Independence Week: इतिहास के पन्नो में क्यों काकोरी कांड के नाम से दर्ज है 97 वर्ष पूर्व 9 अगस्त 1925 का दिन
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों द्वारा ब्रिटिश राज के विरुद्ध भयंकर युद्ध छेड़ने और हथियार खरीदने के लिये ब्रिटिश सरकार का ही खजाना लूट लेने की एक ऐतिहासिक घटना थी। जिसे 9 अगस्त 1925 को अंजाम दिया गया था।

लखनऊ, जेएनएन। Kakori Kand आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर पूरे देश में स्वतंत्रता सप्ताह मनाया जा रहा है। यूपी में आज से हर घर तिरंगा अभियान शुरु किया गया है। इस आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत से लड़ते हुए हजारों क्रांतिकारियों ने अपने प्राण गवां दिए। उन्हीं क्रांतिकारियों के चलते आज से ठीक एक दिन बाद पूर देश धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाएगा।
हम आपको ठीक 97 वर्ष पूर्व 9 अगस्त 1925 के दिन हुई एक घटना से रुबरु कराने जा रहे हैं। इतिहास के पन्नों में इस घटना को काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है। आई जानते हैं क्या है काकोरी कांड और किसने इसे अंजाम तक पहुंचया था।
ट्रेन में लदे ब्रिटिश खजाने को लूटने की बनी थी योजना
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों द्वारा काकोरी कांड की घटना 9 अगस्त 1925 को हुए ब्रिटिश राज के खिलाफ युद्ध में हथियार खरीदने के लिए एक ट्रेन से ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटने की थी।
- हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के केवल दस सदस्यों ने इस घटना को अंजाम दिया था।
- शाहजहांपुर में राम प्रसाद बिस्मिल ने एक बैठक में क्रांतिकारियों द्वारा चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन को रफ्तार देने के लिए धन की तत्काल व्यवस्था की आवश्यकता के बारे में ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटने की योजना बनाई थी।
आठ अगस्त को तैयार हुआ था प्लान और 9 अगस्त को लिया गया था एक्शन
- पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के घर 8 अगस्त को हुई आपात बैठक में सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई गई।
- जिसमें अगले ही दिन 9 अगस्त 1925 को हरदोई शहर के रेलवे स्टेशन से सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग सवार होंगे।
- इन दस क्रांतिकारियों में शाहजहांपुर से बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, मुरारी शर्मा और बनवारी लाल, राजेंद्र लाहिडी, शचींद्रनाथ बख्शी और केशव चक्रवर्ती, औरैया से चंद्रशेखर आजाद और मनमथनाथ गुप्ता और मुकुंदी लाल शामिल थे।
9 अगस्त 1925 को अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व रोकी गई थी ट्रेन
- आज से ठीक 97 वर्ष पूर्व 9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से सरकारी खजाने को लूटने की घटना को अंजाम दिया गया। जिसे काकारी कांड का नाम दिया गया।
- ब्रिटिश सरकार के सरकारी खजाने को लूटने की इस योजना के अनुसार, पार्टी के एक प्रमुख सदस्य राजेंद्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त 1925 को अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व में लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन से सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को चेन खींचकर रोक दिया।
- ट्रेन रूकते ही क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने पंडित चंद्रशेखर आजाद और 6 अन्य साथियों की मदद से ट्रेन में छापा मारकर सरकारी खजाने को लूट लिया।
ब्रिटिश हुकूमत में जंगल में आग की तरह फैली थी काकोरी कांड की घटना
- ट्रेन को लूटने के लिए क्रांतिकारियों के पास पिस्तौलों के अलावा चार जर्मन निर्मित माउजर भी थे, जिनके बट में कुन्दा लगा लेने से यह एक छोटी स्वचालित राइफल की तरह दिखती थी और सामने वाले के मन में भय पैदा करती थी।
- कहते हैं कि इन माउजर की मारक क्षमता भी अधिक थी। मनमथनाथ गुप्ता ने जिज्ञासावश माउजर का ट्रैगर को दबा दिया, जिससे छूटी हुई गोली अहमद अली नाम के एक यात्री को जा लगी। वह मौके पर ही गिर पड़ा।
- झटपट चांदी के सिक्कों और नोटों से भरे चमड़े के थैलों को चादरों में बांध दिया और वहां से बचने के लिए एक चादर वहीं छोड़ दी। अगले दिन अखबारों के जरिए यह खबर पूरी दुनिया में फैल गई। इस ट्रेन डकैती को ब्रिटिश सरकार ने काफी गंभीरता से लिया और उसकी जांच शुरु कर दी।
काकोरी कांड के बाद उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के कुल 40 क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाने को लूटने और यात्रियों की हत्या का मामला शुरू किया। जिसमें राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह उन्हें मौत की यानि फांसी की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में 16 अन्य क्रांतिकारियों को न्यूनतम 4 वर्ष कारावास से लेकर अधिकतम ‘काला पानी’ अर्थात आजीवन कारावास तक की सजा दी गई थी।
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