ब्रज कूं 'चैतन्य' करिबे फिर आवेंगे 'महाप्रभु'
राजेश मिश्रा, मथुरा: प्रभु दर्शन और ब्रज महिमा को लेकर ग्रंथों में वर्णन है। ब्रज भाषा के माधुर्य मे ...और पढ़ें

राजेश मिश्रा, मथुरा: प्रभु दर्शन और ब्रज महिमा को लेकर ग्रंथों में वर्णन है। ब्रज भाषा के माधुर्य में इसके लिपटने पर रस बरसता है। कृष्ण काल का यह सौंदर्य बीच में देखने को न मिलता था। 500 साल पहले ब्रज प्रदेश दुर्गम वनो से आच्छादित था। वृंदावन सहित श्रीकृष्ण के समस्त लीलास्थलों में निर्जन वन थे। जनसाधारण के लिए ये स्थल दुर्गम हो चुके थे। हिम्मत वाले ही चैतन्य महाप्रभु के पहले विश्राम स्थल वृंदावन के अक्रूर घाट की झांकी देख पाते थे। परंतु चैतन्य महाप्रभु ने यहां आकर कृष्ण की लीला स्थली को सबकी नजर में ला दिया। अब एक बार फिर यह जीवंत होने जा रहा है।
चैतन्य महाप्रभु के प्रादुर्भाव की पांचवीं शताब्दी गुरु पूर्णिमा से शुरू हो जाएगी। इस दौरान ब्रज ने कई आयाम देखे हैं। पिछली आधी सदी में तो विकास की धारा तेज होने से लता-पता उजड़ गई हैं। यमुना निरंतर बढ़ रहे प्रदूषण से सिसक रही है। ब्रज रज के स्थान पर कंक्रीट ज्यादा दिखती है। चैतन्य महाप्रभु द्वारा फैलाए गए भक्तिभाव के प्रकाश को विभिन्न संप्रदायों के नाम बांट लिया गया हो। चैतन्य महाप्रभु की ब्रजोपासना फिर भी जीवंत है। उनके द्वारा 'सब एक हैं' के संदेश का फैलाया गया 'प्रकाश' 500 साल बाद फिर महोत्सव बनने वाला है। ये स्थल होगा त्रैलोक्य पावन श्रीधाम वृंदावन। आयोजन की चमत्कृत रूपरेखा बता रही है कि महोत्सव महाप्रभु के भक्तों को झंकृत कर देगा। भक्तिभाव से ओतप्रोत संगीत विधाओं का प्रदर्शन होगा। संस्कृत के एक हजार एक विद्वान सामूहिक रूप से श्रीमद्भागवत का उच्चारण करेंगे। शाम को मंचों पर रासलीला और चैतन्य लीला को जीवंत किया जाएगा। विद्वजन प्रवचन कर रहे होंगे। तब चहुंओर गूंजता रहेगा- कृष्ण-कृष्ण हरे-हरे।
तब ये था दृश्य
चैतन्य महाप्रभु ने सन् 1515 की कार्तिक पूर्णिमा के दिन मधुवन, तालवन, कुमुदवन आदि वनों से होते हुए राह में तीर्थकुंडों में स्नान किया। श्रीकृष्ण की प्रधान लीलास्थली श्रीवृंदावन धाम पहुंचे, तब कदंब वृक्षों की पंक्तिया खड़ी हुई थीं। गाय वनों में विचरण कर रहीं थीं। ग्वाल-बाल किलोलें कर रहे थे। मयूर, सारस, हंस, चकवा, कालिंदी तट पर कलरव कर रहे थे। वृक्षों से झड़ते पुष्प मानो महाप्रभु को पुष्पांजलि दे रहे थे, गायें रंभाती हुई पास आकर आलिंगन हो रहीं थीं। पक्षी आसपास मंडराकर महाप्रभु के प्रति भक्तिभाव प्रदर्शित कर रहे थे।
ऐसे फैलेंगीं प्रकाशोत्सव की रश्मियां
हरिनाम संकीर्तन के भक्तिभाव के प्रतीक भाषा, परिधान, मंत्र, तिलक आदि भले ही अलग-अलग हों, देश और दुनिया में कहीं के भी निवासी हों, मगर वृंदावन धाम में सब चैतन्य महाप्रभु के भक्त होगे। महाप्रभु के आने पर 500 वां साल बुधवार को शुरू हो जाएगा। वर्ष 2015 में 18 से 25 नवंबर तक वृंदावन स्थित फोगला आश्रम में ऐसा प्रकाशोत्सव होगा, जिसकी रश्मियां लंबे समय तक चैतन्यता करती रहेंगी।
चैतन्य यात्रा: पश्चिम बंगाल से आगामी 13 नवंबर 2015 को एक चार्टर ट्रेन चैतन्य महाप्रभु भक्तों को लेकर वृंदावन के लिए रवाना होगी। ये ट्रेन संकीर्तन करते हुए वृंदावन पहुंचेगी। रास्ते में चुनिंदा स्थलों पर भक्त विश्राम भी करेंगे।
संकीर्तन महोत्सव: वृंदावन धाम में ये ऐसा आयोजन होगा, जिसमें संगीत के जरिए भक्तिभाव के प्रदर्शन की हर विधा के दर्शन हो सकेंगे। स्वर्ण मंदिर जैसे शबद कीर्तन होंगे तो राजस्थान की हवेली विधा पर भक्त झूम उठेंगे। केरल, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि राज्यो की संगीत विधाओं के पारंगत यहां पर अपने हुनर से महाप्रभु का गुणगान करेंगे।
श्रीमद भागवत कथा महोत्सव: विशाल पंडाल में 1008 पीठों पर विराजमान विद्वजन भागवत कथा का सामूहिक उच्चारण करेंगे। शाम को व्यास पीठ से भागवताचार्य अपने प्रवचन करेंगे।
चैतन्य लीला-रासलीला: वृंदावन श्रीकृष्ण की प्रधान लीलास्थली रही है तो चैतन्य महाप्रभु की साधनास्थली भी। प्रकाशोत्सव के दौरान थियेटर में रासलीला और चैतन्यलीला को जीवंत किया जाएगा।
जगन्नाथ-वृंदावन यात्रा: चैतन्य महाप्रभु के जीवनचरित्र को लेकर रचित-प्रकाशित ग्रंथों में उल्लिखित है कि महाप्रभु जगन्नाथपुरी से वृंदावन आए थे। प्रकाशोत्सव में इस यात्रा को भी समावेश करने के लिए वृंदावन स्थित श्री राधारमण मंदिर के सेवायत शरदचंद्र गोस्वामी जी जगन्नाथपुरी से वृंदावन तक करीब 1700 किलोमीटर लंबी पदयात्रा करेंगे। ये करीब तीन महीने में पूरी होगी। खास बात ये रहेगी कि चैतन्य महाप्रभु इस यात्रा के दौरान जहां-जहां रुके, मंदिरों में दर्शन किए, भक्तों को उपदेश दिए, आदि-आदि.., पदयात्रा में वो सब पहलुओं को समावेशित किया गया है।
यह तो सबका आयोजन: अभिषेक गोस्वामी
- एक साल से चल रही तैयारियां
प्रकाशोत्सव में देश और दुनिया का ऐसा कोई वर्ग, संप्रदाय नहीं जिसे अछूता रखा गया हो। श्री राधारमण मंदिर के आचार्य अभिषेक गोस्वामी बताते हैं कि इस आयोजन के लिए पिछले एक साल से तैयारियां की जा रही हैं। हर संभव स्थल, विद्वजनों, संगठनों, संस्थाओं से संपर्क का सिलसिला अब तक जारी है। महाप्रभु के भक्त इस आयोजन को लेकर उत्साहित हैं। आचार्य कहते हैं कि ये किसी एक संगठन, व्यक्ति का आयोजन न होकर सबका है। भक्तों और महाप्रभु का है। ऐसे में श्रद्धाभाव और भक्तिभाव से सबका स्वागत है।
कृष्ण को पाने के लिए सब कुछ करना पड़ेगा: शरदचंद्र
-ब्रज रज, लता और यमुना महारानी को समर्पित है महोत्सव
करीब 65 वर्ष की उम्र और जगन्नाथपुरी से वृंदावन तक करीब 1700 किलोमीटर की लंबी पदयात्रा। तीन माह में कैसे होगी पूरी? इस शंका का समाधान करते हुए श्रीराधारमण मंदिर के सेवायत शरदचंद्र गोस्वामी कहते हैं कि प्रभु को पाना है तो सब कुछ करना पड़ेगा। हृदय ने आवाज दी तो संकल्प ले लिया। भक्तिभाव में उम्र आड़े नहीं आती। श्रीकृष्ण को पाना है तो राधा के बगैर संभव नहीं। राधा को पाना है तो तीन रानियां (रजरानी, लता रानी और यमुना महारानी) को पाना होगा। प्रकाशोत्सव इन्हीं तीन रानियो को समर्पित है। चैतन्य महाप्रभु ने भी वृंदावन धाम आकर ब्रज के इसी महत्व को प्रकाशित किया था।
उद्देश्य ये भी है
श्री राधारमण मंदिर के आचार्य अभिषेक गोस्वामी बताते हैं कि कोई भी आयोजन के पीछे प्रयोजन जरूर होता है। वृंदावन प्रकाशोत्सव आयोजन के पीछे ये उददेश्य भी हैं-
-ब्रजोपासना से जुड़े सभी कृष्णभक्त एक-दूसरे की रीति-नीति, संस्कृति, भाषा, परिधान से परिचित हों।
- वृंदावन में विधवा-निराश्रित महिलाओं को मुख्य धारा में लाया जाए। उन्हें हीनभावना से बाहर निकाला जाए।
-धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से वृंदावन सहित पूरे ब्रज में विकास की नयी रूपरेखा तैयार की जाए। हैरिटेज सिटी कार्यक्रम में वृंदावन की जरूरतों का ध्यान रखा जाए।
- महोत्सव में विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं के प्रबंधन क्षेत्र के प्रशिक्षुओं को जिम्मेदारी दी जाएगी। आयोजन में आने वाले कारपोरेट घरानों से इनके कैंपस प्लेसमेंट की कोशिश होगी।
.तो मिथक बन कर रह जाता वृंदावन
शरद अवस्थी, वृंदावन: वैष्णव धर्म के भक्ति योग प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में एक गौड़ीय संप्रदाय के जनक चैतन्य महाप्रभु ने भजन गायकी को नई शैली दी। श्रीकृष्णदास कविराज गोस्वामी द्वारा रचित चैतन्य चरितामृत में उल्लेख है कि यदि गौरांग न होते तो वृंदावन मिथक बनकर रह जाता। सन् 1486 की फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा को पश्चिम बंगाल के नवद्वीप जनपद के नादिया गाव (मायापुर) में पिता जगन्नाथ मिश्र व मा शचि देवी के घर जन्मे चैतन्य महाप्रभु के जीवन पर विद्वान ब्राह्माणों ने भविष्यवाणी की थी कि बालक का जन्म हरिनाम संकीर्तन में गुजरेगा।
खोजे गए सप्त देवालय
श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर उनके अनुयायी लोकनाथ और भूगर्भ गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, रूप गोस्वामी, गोपालभट्ट गोस्वामी, रघुनाथ भट्ट गोस्वामी, रघुनाथदास गोस्वामी, जीव गोस्वामी आदि गौड़ीय वैष्णवाचार्याे ने शास्त्रों की सहायता से ब्रज की लीला-स्थलियों को प्रकाशित किया। मदनमोहन मंदिर, गोविंद देव मंदिर, गोपीनाथ मंदिर, गोकुलानंद मंदिर, राधारमण मंदिर, राधादामोदर मंदिर व राधाश्यामसुंदर मंदिर सप्त देवालय के रूप में विख्यात हैं। इनमें दर्शन और इनके पौराणिक अध्ययन को 120 देशों के लोग सालभर आते हैं।
इमली का वृक्ष बन गया 'इमलीतला'
शास्त्रों में उल्लेख है चैतन्य महाप्रभु सबसे पहले अक्रूर घाट पर विश्राम किया। वृंदावन प्रवास के दौरान इमली के वृक्ष की छांव में बैठ हरिनाम संकीर्तन किया। भक्तों को उपदेश दिए। अब ये वृक्ष इमलीतला के नाम से बना मंदिर भक्तजनों में श्रद्धा का केंद्र है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।