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    रब की रहमत का नाम ही है रोजा

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 01 Jun 2018 10:48 PM (IST)

    मैनपुरी : रमजान का महीना चल रहा है। मुस्लिम समाज द्वारा खुदा की इबादत की जा रही है। इन दिनों रहमतों की बारिश में दुआ का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

    रब की रहमत का नाम ही है रोजा

    जागरण संवाददाता, मैनपुरी : रहमतों की बारिश में दुआ का सिलसिला बदस्तूर जारी है। रमजान के मुबारक मौके पर हर कोई खुदा के दरबार में अपनी मन्नतों की अर्जी लगा रहा है। कोई मुल्क में अमन-चैन की दुआ मांग रहा है तो कोई मुफलिसी और गरीबी दूर करने की दुआ। लेकिन कई ऐसे भी बंदे हैं जो इंसानी खिदमत को ही खुदा की बंदगी समझ इबादत में मशगूल फिरते हैं।

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    ऐसी ही एक नेकदिल इंसान हैं शकीला बेगम। मुहल्ला महमूदनगर में रहने वाली 66 वर्षीया शकीला बेगम खुदा पर पूरा भरोसा रखती हैं। वह कहती हैं रमजान के मुबारक मौके पर अल्लाह ताला हर दुआ कुबूल फरमाते हैं। लेकिन, दुआ भी तब कुबूल होती है जब दिलों में इंसानियत का जज्बा ¨जदा हो। अल्लाह का हुक्म है कि मेरी बंदगी से ज्यादा जरूरी है गरीब, बेसहारा, दुखियों की मदद करो। इस हुक्म की तामील कर रहीं हैं। रोजा रखने के साथ भूखे लोगों को खाना खिलाना उनकी नेकदिली का प्रमाण है। वह गरीबों को खाना खिलाना कभी नहीं भूलतीं। वह कहती हैं कि अल्लाह के दरबार में उनकी नेकियों का हिसाब होगा। इस जमीन पर तो उनका जो फर्ज है, बस वही पूरा हो जाए।

    मुहल्ला दरीबा निवासी 11 वर्षीय फरीन जहां की नेकदिली भी क्या कमाल है। उन्हें खुद से ज्यादा दूसरों की फिक्र रहती है। वह कहती हैं कि अल्लाह ने इस जहां में पानी के रूप में सबसे खूबसूरत नेमत अता फरमाई है। लेकिन, हम बंदे उसकी नेमत को नहीं समझ पा रहे हैं। पानी सबके लिए जरूरी है, यह जानते हुए भी हम उसकी बेतहाशा बर्बादी करते हैं। आज पानी की कमी से हम सबको जूझना पड़ रहा है। हर बंदे की यह जिम्मेदारी है कि वह पानी की बूंद-बूंद बचाए ताकि आगे आने वाली पीढि़यां हमारा शुक्रिया अता करती रहें।