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    UP News: उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के 8 साल; अपराधी बेहाल, आमजन निहाल

    Updated: Fri, 18 Jul 2025 06:06 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले आठ वर्षों में अपराध को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया है। 14973 मुठभेड़ों में 30694 अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया गया। 9467 अपराधियों के पैर में गोली लगी जो कभी आतंक फैलाते थे। इन कार्रवाइयों में 238 अपराधी मारे गए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस को आधुनिक हथियार और प्रशिक्षण दिया है जिससे स्मार्ट पुलिसिंग को बढ़ावा मिला है।

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    अपराधियों के दिल में उतरा डर उत्तर प्रदेश पुलिस की खौफनाक दस्तक

    प्रणय विक्रम सिंह। गोली अपराधी के पैर में लगी थी, लेकिन डर अपराध के दिल में उतरा था। निशाना पांव था, किंतु धड़कनें थर्राई थीं। गोली शरीर में लगी थी, पर दहशत गुनाह के दिल में समाई थी। और उत्तर प्रदेश में अपराधियों के दिल में डर की उस खौफनाक दस्तक का नाम है उत्तर प्रदेश पुलिस।

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    यह कोई अखबार की सनसनी नहीं, यह संविधान के समर्पण, शासन के संकल्प, और वर्दी के विवेक से रची गई वह सुरक्षा-संहिता है, जिसने आठ वर्षों में उत्तर प्रदेश को खौफ की गलियों से निकालकर कानून की चौपाल तक पहुंचा दिया है।

    जब योगी ने कहा- या अपराध छोड़ो, या प्रदेश!

    वर्ष 2017 की वह सुबह अब इतिहास है। भगवा वस्त्रधारी संन्यासी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं और मंच से सत्ता का पहला वाक्य यही होता है कि अपराधियों के लिए उत्तर प्रदेश में कोई जगह नहीं। या तो अपराध छोड़ दें, या प्रदेश छोड़ दें।

    यह कोई चुनावी वाक्य नहीं था, यह राजनीति नहीं, नीति का नायकत्व था। यह अवधूत की अविरल वाणी थी, जिसमें अपराध पर अंकुश और अपराधी पर प्रहार की उद्घोषणा थी। इस माध्यम से योगी ने यूपी पुलिस को आदेश नहीं उद्देश्य दिया। और तब से शुरू हुई एक अनवरत प्रहार-यात्रा, जिसने अपराध के अक्षर को अपराधी के अस्तित्व से मिटाना शुरू किया।

    आंकड़ों में अंकित है आक्रोश और अनुशासन

    वर्ष 2017 से अब तक, इन आठ वर्षों में उत्तर प्रदेश पुलिस ने न केवल अपराध से संघर्ष किया, बल्कि उसे समूल उखाड़ फेंकने का साहसिक संकल्प भी निभाया। 14,973 मुठभेड़ों में उन अपराध-साम्राज्यों की नींव हिलाई गई, जो दशकों तक सत्ता की छांव में फलते-फूलते रहे और समाज के सीने पर सांप की तरह सिसकारते थे। 30,694 अपराधियों को सलाखों के साये में पहुंचाना कोई संयोग नहीं है। यह उत्तर प्रदेश पुलिस के प्रहरी-पुत्रों की पराक्रमपूर्ण सेवा-साधना का सुफल है।

    यह सिर्फ गिरफ्तारी नहीं, 'गुंडई' की गर्वोक्ति का गर्त में जाना है। यह सिर्फ मुकदमे नहीं, मृत्यु-प्रेरित मानसिकता के विरुद्ध मानवता की मुकम्मल मशाल है। यह ‘पकड़’ नहीं, उस ‘प्रहार’ का परिणाम है जो योगी युग की नीति से निकला और वर्दी के विवेक, वीरता और विजय से होकर जन-विश्वास तक पहुंचा है।

    इन्हीं वर्षों में 9,467 अपराधियों के पांव में कानून की गोली उतरी। ये वही पांव थे जो कभी खौफ की ख़ाक उड़ाते थे, वर्षों तक भय फैलाने के लिए सड़कों पर नंगा नाच करते रहे, पर आज गिरफ़्तारी की गली में घसीट कर लाए गए हैं। इससे उनका गुरूर टूटा, गति थमी, और गवाही बनी वह ज़मीन जो कभी उनके आतंक से कांपती थी।

    इन्हीं ऐतिहासिक कार्रवाइयों में 238 अपराधी मुठभेड़ के दौरान पुलिस की गोली का शिकार हो गए। ये वो अपराधी थे, जो समाज में कल तक मौत का पर्याय हुआ करते थे, उनके बेजान होने के साथ ही खत्म हो गई उनकी आपराधिक सल्तनत और जिंदा हो गया कानून का वो इकबाल, जो 2017 के पहले इन्हीं नरकवासी अपराधियों की देहरी पर सजदा कर खुद को महफूज समझा करता था।

    यह वह पुरुषार्थ है, जिसमें हर थाने की चौखट से लेकर हर अदालत की चौपाल तक कानून की लकीर, लोहे की हथकड़ी और लोक की सुरक्षा एक ही पंक्ति में खड़ी दिखाई देती है।

    इन मुठभेड़ों की पृष्ठभूमि में जो सबसे अधिक अदृश्य रहा, वह है बलिदान। इन 8 वर्षों में 18 पुलिसकर्मी शहीद हुए। वे अपने घर लौटने वाले बेटे थे, अपने बच्चों के खिलौनों के हिस्सेदार, लेकिन उन्होंने समाज की सुरक्षा के लिए खुद को समर्पित कर दिया। उनकी वर्दी पर लगा खून, कानून की किताब पर लाल हस्ताक्षर है, यह बताने के लिए कि सुरक्षा सिर्फ सैल्यूट से नहीं आती, साहस से आती है।

    यह 18 शहीद पुलिसकर्मी अठारह 'आकाशदीप' हैं, जिनके बलिदान ने अपराध की अंधेरी सुरंग में व्यवस्था का उजाला भर दिया। वे अब किसी चौकी/ थाने/कार्यालय में नहीं हैं, वे उस 'चेतना' में हैं जो हर ईमानदार सिपाही के सीने में सांस बनकर धड़कती है। वे उस वक्त की मिसाल हैं, जब कानून का इकबाल खामोश नहीं था, लहू में लिपटी हुंकार था।

    मेरठ से मिशन तक: जोनल जमीनी सच्चाई

    जो एक समय तमंचों की तपिश और तंजीमों के आतंक से झुलसता था, आज उसी मेरठ जोन में सबसे अधिक 7,969 गिरफ्तारियां और 2,911 घायल अपराधी हैं। यह केवल मुठभेड़ों का मानचित्र नहीं, मर्यादा का नया मंत्र है।

    यह आंकड़े महज नंबर नहीं, उस जमीन के ज़ख्म हैं, जहां पहले गोली अपराधी चलाता था और पुलिस की भूमिका पंचनामा भरने की होती थी।

    इसी क्रम में आगरा में 5,529 गिरफ्तार, बरेली में 4,383 और वाराणसी में 2,029। ये सिर्फ आंकड़ों की सूची नहीं, आतंक से आजादी का अभियान है।

    कमिश्नरेट की क्रांति: नगरों में नकेल

    अब बात शहरों की करें, तो गौतमबुद्धनगर में 1,983 गिरफ्तारी और 1,180 घायल अपराधी। गाजियाबाद में 1,133, आगरा कमिश्नरेट में 1,060। यह उत्तर प्रदेश का वह नया चेहरा है, जहां साइबर शहर की चौकसी में सिपाही का संकल्प जुड़ता है, और मॉल के बीच भी कानून की मजबूत म्यान मौजूद रहती है।

    यह आंकड़े केवल गिरफ्तारी के नहीं, गिरफ्त में आई 'गुंडई' के हैं। इनमें हर संख्या के पीछे हैं हजारों थाने, लाखों सिपाही, अनगिनत रात्रि गश्त और एक अदृश्य लेकिन अटूट दृढ़ता।

    हथियार नहीं, हौसले भी दिए गए

    मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस को न केवल अत्याधुनिक हथियार दिए, बल्कि अभय का आत्मबल, संचार का संबल, और प्रशिक्षण का पराक्रम भी सौंपा। अपराध मानचित्रण, मिशन शक्ति, ई-एफआईआर, एआई, फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाएं, सीसीटीवी निगरानी से लेकर सोशल मीडिया सेल तक, हर दिशा में ‘स्मार्ट पुलिसिंग’ की नींव डाली गई। अब पुलिस की वर्दी अब सिर्फ बिल्ला नहीं, विश्वास की बांह बन गई। अब अपराधी पहले सोचता है, फिर डरता है और अंततः सरेंडर करता है।

    योगी युग का उद्घोष: न अपराध बचेगा, न अपराधी

    अब यूपी का नाम सुनते ही उद्योगपति निवेश की ओर देखते हैं, युवा नौकरी की ओर और माता-पिता सुरक्षा की ओर। यह सब संभव हुआ क्योंकि वर्दी ने विवेक से वीरता निभाई।

    आज उत्तर प्रदेश में कानून केवल किताबों में दर्ज नहीं है बल्कि सड़कों, चौराहों, चौपालों और एकांत के अंधियारों में राजधर्म के रूप में विद्यमान दिखाई पड़ता है। अब थाने की दीवारें खौफ से नहीं, संविधान से गूंजती हैं। चौराहे पर अपराधी की धौंस नहीं, दण्ड की दस्तक सुनाई देती है।

    योगी जी का उद्घोष कि 'अपराधी या तो जेल में होगा या प्रदेश छोड़ देगा' रामराज्य की दण्डनीति की आधुनिक अभिव्यक्ति है।

    पावन श्री रामचरितमानस के लंकाकांड में प्रभु श्री राम विभीषण से कहते हैं कि मैं निर्दोष राक्षसों का वध नहीं करूंगा। लेकिन जो दुष्ट, अपराधी, अत्याचारी राक्षस हैं, उन्हें मैं पृथ्वी से समाप्त कर दूंगा।

    "अपराधिन्ह निसिचर जनि प्रानी

    कर डारौं महि कठिनु अभिमानी॥"

    योगी आदित्यनाथ की अपराध के प्रति 'Zero Tolerance Policy' की मूल भावना भी यही है कि 'न अपराध बचे, न अपराधी लेकिन निर्दोष की सुरक्षा सर्वोच्च रहे।'

    रामराज्य की रीति में जो नीति थी, वही आज योगी युग की नीयत है। निर्दोष की रक्षा और दुष्ट का दमन। पूरी आशा है कि विगत 8 वर्षों की भांति कानून के इकबाल की ये वज्रध्वनि यूं ही गूंजती रहेगी...