Literary World: ‘कलम में थोड़ी सी कड़वाहट भी जरूरी’
लेखिका ममता कालिया ने दैनिक जागरण के कार्यक्रम कलम में लोगों के साथ अनुभव साझा किए।
लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। ‘‘प्रेम और विवाह दो अलग-अलग संसार हैं। एक में भावना और दूसरे में व्यवहार की जरूरत होती है। दुनिया भर में विवाहित औरतों का केवल एक स्वरूप होता है। उन्हें सहमति-प्रधान जीवन जीना होता है। अपने घर की कारा में वे कैद रहती हैं। हर एक की दिनचर्या में अपनी-अपनी तरह की समरसता रहती है। हरेक के चेहरे पर अपनी-अपनी तरह की ऊब। हर घर का एक ढर्रा है, जिसमें आपको फिट होना ही होना है। कुछ औरतें इस ऊब पर श्रृंगार का मुलम्मा चढ़ा लेती हैं पर उनके श्रृंगार में भी एकरसता होती है।’’
(किताब ‘बोलनेवाली औरत’) : इन्हीं पंक्तियों के साथ स्त्री त्रसदी के सूक्ष्म रूप के जरिए यथार्थ को शब्द देने वाली लेखिका ममता कालिया से सार्थक संवाद शुरू हुआ। लिखने और लिखते रहने की छटपटाहट भी जाहिर हुई। लेखन में शहर (इलाहाबाद) और पति रवींद्र कालिया के प्रभाव के साथ बात आगे बढ़ी। नये मीडिया के जरिए महिला लेखकों की बढ़ती संख्या पर संतोष जताया। अंत में पाठ्यक्रम में साहित्य को जोड़ने की सकारात्मकता के साथ वार्तालाप पूरा हुआ। दैनिक जागरण, प्रभा खेतान फाउंडेशन और श्री सीमेंट के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को ‘कलम’ कार्यक्रम हुआ। होटल हयात रीजेंसी में कनक रेखा चौहान ने लेखिका से संवाद किया।
इस दौरान लेखिका ममता कालिया ने कहा, लिखने के लिए थोड़ी कड़वाहट जरूरी है। आर्थिक और व्यावहारिक कष्ट आपके अंदर तल्खी ले आता है, वही लेखनी में भी शुमार हो जाता है। समाज की नब्ज पर लेखक को हाथ रखना होगा। उम्दा साहित्य को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए।
लेखनी में घरेलू औरत को सहजता से उजागर करने के कौशल पर ममता कालिया ने कहा कि घर चलाने और रिश्ते निभाने में स्त्रियां ज्यादा व्यवहार कुशल होती हैं। सवाल करने वाली औरत को कोई पसंद नहीं करता। ये घरेलू औरतें हमारे इर्द-गिर्द ही हैं, जिन्हें पात्र बनाकर लिखा। लेखन में शहर (इलाहाबाद) के योगदान पर उन्होंने कहा कि रवींद्र जी नौकरी छोड़कर मुंबई से इलाहाबाद आए। उनके पीछे-पीछे मुङो भी आना पड़ा। इलाहाबाद में एक कॉलेज में प्रिंसिपल बन गई। रवींद्र जी ने छापा खाना खरीद लिया।
प्रिंटिंग प्रेस में साहित्यिक किताबें छपती थीं, जिससे साहित्यकारों से जुड़ाव हुआ। उन लोगों के संपर्क में आने के बाद जाना कि साहित्य संसार में भौतिक सवालों का उतना महत्व नहीं, जितना वैचारिक प्रश्नों का। इलाहाबाद ने हमें निर्मित किया। इस शहर ने अहसास कराया कि हंिदूी साहित्य में समृद्धि और मन को टटोलने का सामथ्र्य है। उन्होंने अपनी लेखनी में पति रवींद्र कालिया के प्रभाव पर कहा कि वे उन्हें कविता की दुनिया से कहानी में ले आए।
दृष्टिकोण बताने में संकोच नहीं कर रहीं महिलाएं : अभिव्यक्ति का आंनद तब मिलता है, जब हम अपनी बात कह लेते हैं। ये सुखद है कि महिलाएं दृष्टिकोण बताने में संकोच नहीं कर रहीं। नये मीडिया से खासकर महिला लेखकों की संख्या में इजाफा हुआ है। महिलाएं अनुभव, अनुभूतियों और स्मृतियों के भंडार को बेहतर तरीके से बयां कर रही हैं। उन्होंने कहा कि खूब लिखा जाए, पर हर किसी के लिए लिखने से पहले पढ़ना जरूरी है।
गांधी जैसा वैचारिक परिवर्तक कोई नहीं हुआ
महिला समाज पर गांधी जी के विचारों के प्रभाव पर केंद्रित किताब ‘दुखम-सुखम’ के लिए व्यास सम्मान पा चुकीं ममता ने कहा कि दादी लगभग निरक्षर थीं। संयुक्त परिवार था। उस समय अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के अंतर्गत गांधी विचार और खादी समिति काम करती थी। उससे जुड़े भाईजी औरतों को चरखा चलाने समेत अन्य गतिविधियों से जुड़ने को कहते थे। औरतों ने चरखा चलाना शुरू किया। परिवार में इसे अच्छा नहीं माना जाता था, पर दादी परवाह नहीं करती थीं। महात्मा गांधी वैचारिक परिवर्तन लाए। उन जैसा वक्ता और नेता आज तक कोई नहीं हुआ।
स्टाइल के साथ कंटेंट अहम
लेखनी में स्टाइल के साथ कंटेंट अहम होता है। व्यापक स्तर पर समाज से जुड़ाव जरूरी है। निजी दु:ख सुख से कहानी नहीं बनती, उसका वृहद कोण होना चाहिए। पसंदीदा महिला लेखिका के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि ऊषा प्रियंवदा की कहानी ‘वापसी’ बेहतरीन है। मन्नू भंडारी, गीतांजलि श्री और शिवानी को भी पढ़ना अच्छा लगता है। वंदना राग, शीला रोहेकर भी अच्छा लिख रही हैं।
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