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    GI टैग के बावजूद महोबा के पान किसानों की हालत खस्ता, नहीं मिल रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

    Updated: Mon, 10 Nov 2025 09:37 AM (IST)

    महोबा के पान किसानों की हालत खस्ता है। केंद्र सरकार ने देसावरी पान को जीआई टैग तो दिया, पर किसानों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा। किसान प्रोत्साहन योजना में जटिलताओं के कारण अनुदान नहीं मिल पा रहा। सूखे और अतिवृष्टि से खेती का रकबा भी घट गया है। किसानों को प्रोत्साहन और प्रशिक्षण की आवश्यकता है ताकि पान की खेती को फिर से बढ़ावा मिल सके।

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    जागरण संवाददाता, महोबा। वित्त मंत्री जी सुनिए....केंद्र सरकार ने महोबा के देसावरी पान को 2021 में जीआइ टैग तो दे दिया पर यहां का किसान अभी भी बदहाल है। उसे इस बदहाली से उबारिए, जिससे उसे शासन की योजनाओं का लाभ मिल सके और पान की खेती का रकबा भी बढ़ सके।

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    2007-08 के पहले तक करीब 500 एकड़ में पान की खेती होती थी और अब यह रकबा सिमटकर 20-25 एकड़ का बचा है। योजनाओं का सरलीकरण न होने से किसानों को इसका लाभ और सब्सिडी भी नहीं मिल पा रही है। पान किसान राजकुमार चौरसिया ने बताया कि किसान प्रोत्साहन योजना के तहत किसानों को को 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है।

    आमतौर पर किसान वहां खेती करता है जहां पानी की सुविधा हो। वह दूसरों की जमीन पर किराया देकर पान की खेती करता है। लेकिन योजना में किरायानामा लगाना होता है। हर कोई अपनी जमीन का किरायानामा नहीं देता और ऐसे में ज्यादातर किसान लाभ से वंचित हो जाते है।

    इसका सरलीकरण और किरायानामा की बाध्यता समाप्त करना चाहिए। किसान श्यामसुंदर चौरसिया ने बताया कि पहले खेती 500 एकड़ में होती थी और यहां का पान गोरखपुर, मिर्जापुर, बनारस, दिल्ली आदि जगहों पर जाता था और दिल्ली से यह अरब देशों में भेजा जाता था।

    लेकिन साल दर साल पड़े सूखे और अतिवृिष्ट व ओलावृष्टि से पान का रकबा घटता चला गया और इससे जुड़े लोग भी दूसरे कामों में लग गए। जीआइ टैग तो दिया पर प्रोत्साहन और योजनाओं की जटिलता के कारण रकबा बढ़ नहीं पा रहा है और खेती बदहाल है।

    किसान प्रोत्साहन योजना का सरलीकरण होना चाहिए। जिससे अनुदान पर लोग पान खेती कर सके और यहां का पान पहले की तरह विभिन्न जिलों व राज्यों में भेजा जा सके।

    - शंकर चौरसिया।

    रकबा कम होने से अब यहां का देसावरी पान पीलीभीत व बरेली सहित कुछ ही जिलों में जा रहा है। यदि किसानों को समय पर प्रशिक्षण और प्रोत्साहन मिले तो पैदावार बेहतर हो।
    - रूपेंद्र चौरसिया।