UP Politics: पंचायत चुनाव में भाजपा की कल्याण धुन के मुकाबले सपा का पीडीए दांव, पार्टियों की अनूठी रणनीति
पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। भाजपा कल्याण धुन के सहारे जीत हासिल करने की कोशिश कर रही है वहीं सपा पीडीए के फॉर्मूले से मुकाबला कर रही है। भाजपा लोधी राजपूतों को साधने के लिए कल्याण सिंह के नाम का सहारा ले रही है जबकि सपा पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक समुदाय को एकजुट करने में लगी है। कांग्रेस भी पुनर्गठन के दौर से गुजर रही है।

चंद्रशेखर गौड़ l जागरण मैनपुरी। अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के दौरान सरकार गंवाकर हिंदू ह्रदय सम्राट बने बाबूजी कल्याण सिंह की धुन इस समय भाजपाइयों द्वारा खूब गुनगुनाई जा रही है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद से तो इस धुन की गूंज तेज ही होती गई है। यही कारण है कि कमल दल पंचायत चुनाव में जीत का आशीर्वाद पाने के लिए इस धुन को गुंजायमान रखना चाहता है। वहीं इस धुन की काट करने के लिए साइकिल भी पीडीए के पैडल को तेज घुमा रही है। सपा का गढ़ कहे जाने वाली मैनपुरी में पंचायत चुनाव की बिसात बिछना शुरू हो गई है। सपाई यहां भले ही अपना गढ़ मानते हों लेकिन पिछली बार कम सीटें होने के बाद भी भाजपा ने यहां जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अपना परचम लहरा दिया था। यही कारण है कि इस बार भी चुनावी रणक्षेत्र में विजय पताका फहराना सपा के लिए इतना आसान नहीं लग रहा। वहीं जनपद में लोधी राजपूतों की अच्छी खासी संख्या होने के कारण जिले में बज रही कल्याण धुन भी उनकी धड़कनें बढ़ा रही है। भाजपा ने लोधी राजपूतों को साधने के लिए जहां पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह बाबूजी की धुन का सहारा लिया है। वहीं उन्होंने हाल ही में इसी बिरादरी से आने वाली ममता राजपूत को भी जिलाध्यक्ष बनाया है। ताकि सपा इस जातीय गणित में उलझ जाए।
किलेबंदी में जुटी सपा
सपा अपने इस गढ़ को बचाने के लिए किलेबंदी में जुटी है। इसके लिए पहले पीडीए साइकिल यात्रा निकाली गई। अब गांव-गांव पीडीए पंचायत, पीडीए पाठशाला और पीडीए सम्मेलनों का आयोजन कराया जा रहा है। इसके माध्यम से पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यकों को साधने की जुगत लगाई जा रही है। साथ ही इन सम्मेलनों में शामिल होकर वरिष्ठ नेता कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर पार्टी का संदेश मतदाताओं तक पहुंचाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
पुनर्गठन के दौर से गुजर रही कांग्रेस
इस समय जनपद में कांग्रेस पुनर्गठन के दौर से गुजर रही है। हाल ही में जिलाध्यक्ष व शहर अध्यक्ष बदले गए हैं। इनमें जिलाध्यक्ष गोपाल कुलश्रेष्ठ व शहर अध्यक्ष डा. नागेंद्र यादव को बनाया गया है। यह अभी अपनी कार्यकारिणी गठन की प्रक्रिया में ही जुटे हैं। ऐसे में इनके लिए पंचायत चुनाव दूर की कौड़ी लग रहा है। हालांकि जिलाध्यक्ष सभी सीटों पर लड़ने का दावा करते हैं।
पीडीए फार्मूले को धार दे रही सपा
समाजवादी पार्टी भी इस खतरे को समझ रही है और उसने काट के लिए अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के फार्मूले को धार देना शुरू कर दिया है। गांव-गांव पीडीए पंचायत कर गढ़ को बचाए रखने के लिए नींव मजबूत की जा रही है। राजनीतिक मानचित्र पर मैनपुरी को सपा के अभेद्य दुर्ग के तौर पर देखा जाता है। वर्ष 1993 से लेकर वर्ष 2016 तक जिला पंचायत की सीट पर सपा का ही कब्जा रहा। सुमन यादव यहां लगातार तीन बार जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं।
बसपा सरकार में आशु दिवाकर सपा से ही जिला पंचायत अध्यक्ष रहे। सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन व भाजपा विधायक प्रत्याशी अनुजेश यादव की पत्नी संध्या यादव वर्ष 2016 में जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं। लेकिन वर्ष 2021 में सपा का यह गढ़ भाजपा के रणनीतिकारों के बनाए गए चक्रव्यूह में ढह गया और यहां से भाजपा समर्थित अर्चना भदौरिया जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं। जबकि इस पंचायत चुनाव में सबसे अधिक 13 सपा समर्थित प्रत्याशी जिला पंचायत सदस्य बने थे। वहीं भाजपा के मात्र आठ प्रत्याशी जीते थे।
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