History of Bhatkhande Music Institute: भातखंडे जी लखनऊ नहीं, दिल्ली में चाहते थे ऑल इंडिया अकादमी ऑफ म्यूजिक
History of Bhatkhande Music Institute 1922 में भातखंडे जी राय उमानाथ बली के आमंत्रण पर दरियाबाद-बाराबंकी पहुंचे। वहां एक महीने तक रहकर अपनी मूल योजना ...और पढ़ें

लखनऊ, जेएनएन। लखनऊ के भातखंडे संगीत संस्थान अभिमत विश्वविद्यालय की नींव का पहला पत्थर उस दिन पड़ गया था, जब 1916 में बड़ोदा-नरेश महाराज सयाजीराव गायकवाड़ ने विष्णु नारायण भातखंडे को उस्ताद मौला बख्श द्वारा शुरू किए गए संगीत विद्यालय के पुनर्गठन व पाठ्यक्रम निर्धारण के लिए अपने यहां आमंत्रित किया था। इस अवसर का लाभ उठाते हुए भातखंडे जी ने अपने द्वारा बनाए गए पाठ्यक्रम की सर्वमान्यता के लिए एक अखिल भारतीय संगीत परिषद् गठित करने एवं उसकी बैठक आहूत करने का प्रस्ताव महाराजा के सामने रख दिया। महाराजा गायकवाड़ ने परिषद गठित करके उसकी बैठक मार्च 1916 में बड़ोदा में की लेकिन उसमें भातखंडे जी के प्रस्ताव पर सहमति न बन सकी।
उसके अगले वर्ष 1971 में परिषद की दूसरी बैठक दिल्ली में हुई, जिसमें दरियाबाद-बाराबंकी के राय उमानाथ बली ने नवाब रामपुर के समर्थन से लखनऊ में स्कूल ऑफ इंडियन म्यूजिक के स्थापना का प्रस्ताव रखा, लेकिन राजा नवाब अली एवं भातखंडे जी लखनऊ के स्थान पर दिल्ली में ऑल इंडिया अकादमी ऑफ म्यूजिक स्थापित करवाना चाहते थे, लिहाजा राय उमानाथ बली का प्रस्ताव पारित न हो सका। कई बैठकों के बाद अंतत: 1922 में भातखंडे जी राय उमानाथ बली के आमंत्रण पर दरियाबाद-बाराबंकी पहुंचे। वहां एक महीने तक रहकर अपनी मूल योजना में संशोधन किया और लखनऊ में प्रस्तावित संगीत महाविद्यालय की रूपरेखा एवं पाठ्यक्रम तैयार किया।
लखनऊ में संगीत महाविद्यालय के प्रस्ताव के क्रियांवयन के लिए 1924 में लखनऊ में कैसरबाग बारादरी में परिषद की चौथी बैठक हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि लखनऊ में एक अखिल भारतीय संगीत विद्यालय हो, जिसमें संगीत की शिक्षा भातखंडे जी द्वारा निर्मित ठाट पद्धति एवं उसके साथ उनके द्वारा राग में प्रयुक्त स्वरों के मानकीकरण के आधार पर हो। बाद में कुछ और बैठकें हुईं और फिर एक ऑल इंडिया म्यूजिक एसोसिएशन का गठन हुआ, जिसके सदस्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों के 36 संगीतविद् थे। इसकी कार्यकारिणी समिति में राय राजेश्वर बली-अध्यक्ष, राजा नवाब अली खां-उपाध्यक्ष, राय उमानाथ बली-मंत्री तथा राजा महेश प्रताप नारायण, राजा जगन्नाथ बक्श, राय बहादुर चंद्रहार बली, एपी सेन आदि सदस्य थे।
इन सभी के संयुक्त प्रयास से 73,500 रुपये जमा किए गए और 15 जुलाई 1926 को चायना गेट के निकट नील रोड पर स्थित तोपवाली कोठी में प्रस्तावित शिक्षण संस्था की स्थापना हो गई। संस्था का गौरव बढ़ाने के उद्देश्य से राय राजेश्वर बली ने भारतीय संगीत के अनुरागी गवर्नर सर विलियम मैरिस को उनका नाम संस्था के साथ जोड़ने को राजी कर लिया। 16 सितंबर 1926 को संस्था का मैरिस कॉलेज ऑफ हिंदुस्तानी म्यूजिक नाम देकर सर विलियम मैरिस के कर कमलों से उद्घाटन करा दिया गया।
...और जुड़ गया भातखंडे जी का नाम
1936 में भातखंडे जी के दिवंगत होने के बाद उनकी पावन स्मृति में 1939 में भातखंडे यूनिवर्सिटी ऑफ हिंदुस्तानी म्यूजिक नामक एक अन्य संस्था का सृजन हो गया। 1960 में भातखंडे जी की जन्म शताब्दी के अवसर पर मैरिस कॉलेज ऑफ हिंदुस्तानी म्यूजिक का नाम बदलकर भातखंडे हिंदुस्तानी संगीत महाविद्यालय रख दिया गया। 2005 में इसका नाम भातखंडे संगीत संस्थान विश्वविद्यालय हो गया।

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