UP Politics: शिकारी खुद शिकार हो गए, ऐसी पलटी बाजी कि अब अपने को संभालें या दूसरों को गिराएं
UP Political News बातों की बंदूक चलाने में नेताजी की चुनावी नैया डूबी तो पलटा दांव और जिसने सहारा दिया उसके शिकार की तैयारी में जुट गए। लेकिन इस बीच अपने ही पाले वालों ने पीछे से हमला कर दिया।

UP News: लखनऊ [अजय जायसवाल]। बातों की बंदूक चलाने में नेताजी इतने माहिर कि जो निशाने पर रहा, वह बेहाल हो गया और सुनने वालों का भरपूर मनोरंजन। हिट चल रहे सियासी शो में खुद ही क्लाइमेक्स लेकर आए। भगवा खेमे का दरबार छोड़कर साइकिल पर सवार हो गए। जुबानी बारूद पर इतना कान्फिडेंस था कि सत्ता वालों की मान-मनौव्वल पर भी मिजाज न मिले।
खैर, चुनावी नैया डूबी तो दांव पलटा। जिसने सहारा दिया, उसके शिकार की तैयारी में जुट गए। मन में सोचा था कि यूं भाव और बढ़ता जाएगा तो भगवा दल से बातचीत दमदारी से की जाएगी, लेकिन अपने ही पाले वालों ने पीछे से हमला कर दिया।
अब खुद को संभालें या दूसरों को गिराएं। इनके अपनों को शिकारी किसने बनाया, यह जानने के लिए अनुमान ही लगाना पड़ेगा कि पीले गमछे वाले मुखर नेताजी के गिरने से पूर्वांचल की राजनीति में सीधा-सीधा लाभ किस दल को मिल सकता है?
...और सिफारिश में दब गए पुराने शिकवे
हाल ही शासन में बड़े स्तर पर हुए तबादलों में कुछ अफसरों की कुर्सियों का उलटफेर चर्चा में आ गया। दो-तीन अफसरों के उतार-चढ़ाव को लेकर तमाम अटकलें लगाई जाने लगीं कि आखिर माजरा क्या है? बड़ा सवाल कि बड़े कद वाले साहब से ऐसी क्या खता हुई कि उनके साथ अचानक 'खेल' हो गया। इसी तरह ऊपर वालों के खासमखास बताने जाने वाले साहब का 'इलाज' किसने करा दिया। ऐसी ही तीसरे साहब चर्चा में हैं, जो लंबे समय से किनारे बैठे 'हरिनाम' जप रहे थे।
बताया जाता है कि ऊपर वालों से उनकी कोई पुरानी गांठ फंसी थी, जिसे खुलवाने में एक ऐसे माननीय ने बड़ी भूमिका निभाई है, जो पहले अफसरों की जमात में ही थे। राजनीति में 'असीम' संभावनाएं देख पाला बदला, लेकिन उन पर ऊपर वालों का भरोसा इतना कायम है कि उनकी सिफारिश पर बड़े माननीय ने पुराने शिकवे को भी नजरअंदाज कर दिया।
राजनीति के मंझे खिलाड़ी
सबसे बड़े दल में सबसे बड़े राज्य के चौधरी बनाए गए नेताजी कुर्सी संभालने के बाद अब झटके दे रहे हैं। संगठन के तमाम पुराने दरबारियों ने समझा था कि नेताजी स्वभाव के बहुत सीधे हैं। प्रदेश की टीम में भी कभी रहे नहीं हैं। वह जब तक यहां का सिस्टम समझेंगे, तब तक उन्हें अपने घेरे में ले लिया जाएगा।
खुद को राजनीति में 'शिक्षित-दीक्षित' समझने वाले पहले दिन से ही अपना प्रभाव जमाने के प्रयास में जुट गए। नेताजी के सामने एक कर्मी को इस भरोसे से डपट दिया कि उनका खुद का सिक्का जैसा जम ही गया हो। यह क्या, वहीं पर जोर का झटका लग गया।
नेताजी ने समझा दिया कि अब किसी की दुकान नहीं चलेगी। व्यवस्थाएं वह खुद तय करेंगे कि किससे क्या काम लेना है? तब से छोटे नेताजी टेंशन में हैं। समझ नहीं पा रहे हैं कि उनकी कथित दुकान बची रहेगी या नहीं।
चाकू में क्या बुराई है?
सरकार ने हर जिले में किसी न किसी उत्पाद को चिन्हित कर उसके प्रमोशन की योजना चला रखी है। अगर किसी जिले का चाकू बहुत मशहूर है तो भला क्या किया जाए। राजनीतिक दलों के काम का यह चाकू वैसे तो नहीं है, लेकिन जुबानी हमलों के काम जरूर आ रहा है।
महाराज जी पिछले दिनों साइकिल वाले वरिष्ठ नेताजी के ढहे गढ़ में गए तो बताया कि चाकू पहले गलत हाथों में था और आज सुरक्षा के काम आ रहा है। साइकिल वाले नेताजी को यह रास नहीं आया। वह बता रहे हैं कि हमने तो चाकू की जगह कलम थमा दी थी।
अरे नेताजी, इतना डिफेंसिव क्यों हो गए। आपके जिले में चाकू बनता है, उसे छीनने के लिए कोई नहीं कह रहा। चाकू बनाने का कारोबार चलने दीजिए। संदेश सिर्फ यह है कि उस चाकू का गलत इस्तेमाल न हो। युवा पीढ़ी अपराध की ओर कदम न बढ़ाए।
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