Ganesh Chauth 2025: इस बार भी न हो पाई गणपति बप्पा की ‘रिहाई’... तारीखों में उलझी मुक्ति, कैसे मिटे विघ्न
Ganesh Chauth 2025 मैनपुरी के कुरावली में 2006 में गणेश मंदिर से चोरी हुई प्रतिमा 2007 में बरामद हुई लेकिन दो परिवारों के स्वामित्व विवाद के चलते वह अभी भी थाने के मालखाने में कैद है। न्यायालय में मामला विचाराधीन है और मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। वर्षों से विघ्न विनाशक गणेश अपनी मुक्ति का इंतजार कर रहे हैं।
चंद्रशेखर गौड़, मैनपुरी। भगवान राम का वनवास तो 14 वर्ष के बाद पूर्ण हो गया था, लेकिन विघ्न विनाशक गजानन की मुक्ति की हर युक्ति तारीखों में उलझ गई है। कस्बा कुरावली में स्थित गणेश मंदिर में चोरों ने 2006 की रात गजानन की प्रतिमा चोरी कर ली थी।
वर्ष 2007 में प्रतिमा बरामद कर ली गई। इसे कुरावली थाने के मालखाने में सुरक्षित रखवा दिया गया। तभी से मामला न्यायालय में विचाराधीन है। वहीं इस मंदिर पर दो परिवार अपने स्वामित्व की लड़ाई न्यायालय में लड़ रहे हैं। इसके चलते सभी को पापों से मुक्त करने वाले विघ्नविनाशक खुद अपनी मुक्ति की राह देख रहे हैं।
कुरावली में वर्ष 2006 में गणेश मंदिर से चोरी हुई थी प्रतिमा, 2007 में हुई बरामद
कस्बा कुरावली के मुहल्ला कानूनगोयान में स्थित गणेश मंदिर में चोरों ने 23 फरवरी 2006 की रात गजानन की प्रतिमा चोरी कर ली थी। तीन फीट ऊंची और एक कुंतल वजनी काले संगेमूसा पत्थर की बनी यह प्रतिमा बेशकीमती बताई जाती थी।
भगवान की चोरी के बाद सतर्क पुलिस ने 28 जनवरी 2007 को एक खेत से बरामद कर ली और कुरावली थाना के मालखाना में सुरक्षित रख दी। मामला न्यायालय में विचाराधीन है। तब से लेकर अब तक 18 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन सबके दुख हरने वाले विघ्नविनाशक खुद अपनी मुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
दो पक्षों के बीच स्वामित्व के विवाद के चलते मालखाने में ही कैद है गणेश प्रतिमा
मृत्युलोक में न्याय के मंदिर में पड़ रही सरकारी तारीखों का सिलसिला अभी भी समाप्त नहीं हो पाया है। उधर, मंदिर पर वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे दो परिवार प्रतिमा पर अपना-अपना दावा ठोकते हैं। चोरी के बाद से उपजा विवाद अब जुबानी के साथ न्यायिक रार बन चुका है। मंदिर पर स्वामित्व को लेकर तो दोनों पक्ष आमने-सामने हैं। उधर, वर्दी की सुरक्षा में खुद भगवान अपने न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
दक्षिण भारत से आया था पत्थर, उदयपुर में बनी थी प्रतिमा
मुहल्ला कानूनगोयान निवासी भगवती प्रसाद तिवारी ने अंग्रेजी शासन काल में गणेश मंदिर का निर्माण आरंभ कराया। उस समय वह राजस्थान में महाराजा डूंगरपुर की रियासत में कारिंदा थे। उन्होंने दक्षिण भारत से संगेमूसा पत्थर मंगाया और उदयपुर में गणेश प्रतिमा का निर्माण शुरू कराया। प्रतिमा के उदयपुर से कुरावली आने से पहले ही इनकी मृत्यु हो गई तो इनकी पत्नी जल देवी ने बाद में प्रतिमा की स्थापना कराई। इनके एक ही पुत्र दीपक था, जिसकी अल्पायु में ही मृत्यु हो गई।
जलदेवी के मायके पक्ष करते हैं पूजा पाठ
जलदेवी के मायके पक्ष के रमन दत्त मिश्रा इस समय मंदिर में पूजा पाठ करते हैं। उन्होंने बताया कि जलदेवी उनके बाबा की बुआ थीं। उनके बाद से हमारे पूर्वज ही मंदिर में पूजा पाठ करते हुए आए हैं लेकिन कुछ साल पूर्व संजय शर्मा नामक व्यक्ति ने इस मंदिर पर अपना वर्चस्व दिखाते हुए न्यायालय में वाद दायर कर दिया। इसके बाद सुरेशचंद तिवारी प्रतिवादी बन गए। यह लोग भगवती प्रसाद के भाई- भतीजे वाली पीढ़ी से हैं।
जीर्ण-शीर्ण हो चुका है मंदिर
रमन दत्त मिश्रा बताते हैं कि न्यायालय में स्वामित्व का वाद दायर होने के कारण मंदिर की स्थिति जीर्ण शीर्ण हो चुकी है। यहां हम लोग कोई निर्माण अथवा मरम्मत कार्य नहीं करा सकते हैं। ऐसे में यदि हम लोग प्रतिमा को मालखाना से मुक्त भी करा लेते हैं तो उसकी सुरक्षा कैसे हो सकेगी। यही कारण है कि प्रतिमा भी मालखाना में ही रखी है।
गणेशजी की प्रतिमा मालखाना में सुरक्षित रखी है। प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है। न्यायालय द्वारा निर्णय सुनाए जाने के बाद ही इसमें कुछ निर्णय लिया जा सकेगा। - धर्मेंद्र कुमार सिंह चौहान, थाना प्रभारी निरीक्षक
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