UPPCL : रिकार्ड 30 प्रतिशत महंगी हो सकती है बिजली, बीते वर्ष किया गया था दरें न बढ़ाने संबंधी आदेश
UPPCL बिजली की मौजूदा दरें वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से लागू हैं। छह वर्ष पहले बिजली की दरों में औसतन 11.69 प्रतिशत बढ़ोतरी की गई थी। 2024-25 ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, जागरण, लखनऊ : लगभग छह वर्ष बाद प्रदेशवासियों को महंगी बिजली का तगड़ा झटका लगने वाला है। बिजली कंपनियों ने बढ़ते खर्चे को देखते हुए मौजूदा बिजली दर से 19,600 करोड़ रुपये घटने का अनुमान लगाया है।
वास्तविक आय-व्यय के आधार पर निकाले गए घाटे की भरपाई के लिए कंपनियां वर्तमान बिजली की दर में रिकार्ड 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी चाहती हैं। इस संबंध में बिजली कंपनियों द्वारा सोमवार को विद्युत नियामक आय़ोग में नए सिरे से एआरआर (वार्षिक राजस्व आवश्यकता) भी दाखिल कर दिया गया। कंपनियों के एआरआर के आधार पर अब आयोग बिजली की दर निर्धारण की प्रक्रिया शुरू करेगा।
चालू वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए पूर्व में बिजली कंपनियों के दाखिल किए गए 1,13,923 करोड़ रुपये के एआरआर (वार्षिक राजस्व आवश्यकता) प्रस्ताव में 9,206 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया गया था। नियामक आयोग ने इसे नौ मई को स्वीकार कर लिया था, लेकिन बिजली दर निर्धारण संबंधी प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही कंपनियों ने नए सिरे से एआरआर दाखिल करने के लिए आयोग से सप्ताहभर की मोहलत मांग ली थी। सोमवार को कंपनियों ने आयोग में जो एआरआर दाखिल किया उसमें 19,600 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया गया है। घाटे की भरपाई के लिए मौजूदा बिजली की दरों में लगभग 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी आंकलित की गई है।
दरअसल, अब तक बिजली कंपनियों के खर्चे और कमाई को देखते हुए निकलने वाले राजस्व गैप के आधार पर बिजली की दरों का निर्धारण होता रहा है लेकिन बिजली कंपनियों का कहना है कि वास्तव में शत-प्रतिशत बिजली के बिल की वसूली कभी नहीं हो पाती है।
पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में बिजली बिलों के सापेक्ष मात्र 88 प्रतिशत ही वसूली हुई थी। ऐसे में उसने अब वास्तविक आय-व्यय के आधार पर अपना लेखा-जोखा आयोग में प्रस्तुत किया है। राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी देने के बावजूद घाटा बढ़कर 19,600 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। पिछले वर्ष के ट्रूअप को देखते हुए कुल घाटा लगभग 25 हजार करोड़ रुपये होगा।
गौरतलब है कि बिजली की मौजूदा दरें वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से लागू हैं। लगभग छह वर्ष पहले बिजली की दरों में औसतन 11.69 प्रतिशत बढ़ोतरी की गई थी। पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 के एआरआर में बिजली कंपनियों ने वर्तमान बिजली दरों से 11,203 करोड़ रुपये का राजस्व गैप दिखाया था लेकिन नियामक आयोग ने उपभोक्ताओं का ही 1944.72 करोड़ रुपये सरप्लस निकालते हुए लगातार पांचवें वर्ष बिजली की दरें न बढ़ाने संबंधी आदेश पिछले वर्ष 10 अक्टूबर को किया था।
हालांकि, बिजली कंपनियों के एआरआर पर सवाल उठाते हुए उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा का कहना है कि इन कंपनियों को कानून का ज्ञान नहीं है। कंपनियों के आंकड़ों को फर्जी बताते हुए वर्मा ने सोमवार को आयोग में लोक महत्व आपत्ति दाखिल कर कहा कि कलेक्शन एफिशिएंसी के आधार पर गैप का निर्धारण किया जाना पूरी तरह असंवैधानिक है और मल्टी ईयर टैरिफ रेगुलेशन 2025 के खिलाफ है।
बिजली निजीकरण में विधिक आपत्तियों को सरकार को भेजे नियामक आयोग
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने सोमवार को विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार से मुलाकात कर लोक महत्व का प्रस्ताव सौंपा। प्रस्ताव के माध्यम से मांग की है कि परिषद की तरफ से दाखिल सभी विधिक आपत्तियों को आयोग प्रदेश सरकार को भेजे। ऐसा नहीं होने की स्थिति में सरकार द्वारा संदर्भित प्रकरण के साथ आपत्तियों को सम्मिलित करते हुए निर्णय लिया जाए। प्रस्ताव के माध्यम से अवधेश वर्मा ने सवाल उठाया है कि एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में सलाहकार पावर कारपोरेशन के कई उच्चाधिकारी उपस्थित थे।
इसके बाद भी किसी को यह नहीं पता था कि पावर कारपोरेशन प्रबंधन अब अभिमत के लिए नियामक आयोग को प्रस्ताव नहीं भेज सकता है। इससे विशेषज्ञों पर सवाल उठ रहे हैं। यह भी लिखा है कि बिजली निजीकरण के मामले में नियुक्त सलाहकार ग्रांट थार्नटन को कोई ज्ञान नहीं है। प्रस्ताव के माध्यम से यह मांग भी की है कि विषय नीतिगत होने के नाते राज्य सलाहकार समिति की बैठक भी बुलाई जाए।

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