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    UP Politics : पंचायत चुनाव में होगी ‘पाठशाला’ की परीक्षा, भाजपा और सपा के बीच घमासान

    Updated: Sat, 02 Aug 2025 07:02 PM (IST)

    UP Panchayat Election गांव-गांव पीडीए पाठशालाओं की शुरुआत कर सपा इस विरोध को एक कदम आगे ले गई है। कोशिश है कि बच्चों की पढ़ाई के नाम पर अभिभावकों को अपने जोड़ने के साथ भाजपा के विरोध का एक माहौल खड़ा किया जाए। इस बिंदु को भी साधने में सभी राजनीतिक पार्टियां जुट गई है।

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    मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा प्रमुख अखिलेश यादव

    दिलीप शर्मा, जागरण, लखनऊ : त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए बिछ रही बिसात पर परिषदीय पाठशालों के विलय का मुद्दा तेजी से उभर रहा है। विकास होने, न होने की दुहाई और जातीण गुणा-भाग के साथ शिक्षा से जुड़े इस बिंदु को भी साधने में सभी राजनीतिक पार्टियां जुट गई है।

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    भाजपा और सपा के बीच सबसे ज्यादा घमासान मचा है। सरकार के फैसले और विरोधियों के गढ़े गए नैरेटिव के कारण गांव-गांव इस पर बहस छिड़ी है। विलय की नीति का सबसे ज्यादा असर भी उन्हीं ग्रामीण क्षेत्रों में है, जहां पंचायत चुनावों की जीत-हार का पूरा तानाबाना बुना जाना है। ऐसे में भाजपा पूरी ताकत के साथ अपने शिक्षा सुधार के एजेंडे से जनता जोड़ने के जतन कर रही है, जबकि सपा अपनी पीडीए पाठशालाओं के सहारे अपनी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) की रणनीति को मजबूत करने की कोशिश में है। ‘तेरी पाठशाला’ बनाम ‘मेरी पाठशाला’ का विमर्श दोनो पार्टियां खड़ा कर रही है। ऐसे में चुनावों में ‘पाठशाला’ इस मुद्दे के प्रभाव की भी परीक्षा होना तय है।

    प्रदेश में वर्ष 2027 में विधानसभा चुनाव और उससे पहले अगले वर्ष अप्रैल-मई में पंचायत चुनाव होने हैं। ऐसे में पंचायत चुनाव को ताकत परखने का अवसर माना जा रहा है और हर राजनीतिक दल इसकी तैयारी में जुटा है। इस सबके बीच सरकार ने कम छात्र संख्या वाले परिषदीय स्कूलों के विलय का निर्णय किया तो विरोधियों ने इसे भाजपा के विरोध बड़ा मुद्दा बना लिया। इस फैसले से दस हजार से अधिक स्कूलों के प्रभावित होने की संभावना है।

    बसपा प्रमुख मायावती ने सहित विपक्षी दलों के नेताओं ने इसे शिक्षा पर प्रहार बताया। जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव इसे पीडीए से शिक्षा का अधिकार छीनने की साजिश बता रहे हैं। गांव-गांव पीडीए पाठशालाओं की शुरुआत कर सपा इस विरोध को एक कदम आगे ले गई है। कोशिश है कि बच्चों की पढ़ाई के नाम पर अभिभावकों को अपने जोड़ने के साथ भाजपा के विरोध का एक माहौल खड़ा किया जाए। हालांकि इस कोशिश पर लगातार प्रश्न भी खड़े हो रहे हैं। बंद के बजाय संचालित स्कूलों में पाठशाला लगाने के आरोप लग हैं और अब बच्चों को ए फार अखिलेश और डी फार डिंपल का अक्षर ज्ञान कराने को लेकर भी भाजपा हमलावर है।

    भाजपा अपने फैसले को शिक्षा सुधार का बड़ा कदम बताने के साथ सपा के शासनकाल में शिक्षा की बदहाली का मुद्दा उठा रही है। पढ़ाई के नाम पर राजनीति करने के आरोप लगाकर भी सपा पर हमला बोला जा रहा है। इसके साथ ही विरोध को बेअसर करने के लिए कई बार नीति को स्पष्ट किया जा चुका है। 50 से कम छात्र संख्या वाले विद्यालयों को नजदीकी विद्यालयों में विलय करने से शिक्षा की सुविधाएं बेहतर होने की बात कही जा रही है और बंद होने वाले विद्यालयों में बाल वाटिकाएं संचालित करने का भरोसा भी दिलाया गया है, हालांकि इस सबके बाद भी यह मुद्दा ठंडा पड़ता नहीं दिख रहा। ऐसे में पंचायत चुनाव में यह मुद्दा भी जोरशोर से गूंजेंगा और ‘पाठशाला’ के नाम पर सभी दलों के राजनीतिक नैरेटिव की भी परीक्षा भी होगी।