World Eye Donation Day : नेत्रदान करने के लिए होता है सिर्फ छह घंटे का वक्त
World Eye Donation Day आई बैंक में 15 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। 50 फीसद कॉर्निया आती है रिसर्च के काम।
लखनऊ [धर्मेन्द्र मिश्रा]। World Eye Donation Day : बहुत से लोग नेत्रदान करना तो चाहते हैं, लेकिन उन्हें इसकी पूरी जानकारी नहीं होती। लखनऊ में एक मात्र आई बैंक केजीएमयू में है। विशेषज्ञों के अनुसार मौत के बाद अगर उसके परिवारजन आंखों को दान करना चाहते हैं तो इसके लिए उन्हें पहले से अलर्ट रहना चाहिए। क्योंकि मौत के छह घंटे के अंदर ही किसी मृतक की कॉर्निया का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे अधिक विलंब होने पर यह बेकार हो जाती है।
केजीएमयू ने नेत्रदान करने व पहले से रजिस्ट्रेशन कराने के इच्छुक लोगों के लिए एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया है। जिस पर कोई भी व्यक्ति मौत से पहले नेत्रदान के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकता है और मौत के बाद भी इसी नंबर पर कॉल करके अपने सगे संबंधियों की आंखें दान की जा सकती हैं।
15 से 20 मिनट में पहुंच जाती है टीम
केजीएमयू में आई बैंक के प्रभारी डॉ. अरुण शर्मा कहते हैं कि यदि मामला लखनऊ और उसके आसपास का ही है तो हेल्पलाइन पर फोन आने के बाद मात्र 15 से 20 मिनट में हमारी टीम मृत व्यक्ति के पास पहुंजाती है। आसपास के 70 किलोमीटर तक के क्षेत्र में हमारी टीम का रेस्पांस टाइम यही है। घरवालों को यह ध्यान में रखना
चाहिए कि मौत होने के बाद जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी हेल्पलाइन नंबर पर इसकी सूचना दे दें। ताकि समय जाया न हो।
संस्थान में 80 फीसद नेत्रदान
डॉ. अरुण शर्मा के मुताबिक, संस्थान में जिनकी मौत होती है वह लोग ज्यादा नेत्रदान करते हैं। संस्थान में होने वाले कुल नेत्रदान में 80 फीसद नेत्रदान संस्थान के अंदर व सिर्फ 20 फीसद ही बाहर का होता है। मौत से पहले छह से सात हजार लोग अब तक नेत्रदान के लिए रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं। उन्होंने कहा कि आंखों की साइज का कोई फर्क नहीं पड़ता। बड़ों की आंख बच्चों को व बच्चों की आंख भी बड़ों को लग जाती है। सिर्फ अधिक वृद्ध लोगों की कॉर्निया बच्चों में नहीं लगाते हैं।
15 दिन तक रखी जा सकती है सुरक्षित
लोहिया संस्थान के आई सर्जन डॉ. राहुल सिन्हा कहते हैं कि कॉर्निया को मृतक के शरीर से निकालने के बाद उसे एक विशेष प्रकार के सॉल्यूशन में रखा जाता है। ताकि वह सुरक्षित बनी रहे। आई बैंक में इसे 15 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
50 फीसद कॉर्निया आती है रिसर्च के काम
नेत्रदान से प्राप्त की गई सभी कॉर्निया को ट्रांसप्लांट नहीं किया जाता है। क्योंकि ट्रांसप्लांट के मानकों पर इनमें से करीब 50 फीसद ही फिट बैठती हैं। बाकी कॉर्निया का इस्तेमाल रिसर्च में किया जाता है। उन्होंने कहा कि कोई भी कॉर्निया वेस्ट नहीं होने दी जाती।
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