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    UP में STP से उपचारित पानी का उपयोग बना बड़ी चुनौती, रोजाना 80 फीसद पानी जा रहा व्‍यर्थ

    By Rafiya NazEdited By:
    Updated: Wed, 03 Feb 2021 07:36 AM (IST)

    उत्‍तर प्रदेश में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) से निकलने वाला करोड़ों लीटर उपचारित पानी इस्तेमाल न होने के कारण नदियों में व्यर्थ बहाया जा रहा है। एनजीटी ने एसटीपी से उपचारित पानी के इस्तेमाल के आदेश दिए हैं। समय सीमा जून 2020 तय की गई थी।

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    यूपी में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) से निकलने वाला करोड़ों लीटर उपचारित पानी इस्तेमाल नहीं हो रहा है।

    लखनऊ [रूमा सिन्हा]। सूबे में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) से निकलने वाला करोड़ों लीटर उपचारित पानी इस्तेमाल न होने के कारण नदियों में व्यर्थ बहाया जा रहा है। एनजीटी ने एसटीपी से उपचारित पानी के इस्तेमाल के आदेश दिए हैं। समय सीमा जून 2020 तय की गई थी। लेकिन, हालत यह है कि उपचारित पानी के बमुश्किल 20 फीसद हिस्से का ही पुन: उपयोग हो पा रहा है। 

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    मकसद था कि पेयजल आपूर्ति को छोड़कर उद्योगों, कृषि, सड़कों की सफाई, पार्कों-पौधों की सिंचाई, निर्माण कार्य समेत अन्य उपयोगों में करोड़ों रुपये की लागत से उपचारित किए गए पानी का दोबारा उपयोग किया जा सके। अभी इन कार्यों में पेयजल आपूर्ति के लिए निकाले जा रहे स्वच्छ पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है।  

    एसटीपी से हर रोज निकल रहा 225 लीटर पानी

    प्रदेश में हर रोज एसटीपी से 225 करोड़ लीटर उपचारित जल निकल रहा है। इसका 80 फीसद हिस्सा शोधन के बाद यूं ही नदियों में बहाया जा रहा है। दरअसल, विभिन्न कार्यों में जिस प्रकार पानी की मांग लगातार बढ़ रही है, उसको देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि जलापूर्ति की चुनौतियों से निपटने के लिए अन्य विकल्पों पर भी ध्यान दिया जाए। इसके लिए सीवेज उपचार से निकलने वाला वेस्ट वाटर प्रमुख जरिया बन सकता है। 

    शहरों में रोजाना 780 करोड़ लीटर पेयजल की आपूर्ति 

    प्रदेश के 653 शहरी निकायों में जलापूर्ति के लिए प्रतिदिन 780 करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति की जाती है। इसमें से लगभग छह सौ करोड़ लीटर पानी केवल भूजल स्रोतों से निकाला जाता है।  

    गंगा सीवेज प्रदूषण को संपदा में बदलने की जरूरत 

    जल निगम की गोमती प्रदूषण इकाई, के महाप्रबंधक आरके अग्रवाल ने बताया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार छोटे शहरों से रोजाना 550 करोड़ लीटर सीवेज गंगा में पहुंचता है। इसमें से लगभग 330 करोड़ लीटर सीवेज के शोधन की व्यवस्था की गई है। इसके लिए वर्तमान में 106 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित हैं। 56 और प्लांट निर्माणाधीन हैं। यदि इन संयंत्रों से निकलने वाले उपचारित पानी को विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल कर लिया जाए तो भूजल संकट से भी निजात मिल सकेगी।

    भरवारा और दौलतगंज एसटीपी काफी पहले बने हुए हैं, जिनसे उपचारित पानी का बायो केमिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) 30 मिलीग्राम प्रति लीटर और टोटल सस्पेंड सालिड (टीएसएस) 30 के करीब रहता है। ऐसे पानी का उपयोग केवल ङ्क्षसचाई में किया जा सकता है। हैदर कैनाल पर निर्माणाधीन एसटीपी से निकलने वाले उपचारित पानी का बीओडी 10 मिलीग्राम प्रति लीटर होगा। इस पानी का प्रयोग किसी भी कार्य के लिए किया जा सकेगा।