मैनपुरी षड्यंत्र केस में ढेर हो गए थे 50 गोरे
मैनपुरी: अंग्रेजों के अत्याचार और घोर दमन के कारण जिलेभर भीषण असंतोष से बादल मंडराने लगे थे। युवकों का रक्त उबाल मार रहा था। 1915-16 के वाराणसी षड्यंत्र का जो विस्फोट हुआ, मैनपुरी भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इसी के तहत अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए वर्ष 1916 में एक क्रांतिकारी संस्था का गठन किया गया। जिसका नाम मातृवेदी रखा गया। इसके बाकायदा अपने सैनिक, घुड़सवार तथा हथियार थे। 1918 में भीषण संघर्ष के दौरान यहां 50 गोरे सैनिकों को मार गिराया गया था। युद्ध में 35 क्रांतिकारी भी शहीद हुए थे।
मातृवेदी का नेतृत्व शिवकृष्ण कर रहे थे तथा रामप्रसाद बिस्मिल, गंगा सिंह तथा गेंदालाल दीक्षित सारे प्रदेश में क्रांतिकारियोंको संगठित करने में जुटे थे। इसी बीच दलपति सिंह नामक गद्दार और अग्रेजों के पिट्ठू ने दिसंबर 1918 में जिलाधिकारी को संस्था की गतिविधियों की जानकारी दे दी। कहा कि शिवकृष्ण राजनैतिक अराजकतावादी है और इसके दल का काम डकैती डालना है। इसके लिए छपट्टी मुहल्ला में हथियार इकट्ठे किए गए हैं। साथ ही चंद्रधर जौहरी, गोपीनाथ, सिद्धगोपाल, प्रभाकर आदि के नाम भी गिनाए। उसके बाद छपट्टी मुहल्ला में पुलिस ने छापा मारकर क्रांतिकारियों के हथियार बरामद किए थे।
मैनपुरी षडयंत्र केस के प्रमुख नेता पं. गेंदालाल दीक्षित, ब्रह्माचारी, लक्ष्मणानंद के प्रयासों से चंबल घाटी में सक्रिय डाकू सरदार पंचम सिंह को संस्था से जोड़कर क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय किया गया था। संस्था के पास पांच सौ घुड़सवार, दो सौ पैदल सैनिक तथा आठ लाख रुपये का नकद कोष था। यह धनराशि क्रांतिकारियों के वेतन व अस्त्र शस्त्र खरीदने पर खर्च की जाती थी।
क्रांतिकारियों ने अस्त्र-शस्त्र खरीदने के लिए सिरसागंज के सेठ ज्ञानचंद्र के यहां डकैती डालने की योजना बनाई। इन सैनिकों में एक पुलिस का गुप्तचर भी शामिल हो गया। उसने ऐसे स्थान पर पड़ाव डलवाया, जहां उसकी सूचना पर पहले ही पुलिस के सिपाही छिप गए। उसने ब्रह्माचारी को मौत के घाट उतारने के लिए भोजन में जहर मिला दिया। भोजन करते ही जब उनकी जीभ लड़खड़ाने लगी तो उन्हें तुरंत ही मुखबिर पर भोजन में जहर मिलाने का संदेह हो गया। उन्होंने अपनी बंदूक उठाकर देशद्रोही की हत्या कर दी। गोली चलने की आवाज सुनते ही वहां छिपी अंग्रेज पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी।
इस दौरान क्रांतिकारियों और अंग्रेजी सैनिकों के बीच संघर्ष में 50 अंग्रेजी सैनिक मारे गए थे। जबकि 35 क्रांतिकारियों ने वीरगति प्राप्त की। गेंदालाल दीक्षित की बाईं आंख गोली लगने से बेकार हो गई थी। घायल ब्रह्माचारी और गेंदालाल दीक्षित को बंदी बना लिया गया, जिन्हें बाद में ग्वालियर जेल में भीषण यातनाएं दी गईं।
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