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    टाटपट्टी पर पढ़ाई ने बनाया न्यायमूर्ति

    By Edited By:
    Updated: Fri, 21 Oct 2011 08:42 PM (IST)

    लोगो -जागरण से विशेष बातचीत

    -लकड़ी की पटरी और नरकट की कलम से की पढ़ाई

    - गुरू की प्रेरणा से मिली मंजिल

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    फोटो--21 एम.आर.जे.-12

    परिचय--इलाहाबाद उच्च न्यायायलय के न्यायमूर्ति कलीमुल्लाह खां।

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    महेन्द्र कुमार त्रिपाठी, महराजगंज : प्रगति में संसाधनों का रोना रोने वालों को महराजगंज के कलीमुल्लाह खां से सीख लेनी चाहिए। मकतब में जमीन पर बिछे टाटपट्टी पर बैठकर पहली कक्षा से पांचवीं तक की पढ़ाई करने वाले खां आज इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति हैं।

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    बैरवा बनकटी के किसान हाजी मुहम्मद बसीर खां के पुत्र न्यायमूर्ति कलीमुल्लाह खां से शुक्रवार को जागरण ने उनके इस सफर पर विशेष बात की। उन्होंने बताया कि मकतब में पांचवीं दर्जा तक पढ़ाई की, वह भी टाटपट्टी पर बैठकर। वहां बच्चों के लिए न तो बेंच थे और न ही स्टूल। अपने गांव से पैदल करीब आधा किलोमीटर दूर स्कूल में जाकर पढ़ाई करते थे। ढिबरी की कालिख में गेहूं की सूखी बाल को मिलाकर रोशनाई तैयार की जाती थी। लकड़ी की पटरी पर नरकट की कलम से यह रोशनाई निकलती थी तो निकलते थे सुन्दर अक्षर।

    संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कलीमुल्लाह खां बताते हैं कि मास्टर मुख्तार अहमद व मौलाना वजीर अहमद हर रोज रात में बच्चों को जगाते थे और कुरान की तालीम के साथ इतिहास, भूगोल व हिन्दी की पढ़ाई कराते थे। सुबह फजील की नमाज पढ़ने के बाद बच्चे घर जाते थे और पुन: दिन के दस बजे स्कूल लौटते थे। शाम को चार बजे घर जाकर फिर रात में स्कूल पहुंच जाते थे।

    न्यायमूर्ति श्री खां बताते हैं कि इसके बाद मीडिल स्कूल में सफर शुरू हुआ कक्षा छठवीं व सातवीं का। यहां भी जाने के लिए पानी के बीच से रास्ता तय करना पड़ता था। यह काम बड़ा दुरूह था फिर भी मंजिल पाने की लालसा से सब आसान लगता था। दसवीं की पढ़ाई छप्पर वाले स्कूल में हुई और रहना भी वहीं होता था। स्कूल हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल था।

    कलीमुल्लाह खां 11 वीं कक्षा में पहुंचे तो पिता ने गेहूं बेचकर उनके लिए साइकिल खरीदी। वह उनके बेहद प्रसन्नता का क्षण था। उसके बाद गोरखपुर से बीए, एलएलबी करने के बाद 1977 में गोरखपुर में वकालत शुरू की। वहां मिल गए उनके गुरु रवीन्द्र आर्या, जो जाने-माने वकील थे। उनकी प्रेरणा से परीक्षा की तैयारी की और मिल गयी मंजिल। पहले एडीजे व बाद में कई जिलों में जिला जज रहे।

    न्यायमूर्ति कलीमुल्लाह खां मानते हैं कि लगन हो तो सुविधाविहीन होने पर भी मंजिल मिलना कठिन नहीं। वे कहते हैं -

    उन्होंने मुझे तराशकर हीरा बना दिया

    वरना मेरा शुमार इन्हीं पत्थरों में था।

    श्री खां नौतनवा के निकट बैरवा बनकटवा गांव के निवासी हैं। इनके एक भाई हमीदुल्लाह जाने-माने अधिवक्ता और दूसरे समीदुल्लाह खां किसान हैं।

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