही वह जो मां उसे दूध पिलाती है, उसकी हर प्रकार की ¨चता करती है। उसी मां के बाल पकड़ कर खींचता है। किन्तु जब वह विकसित होता है तब हर प्रकार की वस्तु की प्रकृति के अनुसार व्यवहार करता है। वह उसी मां को सभी प्रकार से सम्मान देता है। यह प्रक्रिया उसके भावनात्मक क्षमताओं को प्रकट करती है।
बौद्धिक क्षमताओं का विकास -
मनुष्य में भावनात्मक विकास के साथ बौद्धिक क्षमताओं का विकास भी सम्पूर्ण जीवन काल में चलता है। शिशु के मस्तिष्क को खाली स्लेट की संज्ञा दी जाती है, लेकिन वहीं मस्तिष्क विकसित होकर संसार की सभी आवश्यक वस्तुओं का अनुसंधान कर उपलब्ध कराता है।
जिस प्रकार पहाड़ से एक पत्थर टूट कर जल में प्रवाहित होकर और निर्माण की प्रक्रिया को पूर्ण कर एक शिव रूप धारण कर सभी के लिए श्रद्धा का केंद्र बनता है। हम भी इस जीवन रूपी पुष्प को पूर्ण विकसित कर इस समाज और राष्ट्र को समर्पित कर अपना इस जन्म का उद्देश्य पूर्ण करें।
यां मेघां देवगणा: पितरष्चोपासतें ।
तथा मामद्यविनं कुरु स्वाहा ।। ( यजुर्वेद)
(जिस धारणवती मेधावी बुद्धि की विद्धान, तत्वदर्शी, आत्म ज्ञानी और सुधारक जन उपासना करते हैं, हे ज्ञान स्वरूप परमेश्वर मुझे भी उसी मेधा से युक्त करो।
प्रमोद कुमार वर्मा, प्रधानाचार्य
सरस्वती विद्या मंदिर सीनियर सेकेंड्री स्कूल, कोसीकलां
बच्चों की बात..
आत्म अवलोकन से तात्पर्य है स्वयं का मूल्यांकन। व्यक्ति को स्वयं का मूल्यांकन करना चाहिए कि उसमें कितनी क्षमता है। उसे अपनी क्षमता के अनुसार अपना लक्ष्य निर्धारित कर उसे प्राप्त करना चाहिए।
भावना ¨सघल, कक्षा 12
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जब व्यक्ति को यह आभास हो जाता है कि वह कौन है। उसका धरती पर जन्म लेने का उद्देश्य क्या है। उसके अंदर कौन-कौन सी बुराइयां हैं। क्या अच्छाइयां हैं और उसके जीवन का ध्येय क्या है। इसे उसका आत्मज्ञान कहा जाता है।
सत्यप्रकाश, कक्षा 12
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स्वयं के अवलोकन से हम अपनी भावनात्मक और बौद्धिक क्षमता का पता लगा सकते हैं। हमारे अंदर कितनी बौद्धिक क्षमता है, ये हम खुद का अवलोकन करके पता लगा सकते हैं।
तनीशा, कक्षा 12
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व्यक्ति जिस दिशा में सोचता है, उसकी बुद्धि भी उसी दिशा में कार्य करती है। वह इस संसार को भी अपने अनुरूप समझता है। व्यक्ति आत्मअवलोकन करने से सांसारिक मोहमाया से मुक्त हो जाता है। आत्मअवलोकन न होने पर आत्मा तथा परमात्मा का मिलन नहीं हो पाता है।
आदिश जैन, कक्षा 12

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