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    महिलाएं 26 काे करेंगी सुहाग की सलामती की कामना, जानें वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

    Updated: Fri, 23 May 2025 05:35 PM (IST)

    Vat Savitri fast on 26th May यह व्रत नारी शक्ति प्रेम धैर्य और समर्पण का प्रतीक बन गया है। तभी से सभी सुहागन महिलाएं पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि के लिए इस व्रत को करती हैं। अमावस्या का मान 26 को दोपहर 1211 बजे से शुरू होगा और 27 को सुबह 8 31 बजे तक रहेगा।

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    वट सावित्री व्रत -महिलाएं करेंगी सुहाग की सलामती की कामना

    जागरण संवाददाता, लखनऊ: पति की लंबी उम्र की कामना और समृद्धि के पर्व वट सावित्री व्रत 26 मई को है।ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को होने वाले इस त्योहार पर बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है। इसी दिन सोमवती अमावस्या मनाई जाएगी, इस व्रत को बरगदाही व्रत भी कहते हैं।

    आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि महिलाएं ये व्रत अखंड सौभाग्य के लिए करतीं हैं। वट सावित्री व्रत पतिव्रता धर्म का प्रतीक माना जाता है। सत्यवान सावित्री की कथा में यह वर्णन है। सावित्री ने कठोर व्रत, तप और साहस के बल पर अपने मृत पति सत्यवान को पुनर्जीवन दिलवाया था। अमावस्या का मान 26 को दोपहर 12:11 बजे से शुरू होगा और 27 को सुबह 8: 31 बजे तक रहेगा। दोपहर के समय में वट वृक्ष पूजन करना श्रेष्ठ है।

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    आचार्य आनंद दुबे ने बताया कि यह व्रत नारी शक्ति, प्रेम, धैर्य और समर्पण का प्रतीक बन गया है। तभी से सभी सुहागन महिलाएं पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि के लिए इस व्रत को करती हैं। 

    वट सावित्री व्रत 2025: शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

    पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, व्रत कथा सुनती हैं और व्रत का पालन करती हैं। शुभ मुहूर्त में पूजा करने से पुण्य और वरदान प्राप्त होते हैं। पूजन के लिए बांस की टोकरी में सप्त धान्य रख कर ब्रह्ना जी की मूर्ति की स्थापना कर फिर सावित्री की मूर्ति की स्थापना करते हैं।

    दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करके टोकरी को वट वृक्ष के नीचे जाकर ब्रह्ना तथा सावित्री के पूजन के बाद सत्यवान और सावित्री की पूजा करके बरगद की जड़ में जल दिया जाता है। वट वृक्ष (बरगद) के नीचे बैठ कर सावित्री और सत्यवान की कथा भी सुननी चाहिए। पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भीगा चना, फूल तथा धूप से पूजन करते है। वट वृक्ष पूजन में तने पर कच्चा सूत लपेट कर 7, 21 अथवा 108 परिक्रमा का विधान है।

    बरगद में होता है देवताओं का वास

    आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि वट वृक्ष को देव वृक्ष माना जाता है। इसकी जड़ों में ब्रह्नााजी, तने में विष्णु जी का और डालियों और पत्तियों मेें भगवान शिव का वास माना जाता है। वट वृक्ष की पूजा से दीर्घायु, अखंड सौभाग्य और उन्नति की प्राप्ति होती है। वट वृक्ष पूजन में तने पर कच्चा सूत लपेट कर 7, 21 अथवा 108 परिक्रमा करना श्रेयस्कर होता है।हिंदू पंचांग के अनुसार किसी भी व्रत और पर्व का निर्धारण उदया तिथि के आधार पर किया जाता है, इसलिए वट सावित्री व्रत 2025 में 26 मई को ही रखा जाएगा। इस दिन व्रत रखने से शास्त्रसम्मत फल की प्राप्ति होती है और व्रती महिलाओं को अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।