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    भीख मांगने की घिनौनी प्रथा पर कब लगेगा अंकुश

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    Updated: Mon, 17 Oct 2011 10:44 PM (IST)

    मैनपुरी: रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुं मांगन जायें।उनते पहले बेमुए, जिन मुख निकसत नांहि। संत रहीम दास की यह पंक्तियां भीख मांगने वालों पर ही नहीं द्वार से भिखारियों को बिना भीख दिये लौटाने वालों पर भी करारी चोट करती हैं। साथ ही यह किसी भी सभ्य समाज पर भी करारा तमाचा है जहां भिखारियों की फेहरिस्त लंबी है। कानून की किताब में भी भीख मांगने को गैर कानूनी बताया गया है। बावजूद इसके भिखारियों की संख्या कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही है।

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    हर गली, कूंचे में लोगों के घरों के दरवाजे खटखटाकर और दुकानों पर भीख मांगते हुए जवान, बूढे़, औरतों, बच्चों को देखा जा सकता है। यही नहीं औरतें तो बीमार बच्चों और जवान लड़की का सहारा लेकर घर-घर भीख मांगती हैं। नगर क्षेत्र में भीख मांग कर खाने-कमाने वाले भिखारियों की संख्या कम से कम 5 हजार से अधिक होगी।

    यही नहीं यह भिखारी बाकायदा पक्के मकानों में रहते हैं, लेकिन घर-घर जाकर भीख मांगना इनका पेशा बन चुका है। जबकि वास्तविक आंकड़े बताते हैं कि पूरे जिले में भिखारियों की संख्या 7 हजार से अधिक नहीं होगी। आखिर ऐसे में आंकड़ों से अधिक भिखारियों पर कानून का शिकंजा क्यों नहीं कसता है जो कि भीख मांगने की प्रथा को बढ़ावा ही नहीं दे रहे, बल्कि समाज पर भी एक बदनुमा दाग हैं जो कि लाचारी और गरीबी का चोला ओढ़कर भीख मांग कर समाज और देश का मजाक उड़वाते हैं कि वे आलसी और कामचोर हैं जो भीख मांग सकते हैं, लेकिन शारीरिक श्रम नहीं करते हैं।

    नगर के मोहल्ला भरतवाल निवासी सत्यपाल कहते हैं कि उन्हें 6 महीने में 18 सौ रुपये पेंशन मिलती है। जो सही समय पर नहीं मिलती, जबकि घर में उनकी मां है व पैरों से विकलांग होने के चलते भीख मांगते हैं।

    धारा सिंह गोस्वामी कहता है वह शरीर से अक्षम है। दो बेटियों, एक बेटा सहित परिवार की जिम्मेदारी है, जबकि वार्ड सदस्य मुरारी पर आरोप लगाया कि उसका एपीएल कार्ड बना दिया गया है। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई होती नहीं है, इसलिए वह अपने बच्चों को भीख मांगकर एसएस पब्लिक स्कूल में पढ़ा रहा है।

    गिर्राज भारती को भीख न मांगने पर अन्य भिखारी परेशान करते थे, तो उसने नागा अखाड़ा की सदस्यता ग्रहण की तब जाकर वह साधु का वेश धर कर भिक्षा भ्रमण कर पाये। ताकि परिवार का पेट पल सके। उनका भरा पूरा परिवार केवल भीख के सहारे चलता है।

    रविन्द्र गिरि भी भीख भ्रमण करते हैं और अपने पांच भाइयों सहित परिवार का पेट पालते हैं। वह कहते हैं कि उनका छोटा भाई धीरज 13वीं (बीए प्रथम वर्ष) तक पढ़ा है। जब नौकरी नहीं मिली तो वह भी भीख मांगने लगा।

    मुकेश गोस्वामी भी खुद को शारीरिक रूप से अक्षम बताता है और भीख मांगने के लिए अपनी दाढ़ी बढ़ाकर रखने पर भी उसे अफसोस था कि वह साधारण जिंदगी नहीं जी सकता।

    महाराज गोस्वामी स्वयं 10वीं पास हैं और उनका लड़का सब्जी बेचता है। जबकि वह खुद भीख मांगकर परिवार का गुजारा करते हैं। वह कहते हैं कि इस मोहल्ले में रहने वालों के लिए भीख मांगना पुश्तैनी धंधा बन चुका है। यदि सरकार उन्हें रोजगार दे तो वह सभी भीख कभी न मांगे।

    पीढ़ी दर पीढी भिखारियों द्वारा भीख मांगने की घृणित प्रथा को विरासत के तौर पर आगे बढ़ाकर भीख मांगी जा रही है। साथ ही शारीरिक अक्षमता और सरकारी मदद न मिलने से भी यह धंधा भिखारी छोड़ नहीं पा रहे हैं। वहीं हर रोज सैकड़ों बच्चों को भीख मांगने पर लगाकर प्रारंभ से ही उनकी झिझक खोल दी जाती है, जिससे वह बाद में भी भीख मांगने का काम ही सबसे आसान समझते हैं।

    सामाजिक संगठन भी आगे आएं: डीएम

    जिलाधिकारी रणवीर प्रसाद का कहना है कि भीख मांगने में प्रतिबंध लगाने संबंधी शासनादेश की उन्हें कोई जानकारी नहीं है। लेकिन 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम कराने वालों के विरुद्ध कार्रवाई होगी। बच्चों का अनिवार्य शिक्षा दी जायेगी और कमजोर तबके के लोगों के लिए पुनर्वास व्यवस्था की जायेगी इसके लिए सामाजिक संगठन भी आगे आएं।

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