UP Politics: सहयोगियों के किस दांव से भाजपा हुई बेचैन, सपा-बसपा की भी बढ़ेगी मुश्किल
उत्तर प्रदेश में निषाद पार्टी अपना दल (एस) और सुभासपा की एकजुटता ने भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। तीनों दलों के साथ आने से भाजपा पर गठबंधन में ज्यादा हिस्सेदारी का दबाव बढ़ेगा। इससे सपा की पीडीए रणनीति और बसपा के लिए भी चुनौतियां बढ़ेंगी। इन दलों का अपने-अपने समुदायों पर प्रभाव है जिससे कई सीटों पर असर पड़ सकता है।

दिलीप शर्मा, लखनऊ। एनडीए के सहयोगियों ने पंचायत चुनाव से पहले राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। निषाद पार्टी के 10वें स्थापना दिवस पर दिल्ली में आयोजित समारोह में अपना दल (एस) और सुभासपा के नेताओं की मौजूदगी ने जातीय राजनीति में नये समीकरणों के संकेत साफ कर दिए हैं। गठबंधनों को लेकर निषाद और अपना दल के असहमति के सुरों के बीच सुभासपा का साथ, सीधे तौर पर भाजपा को बेचैन करने वाला है।
निषाद पार्टी ने निषाद समाज के लिए अनुसूचित जाति के दर्जे की पुरानी मांग दोहराकर कठोर मोलभाव का इशारा दे दिया है। अपना दल और सुभासपा ने भी यही संदेश देने की कोशिश की है। तीनों के एकजुटता से भाजपा पर आगामी पंचायत चुनाव और उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन में ज्यादा हिस्सेदारी देने का दवाब बढ़ना तय है।
दूसरी तरफ तीनों की ये गोलबंदी सपा की पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (पीडीए) की रणनीति के लिए भी चुनौती खड़ी करेगी। वहीं, खुद को मजबूत करने की कोशिश में जुटी बसपा की राह भी कठिन हो सकती है।
भाजपा के सहयोगी दलों ने पहले ही वर्ष 2026 में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अकेले उतरने की घोषणा रखी है। निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मत्स्य मंत्री संजय निषाद पहले कई बयानों के सहारे अहसजता जता चुके हैं। अपना दल के उपाध्यक्ष एवं प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल तो बिना नाम लिए सीधे-सीधे अपनी पार्टी को कमजोर करने के आरोप लगा चुके हैं। अब तक सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पंचायती राज मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने जरूर ऐसा कोई बयान नहीं दिया। परंतु बुधवार को निषाद पार्टी के स्थापना दिवस समारोह से साफ हो गया है कि यह एक तरह से तीनों दलों की भविष्य की चुनावी रणनीति दिखाने का माध्यम था।
अब तक इन सहयोगियों की मांग और अपेक्षाओं पर भाजपा सबसे अलग-अलग समन्वय बना रही थी, परंतु यदि अब तीनों एकसाथ अपने हितों को लेकर मांग रखते तो यह थोड़ा मुश्किल होगा। भाजपा साथ बनाए रखने की कोशिश में है, क्योंकि गठबंधन को कई चुनावों से बढ़त बनाने में आसानी हो रही है। तीनों ही दलों का अपनी-अपनी जातियों में खासी पकड़ मानी जाती है। निषाद पार्टी, निषाद समाज को अपना वोटबैंक बताती है और इन मतदाताओ का 30 से 35 सीटों प्रभाव है। अपना दल (एस) का बड़ा आधार कुर्मी समाज माना जाता है, जो 20 से 25 सीटों पर असर रखता है। वहीं सुभासपा का वोटबैंक कहे जाने वाले राजभर समुदाय का 15 से 20 सीटों पर प्रभाव है। यदि ये तीनों अलग होते हैं तो भाजपा को 80 से 90 विधानसभा सीटों पर मुश्किल हो सकती है।
इनके एकजुट होकर अलग लड़ने या भाजपा के साथ लड़ने, दोनों स्थितियों में सपा के पीडीए फार्मूले पर असर पड़ने की संभावना है। माना जा रहा है कि निषाद, कुर्मी और राजभर वोट जुड़ने पर सपा का गैर-यादव ओबीसी समीकरण कमजोर होगा। वहीं वहीं एससी दर्जे की मांग से बसपा के पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी का भी खतरा होगा। बहरहाल, साफ है कि आने वाले दिनों कई राजनीतिक समीकरण, बन और बिगड़ सकते हैं।
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