भगवान के मुख की वाणी है गीता: डॉ. पंत
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मैनपुरी: गीता मनुष्य को स्वयं पहचाने का साधन है। दुनिया का महत्वपूर्ण ग्रंथ है गीता भगवान के हृदय का अभाव है। जिसका अश्रय लेकर वे तीनों लोकों का पालन करते हैं। उक्त विचार वृदांवन से आये गीता मर्मज्ञ डॉ. रवींद्र नाथ पंथ ने नगर के देवी रोड स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर पर आयोजित गीता जयंती समारोह में व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि गीता भगवान के मुख की वाणी है। जो वेद के अंतिम भाग उपनिषदों का निष्कर्ष है। उन्होंने कहा कि परमात्मा करुणा के सागर है वे सभी का उद्धार करते हैं अत्यंत दुराचारी भी अनंय भाव से भजन करने पर ईश्वर का भक्त बन जाता है। गीता में भगवान ने कहा है कि तुम मुझे अपना मन दे दो जो लोग भगवान को मन में रखते हैं उन्हें ज्ञान की प्राप्ति होती है और उनके मन को शांति मिलती है।
डॉ. महेश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि गीता मानव जीवन की कल्याण मयी जिज्ञासा का अर्विभाव है। इसकी भाषा शैली दाशर्निक है। क्योंकि इसका आधार उपनिषद है। इस अमृतवाणी को हृदय में धारण करना अत्यंत कल्याण कारी है।
डॉ. इंद्र पाल त्रिपाठी ने कहा कि गीता में भगवान ने कामनाओं का त्याग करने का उपदेश दिया है। क्योंकि कामना ही मनुष्य में अधर्म पैदा करती है। वृदांवन के प्रभानंद महाराज ने कहा कि शरणागत होने पर भगवान हमारा योगक्षेम वहन करते हैं क्योंकि वे सर्वकारण के कारण है। हम लोगों संसारिक माया में लिप्त होकर उन्हें भूल जाते हैं। इस अवसर पर गीता भक्त देवकी नंदन मिश्र को मुख्य अतिथि द्वारा शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। पं. शीलनामाचार्य को गीता ग्रंथ भेंट किया गया। कार्यक्रम में लाखन सिंह भदौरिया, श्रीकृष्ण मिश्र, सत्य सेवक मिश्र, कै. ब्रह्मानंद तिवारी, राजेंद्र तिवारी, जेसी त्रिपाठी, प्रमोद दुबे बाबा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। विश्वंभर दयाल मिश्र ने अतिथियों का स्वागत किया एवं रामप्रकाश पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन भारतभूषण मिश्रा ने किया।
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