ताजी पी तो दवा, बासी तो दारू
रघुवीर सलूजा,भोगांव
ताड़ी की तासीर ही ऐसी है। सुबह-सुबह खाली पेट अगर ताजी ताड़ी पी तो पेट के विकार दूर हो जाएंगे। बासी यानी सुबह की उतरी ताड़ी शाम को गटकी तो नशे में झूमने लगते हैं। ताड़ के ऊंचे-ऊंचे पेड़ पर लटके लोटे बता रहे हैं कि अब ताड़ी की बहार आ गई है।
नगर के इर्द-गिर्द क्षेत्रों में ताड़ के पेड़ों के चलते जनपद के अलावा आसपास के जिलों से भी ताड़ी खरीदने और पीने लोग आते हैं। आबकारी विभाग की अनुमति के बिना ताड़ी उतारना एवं उसकी बिक्री कानूनी है। इसके लिए विभाग ताड़ी उतारने वालों से शुल्क लेता है। ताड़ी उतारने वाले एक कारिंदे रिंकू निवासी नगला भगत ने बताया है एक पेड़ से औसतन पांच लीटर ताड़ी प्रतिदिन निकलती है। लोटे में एकत्र ताड़ी को सुबह और शाम दूसरे लोटे में पलट कर पुन: उस लोटे को पेड़ पर लटका देते हैं। जब फल से ताड़ी टपकना बंद हो जाती है तो उसे पुन: छील दिया जाता है।
ताड़ के पेड़ में नर एवं मादा फल होते हैं। मादा फल की ताड़ी मीठी होती है। फल कच्चे काटने पर उसमें गरी निकलती है। सावन माह में जब फल पक जाता है तो वह काफी मीठा एवं स्वादिष्ट होता है। प्रात: खाली पेट ताड़ी का सेवन करने पर पेट के सभी प्रकार के विकार ठीक हो जाते हैं, परंतु कुछ लोग ताड़ी का सेवन नशे के रूप में करते हैं। ताड़ी के शौकीन लोगों का कहना है ताड़ी में हल्का सुरूर होता है। मांग बढ़ने पर मिलावटखोर इसमें पानी, सैक्रीन, नशीली गोलियां मैंड्रेक्स आदि मिलाकर बेचते हैं। ऐसी ताड़ी से बचना चाहिए।
चंद रुपयों के लिए इतना जोखिम
रिंकू का कहना है वह चंद सिक्कों की खातिर बीस से तीस मीटर की लम्बाई के पेड़ों पर चढ़कर अपनी जान जोखिम में डालते हैं, लेकिन यह उसका पुश्तैनी धंधा है। उसके बाबा रामलाल भी यही काम करते थे। लगभग दो माह में वह दस हजार रुपये तक कमा लेता है। पेड़ पर चढ़ने के दौरान कभी-कभी मधुमक्खियां भी हमला कर देती हैं।
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