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    UP Politics: …तो भाजपा के लिए नहीं थे सियासी खतरे के संकेत, विधानसभा सीटों के आंकड़े ने बजाई खतरे की घंटी

    Updated: Fri, 14 Jun 2024 05:00 AM (IST)

    अठारहवीं लोकसभा चुनाव के आए नतीजों को अगर विधानसभा वार देखा जाए तो सत्ताधारी भाजपा का चुनाव दर चुनाव विधानसभा सीटों पर भी दबदबा घटता जा रहा है। वर्ष 2017 में रिकॉर्ड 312 विधानसभा सीटों पर भगवा परचम लहराकर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने वाली भाजपा अबकी लोकसभा चुनाव में 162 सीटों पर ही बढ़त बना सकी। पढ़िए विस्तृत रिपोर्ट-

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    UP Politics: …तो भाजपा के लिए नहीं थे सियासी खतरे के संकेत।

    अजय जायसवाल, लखनऊ। अठारहवीं लोकसभा चुनाव के आए नतीजों को अगर विधानसभा वार देखा जाए तो सत्ताधारी भाजपा का चुनाव दर चुनाव विधानसभा सीटों पर भी दबदबा घटता जा रहा है। 

    वर्ष 2017 में रिकॉर्ड 312 विधानसभा सीटों पर भगवा परचम लहराकर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने वाली भाजपा अबकी लोकसभा चुनाव में 162 सीटों पर ही बढ़त बना सकी। 

    तब कांग्रेस से हाथ मिलाने पर भी 47 सीटों पर सिमटकर सत्ता गंवाने वाली सपा इस चुनाव में सर्वाधिक 183 सीटों पर आगे रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ दो विधायक वाली पार्टी बनी कांग्रेस, लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन कर 40 विधानसभा सीटों पर अव्वल रही है। 

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    2019 में लगा था पहला झटका

    लगभग डेढ़ दशक बाद वर्ष 2017 में भाजपा ने राज्य की सत्ता में वापसी की थी। इस बीच सपा और बसपा की ही सरकारें रहीं। सात वर्ष पहले भाजपा ने सपा-बसपा को बहुत पीछे छोड़ते हुए रिकॉर्ड 312 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। 

    एनडीए के सहयोगी अपना दल(एस) व सुभासपा संग सरकार बनाने वाली भाजपा को पहला झटका दो वर्ष बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में लगा। तब सपा-बसपा-रालोद के मिलने पर भाजपा के सांसद जहां 71 से घटकर 62 रह गए। वहीं पार्टी 274 विधानसभा सीटों पर ही बढ़त बना सकी थी।

    सपा के पांच सांसद जीते और पार्टी 44 सीटों पर जबकि 10 सांसद वाली बसपा 66 विधानसभा सीटों पर आगे रही। सिर्फ रायबरेली लोकसभा सीट जीतने वाली कांग्रेस नौ सीटों पर ही औरों से आगे निकली थी।

    2022 नहीं था भाजपा को खतरा

    दो वर्ष पहले 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा राज्य में फिर सरकार बनाने में तो कामयाब रही, लेकिन उसकी सीटों और घट गई। भाजपा इस चुनाव में सिर्फ 255 सीटें ही हासिल कर सकी। 

    रालोद व सुभासपा को साथ लेने से भी सपा पांच वर्ष बाद सरकार में वापसी तो नहीं कर सकी, लेकिन उसकी सीटें जरूर 47 से 111 हो गईं। सपा से हाथ मिलाने पर रालोद के आठ व सुभासपा के छह विधायक भी जीते। 

    इसी तरह भाजपा के साथ रहने पर अपना दल (एस) के 12 विधायक जीते। अकेले चुनाव लड़ी कांग्रेस दो और बसपा एक ही सीट जीत सकी। यहां तक तो ‘भगवा दल’ के लिए किसी तरह के बड़े सियासी खतरे के संकेत नहीं थे, लेकिन इस लोकसभा चुनाव के आए नतीजे हर लिहाज से सत्ताधारी भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजाने वाले हैं।

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