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    Maharajganj Flood Alert: तटवर्ती गांवों के किसानों को डरा रहा महाव नाला, दहशत में रात गुजार रहे ग्रामीण

    नेपाल से निकला महाव नाला किसानों के लिए मुसीबत बना हुआ है। तटबंध टूटने से गांवों में दहशत है। सिंचाई विभाग और वन विभाग ने करोड़ों खर्च किए पर समस्या जस की तस है। किसानों का कहना है कि अधिकारियों ने गंभीरता नहीं दिखाई। नाले का तटबंध जर्जर है और कई मोड़ खतरनाक हैं। जंगल में झाड़ियों के कारण नाला संकरा हो गया है।

    By Santosh Singh Edited By: Vivek Shukla Updated: Sun, 24 Aug 2025 03:20 PM (IST)
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    सिंचाई विभाग, वन विभाग व ग्राम पंचायतों से अब तक खर्च हो चुके हैं करोड़ों रुपये

    जागरण संवाददाता, परसामलिक। नेपाल से निकलकर जनपद के नौतनवा तहसील क्षेत्र मे प्रवेश करने वाला महाव नाला पिछले कई दशक से किसानों के लिए अभिशाप बना हुआ है।इस समस्या से अभी तक किसानों को राहत नहीं मिल पाई है। बाढ़ बचाव के नाम पर सिंचाई विभाग, वन विभाग व ग्राम पंचायतों से अब तक करोड़ों रुपये खर्च किए हो चुके है।फिर भी समस्या अभी तक सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी है। जिसका खामियाजा यहां के किसानों को बाढ़ की त्रासदी के रुप में भुगतना पड़ रहा है।

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    शुक्रवार को नेपाल से आए पानी के भारी दबाव को न झेल पाने के कारण नाले का पूर्वी तटबंध देवघट्टी टोला हरखपुरा के सामने 20 मीटर टूट गया, सिंचाई विभाग अपनी नाकामी पर पर्दा डालने के लिए तत्काल टूटे तटबंध का मरम्मत कार्य भी शुरु कर दिया, लेकिन नाले के जर्जर तटबंध को देख अभी भी तटवर्ती गांव के किसान डरे हुए हैं।

    बाढ़ प्रभावित किसानों का कहना है कि अधिकारियो व जनप्रतिनिधियों ने महाव समस्या को गंभीरता से लिया होता, तो शायद यह स्थिति आज नहीं देखनी पड़ती। अब तटबंध टूटते ही अधिकारियों व ठीकेदारों को महाव की याद आ गई है।

    नेपाल से निकलकर झिंगटी गांव के समीप से भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने वाला महाव एक खतरनाक पहाड़ी नाला है। कुल 23 किमी लंबाई में बहने वाले महाव नाले का 15 किमी भाग जंगल के बाहर पड़ता है।नाले की सिल्ट से बनाया गया इसका तटबंध कई स्थानों पर जर्जर अवस्था में है।

    इसमें 65 से अधिक खतरनाक मोड़ भी है, जो एक साथ कई स्थानों पर टूटकर कभी भी तबाही मचा सकते हैं। नाले का आठ किमी भाग मधवलियां व चौक उत्तरी रेंज के घने जंगल से होते हुए करौता गांव के समीप बघेला नाला में मिल जाता है।जंगल में नाले के प्रवाहमार्ग उगे पौधों व झाड़ियों के कारण प्रवाह मार्ग सकरा हो जाता है।

    समस्या के समाधान के लिए सिंचाई विभाग जंगल के बाहर व वन विभाग जंगल के अंदर हर वर्ष लाखों रुपए खर्च कर पोकलेन मशीनों से सिल्ट सफाई कराते हैं। फिर जैसे ही तटबंध टूटता है। इसके मरम्मत की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों के हवाले कर दी जाती है।