Navratri 2025: मां के इस मंदिर में चेचक- खसरा रोगों से मिलती है मुक्ति, देश के कोने-कोने से आते हैं श्रद्धालु
शीतला माता मंदिर लगभग 547 साल पुराना है। इसकी स्थापना महाराजा जगतमणि देवजू ने की थी। हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि यहां पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और बीमारियों से छुटकारा मिलता है। चुनाव से पहले नेता भी आशीर्वाद लेने आते हैं। 16वीं शताब्दी में चेचक से मुक्ति के लिए भी माता की आराधना की गई थी।

सौरभ शुक्ला, मैनपुरी। नगर के उत्तरी दिशा में स्थित माता शीतला देवी मंदिर से भक्तों की भारी आस्था जुड़ी है। यह ऐतिहासिक मंदिर लगभग 547 साल पुराना है। यहां हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्र पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
चैत्र मास के नवरात्र पर यहां श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी का भी आयोजन होता है। यहां जिले ही नहीं दूरदराज से श्रद्धालु आकर मैया की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पूजन करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है।
इस मंदिर की स्थापना मैनपुरी राज्य वंश के 11 वें महाराजा जगतमणि देवजू ने वर्ष 1478 में कराई थी। महाराजा जगतमणि देवजू शीतला माता के अनन्य उपासक थे। वह प्रतिवर्ष अपना राजपाठ छोड़ अपनी सेना के साथ प्रयागराज के गांव कड़ा स्थित शीतला माता के दर्शन को जाते थे।
एक बार वह माता के दर्शन को गए थे। रात्रि हाेने पर वह अपनी सेना के साथ वहां पर विश्राम करने लगे। आंख झपकते ही माता ने स्वप्न दिया कि तुम राज पाठ छोड़ मेरे दर्शन को आते हो। तुम मुझे अपने साथ ले चलो और वहां एक मंदिर की स्थापना कराओ।
महाराजा ने दूसरे दिन दर्शन के बाद जब वापस चले तो देखा कि एक ज्योति उनके काफिले के पीछे रोशनी देती हुई आ रही है। उन्होंने मैनपुरी आकर कुरावली रोड पर मां आद्या शक्ति की मूर्ति को विराजमान कराने के लिए भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
इसमें कड़ा स्थित आद्या शक्ति की ऐसी कलात्मक प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठित कराई, जो तत्कालीन मूर्तिकला, शिल्पकला, वास्तुकला और पुरातात्विक दृष्टिकोण से मूल्यवान कृति है। तब से मंदिर में दोनों नवरात्र में यहां मां विशेष पूजा-अर्चना होती है और श्रद्धालु आकर पूजा-पाठ संपन्न कराकर भंडारे आदि का प्रबंध कराते हैं।
चैत्र नवरात्रि में यहां लगती है ग्राम्य सुधार प्रदर्शनी
चैत्र नवरात्रि में यहां जिला प्रशासन के द्वारा कादंबरी रंग मंच पर ग्राम्य सुधार प्रदर्शनी का आयोजन जिलाधिकारी की अध्यक्षता में कराया जाता है। जिसमें ग्रामीण अंचल के कार्यक्रमों के अलावा साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन कराया जाता है। इस दौरान नुमाइश मैदान में भारी मेले का आयोजन होता है, जिसमें नगर सहित आसपास के लोगों इस नुमाइश को देखने आते हैं।
मंदिर से जुड़ी है लोगों की आस्था
यह मंदिर नगर सहित अन्य प्रदेशों के श्रद्धालुओं के साथ राजनीति से जुड़े लोगों की भी आस्था का केंद्र बना हुआ है। जब भी कोई जन प्रतिनिधि अपने चुनाव से पूर्व नामांकन करता है तो माता का आशीर्वाद लेकर ही अपना नामांकन दाखिल करता है।
जनप्रतिनिधियों की मानें तो जिसने भी अपने चुनाव से पूर्व माता की सच्चे मन से प्रार्थना की और मनौती मांगी, उसकी मनोकामना माता रानी ने अवश्य पूर्ण की।
चेचक व खसरे रोग से मिलती है मुक्ति
मंदिर के पुजारी रामनरेश शुक्ला बताते हैं कि 16 वीं शताब्दी में नगर एवं आसपास के स्थलों में बड़ी चेचक और खसरे का गंभीर प्रकोप हुआ तो मां आदिशक्ति की ख्याति के कारण जनसमुदाय ने देवी मां का जप और आराधना की।
यह रोग उनकी भस्म और असीम कृपा से दूर हो गया। चूंकि इस रोग में गर्मी की अधिकता रहती है, उससे शीतलता प्रदान करने वाली शक्ति का नाम शीतला देवी के रूप में ख्याति प्राप्त हो गया। यहां नेजा चढ़ाने की भी पुरानी परंपरा है।
मंदिर के पुजारी नीरज दुबे ने बताया कि उनकी पांचवीं पीढ़ी के बुजुर्गों ने मंदिर की सेवा की है। मंदिर पर जो भी सच्चे मन से आया, उसकी मनोकामना पूर्ण हुई। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु यहां आकर माता का छत्र व नेजा चढ़ाते हैं।
ऐसे पहुंचे शीतला देवी मंदिर
- घंटाघर चौराहे से देवी रोड पर दो किमी दूर
- ईशन नदी पुल से कुरावली रोड पर दो किमी दूर
- सिंधिया तिराहे से ज्योंती बाईपास रोड होते हुए तीन किमी
- करहल चौराहे से ईसन नदी पुल होते हुए पांच किमी
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