वृंदावन-- अस्तित्व खोजते प्रस्कंदन व सूरज घाट
वृंदावन समाचार: पतित पावनी यमुना की जो हालत सरकारी अनदेखी के चलते हो रही है, ऐसी ही कुछ स्थिति संरक्षण के अभाव में यमुना किनारे प्राचीन घाटों की है। सूरजघाट का अस्तित्व तो दिखाई देता है, किंतु प्रस्कंदन घाट की स्थिति ऐसी हो चुकी है, कि श्रद्धालुओं को इसके बारे में कोई जानकारी भी नहीं।
वाराह पुराण के मुताबिक जिस समय ब्रजमंडल में अविरल बह रही यमुना में कालीय नाग ने अपना आशियाना बना लिया, जिससे यमुना का जल विषैला हो गया। ब्रजवासी यमुना जल का प्रयोग भी न कर पा रहे थे। तो भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना शुद्धिकरण के लिए रची गयी लीला कालियमर्दन किया था। इस दौरान भगवान जब काफी समय तक यमुना नदी के अंदर रहे तो उन्हें ठंड लग गयी थी। भगवान की ठंड दूर करने के लिए आसमान में 12 सूर्य उन्हें गर्मी देने के लिए आ पहुंचे। जिस स्थान पर 12 सूर्य भगवान को गर्मी देने को पहुंचे उसे द्वादशादित्य टीला कहा जाता है। द्वादशादित्य टीला की भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्थापना कर तीर्थ का दर्जा दिया।
इसी के साथ प्रस्कंदन घाट भी है। पुराण के अनुसार जिस समय भगवान कालीय मर्दन करके यमुना से बाहर निकले और उनके शरीर से जो यमुना जल की बूंदें गिरीं उस स्थान को प्रस्कंदन घाट का नाम दिया गया। सूरज घाट का निर्माण मदनमोहन मंदिर के गोस्वामी समाज ने करवाया था।
द्वापर काल में वृंदावन में जिन स्थानों पर अपनी लीलाओं के माध्यम से विश्व को संदेश दिए। वह पौराणिक महत्व वाले स्थान आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाते नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल में जहां यमुना अविरल रूप से बहा करती थी। वहां आज बड़े-बड़े घर, कॉलोनियों बन चुकी हैं। प्राचीन महत्व वाली इस धार्मिक नगरी में द्वापर काल के कुछ ही अवशेष बचे हैं। इनके संरक्षण को न तो पुरातत्व विभाग न ही शासन स्तर पर कोई ठोस पहल की जा रही है।
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