बांस से बुन रहीं समृद्धि की 'डलिया'
(केस-एक) निम्नवर्गीय परिवार की अनीता का बेटा अंकित कुलपहाड़ में कक्षा 9 का छात्र है। अनीत
(केस-एक)
निम्नवर्गीय परिवार की अनीता का बेटा अंकित कुलपहाड़ में कक्षा 9 का छात्र है। अनीता उसकी पढ़ाई को लेकर बेहद संजीदा है और किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होने देती। बांस की डलिया से होने वाली आय ने उसका आत्मविश्वास आसमान पर पहुंचा दिया है।
(केस-दो)
डलिया बुनाई का काम करने वाली सुशीला को अब हाईस्कूल में पढ़ने वाले बेटे राहुल की कॉपी-किताबों या अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ता है। अपनी कमाई से वह बच्चों की बेहतर परवरिश के साथ ही पढ़ाई पर ध्यान दे रही हैं ताकि बेटा पढ़कर लायक बने।
(केस-तीन)
जयदेवी का बेटा कृष्णकांत छतरपुर मध्य प्रदेश में बीएससी कर रहा है। उसे पढ़ाई को लेकर धन की जरूरत रहती है। पहले परिवार के सामने धन जुटाना बड़ी समस्या था लेकिन जयदेवी ने जब से डलिया बनाना शुरू किया है, वह परिवार की बेहतरी में कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर रही है।
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सुबोध मिश्र, महोबा
चूल्हा-चौके से फुरसत मिली तो गपशप में इधर-उधर की बातें ही होती थीं लेकिन इसी बातचीत ने ऐसा रास्ता दिखाया जिसने गरीब परिवार की महिलाओं की जिंदगी ही बदल डाली। आज महिलाएं डलिया बुनाई के साथ परिवार की समृद्धि का ताना-बाना बुन रही हैं। जी हां, चरखारी ब्लाक के सालट गांव की ये महिलाएं आय बढ़ने के बाद आत्मनिर्भर होकर जिंदगी को खुशहाल बना रही हैं और बच्चों को बेहतर शिक्षा दिला पा रहीं हैं।
हुनर को ऐसे मिली परवाज
इन महिलाओं के हाथ में डलिया बुनाई का परंपरागत हुनर था। जरूरत थी तो सिर्फ एक मौके की। ब्लाक के एडीओ (आजीविका मिशन) की सलाह पर स्वयंसहायता समूह बनाया। छोटी-छोटी बचत को पूंजी बनाया और शुरू कर दिया काम।
ये हैं समूह की सदस्य
स्वयं सहायता समूह की संरक्षक बतिया हैं। अध्यक्ष आरती व सचिव भारती अपनी टीम के साथ लगातार परिश्रम कर रही हैं। इनकी टीम की उषादेवी, सुमन, गंगा, शिववती, काजल, कलिया, बूंदिया, अनीता, रामादेवी, राजकुमारी, रेखा, सीमा, आदि भी डलिया बुनने के कार्य को आगे बढ़ा रही हैं।
बाजार में खूब पसंद की जा रहीं
महिलाएं बांस खरीदने के बाद चीरकर ताने तैयार करती हैं। इसके बाद उनसे डलिया बुनती हैं। इन डलियों को बाजार में खूब पसंद किया जा रहा है। डलिया बिकने से समूह की महिलाओं की आय भी बढ़ गई है।
सप्ताह भर में तैयार होते 25 से 30 डलिया व सूप
महिलाओं के मुताबिक सब मिलकर एक सप्ताह में 25 से 30 छोटी, मझोली व बड़ी डलिया के अलावा सिकौला, सूप आदि तैयार कर लेती हैं। इसकी बिक्री जनपद मुख्यालय महोबा, कबरई, कुलपहाड़, जैतपुर व चरखारी के हाट बाजारों में हो जाती है।
शादियों में होता इस्तेमाल
बांस की इन डलिया का उपयोग शादी विवाहों के साथ सजावटी कामों में होता है। शादी-विवाह के दौरान इनकी मांग काफी बढ़ जाती है।
प्रेरणास्त्रोत बनीं, अन्य महिलाओं की जुड़ने की चाहत
हस्तनिर्मित डलिया बुनने के हुनर से अनुसूचित वर्ग की ये महिलाएं आज दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गई हैं। आज करीब 20 महिलाएं इस समूह से जुड़कर डलिया बुन रही हैं और समूह की बचत को 30 हजार रुपये तक पहुंचा दिया है। अब और महिलाएं समूह से जुड़ने की ख्वाहिश रखती हैं।
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सामग्री लागत बिक्री लाभ
छोटी डलिया 6 10 4
मझोली डलिया 25 50 25
बड़ी डलिया 160 250 90
(लागत, बिक्री व लाभ रुपये में)
छोटी डलिया बनती- एक दिन में चार
बड़ी डलिया बनती- तीन दिन में एक
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''ब्लाक से आने वाले अधिकारी धनराज ने हम लोगों को खाली समय में एक साथ काम करने पर होने वाले फायदे के विषय में समझाया था। साथ में यह भी कहा था कि काम चलने लगेगा तो सरकार भी मदद करेगी। अब सरकार से भी मदद लेकर काम बढ़ाने की कोशिश करेंगे। - बतिया, स्वयं सहायता समूह की संरक्षक
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''जिला उद्योग केंद्र में समूह नहीं व्यक्तिगत स्वरोजगार के प्रोत्साहन की योजनाएं हैं। 18 से 40 वर्ष आयुवर्ग की हाईस्कूल पास महिलाओं को कारोबार करने के लिए सरकारी लोन देने की व्यवस्था है। समूह की इन महिलाओं के व्यक्तिगत स्वरोजगार के लिए हम पूरी सहायता करेंगे। - सद्गुरु प्रसाद, जीएमडीआइसी
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