यूपी के इंजीनियर्स का कमाल! ऐसी डिवाइस बनाई जो हवा से विषैली गैस सोखकर बनाती है 'ऑक्सीजन'; कैसे करती है काम?
मैनपुरी के राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज के इंजीनियरों ने पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक ब्लैक कार्बन कैप्चरिंग डिवाइस बनाई है। यह डिवाइस हवा में मौजूद कार्बन और अन्य विषैली गैसों को सोखकर उन्हें शुद्ध ऑक्सीजन में बदल देती है। डिवाइस 500 मीटर के दायरे में काम कर सकती है और प्रदूषण स्तर को 80-90% तक कम कर सकती है।

बीरभान सिंह, मैनपुरी। वैश्विक संकट बन चके पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए इंजीनियरों की सोच ने आकार लिया तो उम्मीदें आसमान छूने लगीं। इंजीनियरिंग कालेज में चार वर्ष पूर्व महज दो लाख के बजट से शुरू हुए शोध में इंजीनियरों ने एक डिवाइस तैयार की है।
ये डिवाइस हवा में घुलने वाले कार्बन व अन्य विषैली गैसों को तेजी से शोषित करती है। इसके साथ ही कार्बन और अन्य विषाक्त गैसों को डिवाइस में लगे छोटे सेंसर व इलेक्ट्रोड शुद्ध प्राणवायु में परिवर्तित कर देते हैं। इसे 'ब्लैक कार्बन कैप्चरिंग' डिवाइस का नाम दिया गया है। इस सफलता को बड़े राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की तैयारी है।
देश में कोविड काल खत्म होने के बाद 2020 में केंद्र सरकार ने पर्यावरण पर शोध कार्यों को लेकर योजना तैयार करने के निर्देश दिए। इसमें इंजीनियरिंग कालेजों में प्रोजेक्ट बनाए गए।
देवी अहिल्याबाई होल्कर राजकीय इंजीनियरिंग कालेज के मानविकी विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर मत्स्येंद्र नाथ शुक्ल ने कार्बन शोधन के लिए एक डिवाइस का प्रोजेक्ट तैयार किया।
इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी देते हुए प्रदेश सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने फंड स्वीकृत कर दिया। प्रोजेक्ट में असिस्टेंट प्रोफेसर शुक्ल के साथ बीई फर्स्ट ईयर स्टूडेंट आकाश कुमार पटेल व सिद्धांत के साथ काम शुरू किया।
आकाश पटेल ने माडल का डिजाइन बनाया और सिद्धांत ने तकनीकी पक्ष पर काम किया। तीन साल बाद 2024 नवंबर में डिवाइस तैयार हुई और लगातार टेस्टिंग शुरू की गई। शोध के तकनीकी प्रमुख सिद्धांत ने बताया कि लगातार एक वर्ष तक माड्यूल की रीडिंग दर्ज की गई है।
प्रदूषण का स्तर 80 से 90 प्रतिशत तक कम मिला है। तैयार की गई डिवाइस 500 मीटर की परिधि के कार्बन और हानिकारक गैस को सोखकर उसे शुद्ध आक्सीजन में परिवर्तित करने में सक्षम है।
ऐसे तैयार की गई डिवाइस
डिवाइस के आरंभिक माडल के लिए प्लास्टिक के एक बड़े कंटेनर में पीवीसी पाइप को लगाया गया है। इनकी मदद से कार्बन युक्त धुआं कंटेनर में पहुंचता है। कंटेनर में 10 प्रकार के अलग-अलग स्मोक सेंसर लगाए गए हैं, जो धुएं के साथ होने वाली रिएक्शन को एक मानीटर पर प्रतिशत में दर्शाते हैं।
इसमें कार्बन व गैसों की मात्रा भी प्रदर्शित होती है। प्लास्टिक के कंटेनर में एकत्र कार्बन युक्त हवा को पीवीसी पाइप की मदद से स्टील के कंटेनर में भेजा जाता है। यहां कार्बन गैस से हवा अलग होती है और कार्बन पाउडर रूप में एकत्र हो जाता है।
हवा को पीवीसी पाइप से गुजारते हुए प्लास्टिक के कंटेनर से गुजारा जाता है जो फिल्टर चैंबर से होते हुए अंतिम प्लास्टिक के कंटेनर में पहुंचती है। शुद्ध हवा को मापने के लिए एक अलग कंटेनर में मोशन सेंसर और एक्यूआइ सेंसर को मानीटर से जोड़कर मापा जा रहा है।
एयर प्यूरीफायर्स से इस तरह अलग है डिवाइस
प्रो. मत्स्येंद्र नाथ शुक्ल का कहना है कि हमारे द्वारा तैयार ब्लैक कार्बन कैप्चरिंग डिवाइस शोध पर आधारित है जो कार्बन को अवशोषित करने के साथ उसके स्वरूप को परिवर्तित करेगा। जबकि बाजार में जो प्यूरीफायर मिलते हैं, उनमें सिर्फ हवा को शुद्ध करने का दावा होता है।
उसे प्रमाणित नही किया जाता। ये कार्बन को फ़िल्टर कर सकते हैं, लेकिन उसे सॉलिड रूप में परिवर्तित नहीं करते। हमारी डिवाइस हवा को शुद्ध करने के साथ कार्बन को भी सॉलिड रूप में रखेगी। इस कार्बन से हम ईंट, सड़क, प्लास्टिक या अन्य सामग्री बना सकेंगे।
ये है आगामी योजना
असिस्टेंट प्रोफेसर मत्स्येंद्र नाथ शुक्ल बताते हैं कि इस डिवाइस पूरी तरह से तैयार होने के बाद उसे ट्रैफिक सिग्नल वाले खंभों के साथ सर्वाधिक भीड़भाड़ वाले क्षेत्र, फैक्ट्री, ईंट भट्ठों आदि में लगवाया जाएगा। वाहनों के धुएं से निकलने वाले कार्बन और अन्य विषाक्त गैसों को यह डिवाइस तत्काल सोखकर उसे शुद्ध प्राणवायु में परिवर्तित कर देगी।
ठोस रूप में परवर्तित कार्बन का प्रयोग रबर के टायर आदि बनाने में किया जा सकेगा। डिवाइस तैयार होने के बाद कैंब्रिज की मेसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान के विशेषज्ञों के अतिरिक्त आइआइटी मद्रास, आइआइएम अहमदाबाद, आइआइटी कानपुर और आइआइटी मुंबई के इंजीनियर्स के साथ डाक्टर्स की टीम से संपर्क कर उन्हें शोध के बारे में अवगत कराय है। हम इन सभी से आनलाइन संपर्क में हैं।
हमारी टीम द्वारा जनहित में कई शोध कार्य किए जा रहे हैं, उनमें से ब्लैक कार्बन कैप्चरिंग डिवाइस सबसे महत्वपूर्ण है। प्राथमिक स्तर पर बड़ी सफलता मिली है। इसके लिए राज्यपाल सम्मानित कर चुकी हैं। अब हम अगले चरण की ओर बढ़ रहे हैं।
- प्रो. दीपेंद्र सिंह, निदेशक, राजकीय इंजीनियरिंग कालेज।
यहां प्रदर्शित किया अपना मॉडल
- वर्ष 2021 में आइआइटी कानपुर में प्रथम चरण के प्रोटोटाइप का प्रदर्शन किया गया था।
- 2022 में अमेरिका की मेसाचुसेट्स यूनीवर्सिटी ने विश्व के 100 अच्छे आइडिया में इसे चुने और अपना आनलाइन प्लेटफार्म भी दिया।
- वर्ष 2023 में झारखंड में प्रोजेक्ट को प्रदर्शन के आधार पर नेशनल एंटरप्रेन्योरशिप विनर के अवार्ड से सम्मानित किया गया।
- वर्ष 2024 में इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टाक्सिकोलाजी रिसर्च लखनऊ ने शोध की सराहना की और आइआइटी बाम्बे ने इसे सराहनीय बताया।
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