संस्कृत शिक्षा परिषद के नए भवन के लिए अभी जमीन की तलाश, मेट्रो लाइन से बदली योजना
उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद, जो 2001 में स्थापित हुई, को अभी तक अपना भवन नहीं मिला है। पहले चयनित भूमि पर मेट्रो लाइन के कारण अब नई जगह की तलाश जारी है। परिषद और निदेशालय के लिए दो एकड़ जमीन चाहिए, जिसके लिए 42.42 करोड़ रुपये स्वीकृत हैं। भवन को संस्कृत शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा, जिसमें आधुनिक सुविधाएं होंगी और यह पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक शिक्षा के बीच सेतु का काम करेगा।

राज्य ब्यूरो, लखनऊ। वर्ष 2001 में संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से अलग होकर गठित उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद को अभी तक अपना भवन नहीं मिला है। जिस जमीन पर भवन निर्माण प्रस्तावित था, वहां से मेट्रो लाइन गुजरने की वजह से अब नई जगह की तलाश जारी है।
विभागीय अधिकारियों के अनुसार इस माह के अंत तक नई भूमि का चयन कर लिया जाएगा। परिषद और संस्कृत शिक्षा निदेशालय के लिए करीब दो एकड़ जमीन की आवश्यकता है। इसके भवन निर्माण के लिए 42.42 करोड़ रुपये की स्वीकृति पहले ही मिल चुकी है, कार्यदायी संस्था भी तय है।
संस्था जब निर्माण कार्य शुरू करने की तैयारी में थी, तब पता चला कि चयनित स्थल (लखनऊ सिटी स्टेशन के सामने) से मेट्रो का मार्ग गुजर रहा है। ऐसे में निर्माण कार्य रोकना पड़ा और अब वैकल्पिक जमीन देखी जा रही है। जगह बदलने से परियोजना में देरी से परिषद के संचालन में भी असुविधा बनी हुई है।
प्रस्तावित भवन को संस्कृत शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना है। इसे प्राचीन भारतीय नागर शैली में ग्राउंड फ्लोर प्लस तीन मंजिलों में बनाया जाएगा। भवन में मल्टीपरपज हाल, डिजिटल लाइब्रेरी, भाषा प्रयोगशाला, विदेशी भाषा प्रयोगशाला जैसी आधुनिक सुविधाएं होंगी।
संस्कृत भाषा की महत्ता को देखते हुए इस भवन में न केवल पारंपरिक शिक्षा, बल्कि संस्कृत के साथ विदेशी भाषाओं के अध्ययन का केंद्र भी विकसित किया जाएगा। ताकि यह केंद्र पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक शिक्षा के बीच सेतु का कार्य कर सके।
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