World Sparrow Day 2023 : जब चीन ने गौरैया को मारने की कीमत करोड़ों लोगों की जान से चुकाई
आज पूरा विश्व गौरेया दिवस माना रहा है। यह हमारे भविष्य के लिए गौरेया बहुत आवश्यक है। 1958 में चीन ने गौरेया को मारने का आदेश दिया और इसकारण चीन में करोड़ो लोगों को भुखमरी के कारण जान गंवाना पड़ा।

भाष्कर सिंह,लखनऊ: प्यारी सी चिड़िया है गौरैया, जिसे बचाए रखने के लिए आज पूरा विश्व गौरैया दिवस मना रहा है। गौरैया और मानव का रिश्ता कितने हजार वर्ष पुराना है, यह एक शोध का विषय हो सकता है, लेकिन यह तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इंसान ने जब से कृषि शुरू की होगी तभी से गौरैया भी हमारी प्रमुख साझेदार बन गई।
1957 में भुखमरी झेल रहा था चीन
गौरैया हमारे भविष्य के लिए बहुत आवश्यक है। यह बात हम चीन के कलंकित इतिहास से समझ सकते हैं। करोड़ों गौरैया मारने के कारण लाखों लोग मारे गए, जिसके परिणाम में भारत पर 1962 का युद्ध थोप दिया गया। हमें लगभग 66-67 वर्ष पहले चलना होगा। चीन भुखमरी की मार झेल रहा था। तानाशाह माओ को 1957 में चीन के कुछ वैज्ञानिकों ने बिना सिर पैर के तर्क दिए। तानाशाह तो तानाशाह ठहरा।
मक्खी, मच्छर और गौरैया को मारने के आदेश
1958 से शुरू होने वाली चीन की दूसरी पंचवर्षीय योजना (जिसे सेकेंड ग्रेट लीप फारवर्ड भी कहते हैं) के तहत माओ ने आदेश दिया कि ग्रेट पेस्ट्स कैंपेन के तहत मक्खी, मच्छर और चूहों के साथ गौरैया का संपूर्ण सफाया कर दिया जाए। इस कत्लेआम का नेतृत्व खुद कम्युनिस्ट पार्टी कर रही थी।
1958 में शुरू हुआ अभियान
माओ को चीन के साइंटिफिक अकादमी से जुड़े विज्ञानियों ने बताया कि एक गौरैया वर्ष में दो किलोग्राम अनाज खा जाती हैं, फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाती है। गौरैया मार दी जाएं तो 40-50 लाख टन अनाज बच सकता है, जिससे देश में भुखमरी का अंत हो जाएगा। 1958 की शुरुआत से अभियान शुरू हुआ और 1960 में गौरैया को न मारने का आदेश चीन सरकार ने वैज्ञानिक सलाह के बाद जारी किया।
चीन में 25 करोड़ गौरैया की मौत
चीन की साइंटिफिक अकादमी कहती है कि 25 करोड़ गौरैया इस दौरान मार दी गईं, जबकि स्वतंत्र एजेंसियों का दावा है कि कम से कम एक अरब गौरैया सीधे रूप से मार दी गईं। गौरैया के अंडे नष्ट कर दिए गए, बच्चों को मार दिया गया और घोंसलों को आग लगाकर नष्ट कर दिया गया। इसके अलावा 1.5 अरब के आसपास चूहे मार दिए गए, 10 करोड़ किलो मक्खियां और 1 करोड़ किलो मच्छरों को मारने का दावा भी कम्युनिस्ट पार्टी ने किया।
5 करोड़ लोगों की भूख से मौत
गौरैया मारने का दुष्परिणाम जल्द ही चीन में देखने को मिले। खुद सरकार का रिकार्ड कहता है कि 1958 में अनाज उत्पदान में 15 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि 1959 में अनाज का उत्पादन 70 प्रतिशत गिर गया, नतीजा चीन में भयानक स्थितियां उत्पन्न हो गईं। चीन का सरकारी रिकार्ड कहता है कि 1959 से 1962 तक पांच करोड़ लोग भूख के कारण जान गंवा बैठे।
गलत निकली थ्योरी
भारतीय सैन्य इतिहासकारों के साथ पश्चिमी दुनिया के विशेषज्ञ मानते रहे हैं कि इन परिस्थितियों से ध्यान हटाने के लिए ही चीन ने 1962 में भारत पर हमला बोला, ताकि संभावित विद्रोह से निपटा जा सके। चीन के वैज्ञानिकों ने जब मृत गौरैयाओं का पोस्टमार्टम किया तो उनके पेट से बहुत कम अनाज निकला और कीट बहुतायत में निकले, ऐसे में अनाज को नुकसान पहुंचाने की थ्योरी गलत निकली। माओ को 1960 तक अपनी भूल समझ में आ गई थी, तब उसने तत्कालीन सोवियत संघ (आज का रूस) से सहायता मांगी। सोवियत संघ से 25 लाख गौरैया चीन लाई गईं। इसका असर भी चीन के कृषि उत्पादन पर दिखा।
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