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    'रक्षाबंधन' के दिन युद्ध में जौहर दिखा रही थी 'चंद्रावल'

    By Edited By:
    Updated: Sun, 10 Aug 2014 01:23 AM (IST)

    अभिषेक द्विवेदी, महोबा :

    जाकै दुश्मन सुख में सोवे उनके जीवन को धिक्कार, बड़े लड़ैया महुबे वाले उनसे हार गई तलवार.. आल्हा काव्य की यह पंक्तियां सुनकर अपने आप ही भुजाएं फड़कने लगती हैं। चंदेलशासन काल में महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर रण में जौहर दिखाती थी। 832 साल पहले कीरतसागर के तट पर हुए भुजरियों के युद्ध में राजकुमारी चंद्रावल ने सखियों के साथ हाथों में तलवार लेकर आल्हा ऊदल की गैर मौजूदगी में ठीक रक्षाबंधन के दिन पृथ्वीराज चौहान से लोहा लिया था, युद्ध में विजय प्राप्त हुई और राखी के दूसरे दिन कजलियों का विसर्जन हो सका। यही कारण है कि समूचे बुंदेलखंड में रक्षाबंधन का त्योहार दूसरे दिन मनाया जाता है।

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    देश भर में भले ही रक्षाबंधन के दिन बहनें भाईयों को रक्षासूत्र बांधती है, पर बुंदेलखंड में दूसरे दिन राखी बांधने की परंपरा है, जो आज भी बदस्तूर चली आ रही है। सन् 1182 में उरई के राजा माहिल के कहने पर राजा परमालिदेव ने बुंदेली धरा के वीर सेनापति आल्हा और ऊदल को राज्य से निष्कासित कर दिया था। उसी समय रक्षाबंधन के दिन राजकुमारी चंद्रावल अपने सखियों के साथ शहर के ऐतिहासिक कीरतसागर तट पर कजलियों का विसर्जन करने गई थी। तभी दिल्ली के राजकुमार पृथ्वीराज चौहान ने कीरतसागर पर आक्रमण कर दिया और राजकुमारी चंद्रावल को घेर लिया। पृथ्वीराज चौहान ने राजा परमाल से युद्ध रोकने को बेटी चंद्रावल, पारस पथरी व नौलखा हार सौंपने की शर्त रखी। लेकिन यह सब दासता स्वीकार करने जैसा था, इसलिए चंदेल शासक परमाल ने इसे ठुकरा दिया और चौहान व चंदेल सेनाएं आमने-सामने हो गई और दोनों में भीषण संग्राम शुरू हुआ। आल्हा सम्राट मुख्यालय के छिकहरा गांव निवासी वंशगोपाल यादव व इतिहासकार डा. एलसी अनुरागी बताते है कि आल्हा ऊदल की गैरमौजूदगी में राजकुमारी चंद्रावल ने हाथों में तलवार लेकर सखियों के साथ जौहर दिखा पृथ्वीराज का डटकर मुकाबला किया। निष्कासित किए गए आल्हा ऊदल को भनक लगी तो वह भी साधु वेश में यहां आए और चौहान सेना का डटकर मुकाबला किया। भीषण युद्ध में राजकुमार अभई मारा गया। अंत में चंदेल सेनाओं ने चौहान सेना को धूल चटाकर घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। रक्षाबंधन में भुजरियों का युद्ध होने के चलते दूसरे दिन राजकुमारी चंद्रावल ने कजलियां विसर्जित की थी। इस कारण तब से अभी तक बुंदेलखंड में दूसरे दिन रक्षाबंधन मनाने की परंपरा है। युद्ध में जीत के बाद से ही विजयोत्सव के रूप में ऐतिहासिक कजली महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन यहां भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। जिसे देखने को मुख्यालय के साथ पड़ोसी राज्य मप्र से भी हजारों की संख्या में लोग परिवार सहित यहां आते हैं।