जीव हत्या पाप है तो भ्रूण हत्या महा पाप
मैनपुरी : धर्म व धर्म ग्रन्थों में जीव हत्या करना पाप है तो भ्रूण हत्या करना महा पाप है। धर्म ग्रन्थों में स्त्री को शक्ति रूपी देवी मान कर पूज्यनीय माना जाता है। ऐसे में कन्या भू्रण हत्या तो महा पाप है हर धर्म भी स्वीकार करते है।
दुनियां के किसी भी धर्म एवं धर्म ग्रन्थों मे जीव हत्या करने का अधिकार किसी को नहीं दिया गया। जीव को जन्म देना और उसकी मौत होना ईश्वरीय कार्य बताये गये है। अजन्मे शिशु को चाहे वह कन्या हो अथवा पुत्र गर्भ में ही समाप्त कर देना जघन्य अपराध भी और धर्मानुसार महा पाप भी।
धर्म ग्रन्थों के अनुसार महाभारत काल में योगी राज कृष्ण ने अमृत्व प्राप्त करने वाले गुरू द्रोण के पुत्र अस्वस्थामा को भू्रण हत्या के प्रयास दण्ड देते हुए उसकी अमूल्य धरोहण मणि छीन ली थी जिसके अभाव में शक्ति विहीन हो गया था। उल्लेखनीय है कि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को मारने का प्रयास अस्वस्थामा ने किया था तब उसकी रक्षा के लिए स्वयं भगवान कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में प्रवेश कर भू्रण रक्षा की थी। यही कारण है धर्म ग्रन्थ में जीव अथवा भ्रूण हत्या के विरोधी है।
धर्म ग्रन्थों के अनुसार नारी को शक्ति का स्वरूप माना गया है। इसके लिए हर युग में महा पुरूषों ने उसकी पूजा की है। नारी ने अपने गर्भ से महा पुरूषों के साथ साथ ईश्वरीय शक्ति को भी जन्म दिया है। यही कारण की नारी को जगत जननी एवं सृष्टि निर्माता भी कहा गया है। और सृष्टि को समाप्त करने का अधिकार पृथ्वी लोक वासियों को किसी भी धर्म ग्रन्थ ने नहीं दिया है। यही कारण है कि भ्रूण हत्या पाप ही नहीं महा पाप भी है। इस पाप के लिए पानी को सौ जन्मों तक नरक के कष्टों को झेलना पड़ता है।
धर्म शास्त्रों में भी जीव हत्या पाप
नगर के प्रतिष्ठित कर्मकाण्डी यज्ञाचार्य इन्द्रपाल त्रिपाठी का कहना है कि धर्म शास्त्रों में भी जीव हत्या को पाप बताया गया है। उनका कहना है कि भू लोक में आने वाले जीव को जीवन एवं मृत्यु देने का अधिकार परमात्मा है। जीव हत्या हर धर्म में दण्डनीय कार्य है। वहीं गर्भ में पल रहे भू्रण की हत्या करना महा पाप है। फिर नारी को तो शक्ति की देवी मान कर इश्वरीय अवतारों ने भी सम्मान दिया है। जिसके चलते महाभारत में द्रोपती के चीरहरण पर भगवान कृष्ण उनकी लाज बचाने दौड़े चले आये थे।
श्री एकरसानंद संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डा. ग्याप्रसाद दुबे का कहना है कि रामचरित मानस के अनुसार नारी के सम्मान में राक्षस प्रवृति के रावण ने भी सीता का सम्मान रखते हुए उन्हे अपहरण के बाद भी अशोक वाटिका में नारियों के संरक्षण में रखा था। नारी का सम्मान हर युग में होता आया है।
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