..वह चिराग क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे
महराजगंज: फानूश बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वह चिराग क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे। आज मौत के मुंह
महराजगंज:
फानूश बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वह चिराग क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे। आज मौत के मुंह से निकल कर ममता की आंचल में पहुंचे इस नवजात पर किसी शायर की यह पंक्ति बिल्कुल सटीक बैठती है। नवजात को मां के प्यार का छांव मिला, तो परिवार को कुल का दीपक।
दरअसल रविवार की अलसुबह चार बजे पनियरा-मुजरी मार्ग से हर दिन की तरह गुजरने वालों के लिए कुछ अलग रहा। नित्य क्रिया के लिए निकली महिलाओं को नवजात के रोने की आवाज सुनाई दी। कान पर कान रखा तो मन में उत्सुकता बढ़ी। कोहरे की धुंधली छाया को चीरते हुए आगे ढिंगुरी बागीचे तक पहुंची। तो दृश्य देख ठमक गई, मानो काठमार गया हो। झोला हील रहा था और शिशु के रोने की आवाज आ रही थी। कलेजा मुंह को आने वाला यह मार्मिक दृश्य देख महिलाओं ने लंबी सांस भरी। आपस में एक-दूसरे से बुदबुदाने लगीं..न जाने किस मां ने मां जैसे पवित्र शब्द को बदनाम करने के लिए अपने खून से सींचे हुए कलेजे के टुकडे़ को फेंक दिया। फिर तनिक देर में भावुक हो उठीं। इसी बीच स्माइल की पत्नी साहस कर आगे बढ़ी। झोला खोला, बच्चे को निकाला, गले से लगाया। पनियरा प्रतिनिधि के अनुसार इस दरम्यान काफी संख्या में ग्रामीण पहुंच चुके थे। कुछ लोगों ने मासूम को अपनाने के लिए अपने हाथ भी बढ़ाएं। लेकिन यशोदा का हक निभाने का अवसर सिर्फ मीरा को मिला। जोखन की पत्नी मीरा नवजात को अपने सीने से लगाए घर पहुंची। तीन बेटियों से भरे परिवार में कुल का दीपक आने से अब इनके खुशी का ठिकाना नहीं है। नवजात को ममता की छांव मिला और बहनों को भाई। मां को कलेजे का टुकड़ा। पिता को बुढ़ापे की लाठी। परिवार को कुल का दीपक, तो समाज को सहारे का नया संदेश।
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