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    Azam Khan News: भड़काऊ भाषण देने के कारण आजम खां को मिली सजा, हर दल के लिए संदेश

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Mon, 31 Oct 2022 10:33 AM (IST)

    Azam Khan News आजम खां को सजा और उनकी विधानसभा सदस्यता जाना सभी राजनीतिक दलों के लिए भी एक नसीहत है कि अपने नेताओं पर नियंत्रण की लगाम उन्हें स्वयं भी लगानी चाहिए। भाषा की मर्यादा बनी रही तो राजनीति का धरातल और साफ-सुथरा ही होगा।

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    भड़काऊ भाषण देने के कारण आजम खां को मिली तीन साल की सजा। फाइल

    लखनऊ, हरिशंकर मिश्र।‘आजम खां ने जिन शब्दों प्रयोग किया, वह विधि की दृष्टि से भड़काऊ, घृणित, समाज को बांटने वाले तथा सरकार व प्रशासन को अपमानित करने वाले हैं। सरकार के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाले और लोक प्रशांति व लोक क्षेम को हानि पहुंचाने वाले हैं।’ यह उत्तर प्रदेश में रामपुर के एमपी-एमएलए कोर्ट की वह टिप्पणी है जो उत्तर प्रदेश से राजनीति में शब्दों की मर्यादा बनाए रखने के संदेश के साथ निकली है। यह न्याय की लाठी है और बेआवाज नहीं है, सभी राजनीतिक दलों के उन नेताओं के लिए सबक भी है जो शब्दों के अनुशासन का अर्थ नहीं समझते।

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    आजम ने वर्ष 2019 के चुनाव में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अपशब्दों को अस्त्र के रूप में प्रयोग किया था तो उसमें उनकी हेकड़ी की आवाज भी थी। अब सजा के बाद यदि वह यह कहते हैं कि मैं इंसाफ का कायल हो गया हूं तो यह हेकड़ी टूटी हुई दिखाई देती है। ऐसी ही एक आवाज लखनऊ में भी सुनाई दी, जहां पूर्व सांसद और माफिया अतीक अहमद कोर्ट में पेशी से बाहर निकलते ही चिल्लाता है, ‘मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बहादुर और ईमानदार हैं।’ प्रदेश में पिछले सप्ताह दंभ टूटने की ये दो कहानियां थीं और यकीन मानिए सभ्य समाज को यह सुखद अहसास कराती हैं।

    राजनीतिक मर्यादाएं

    पिछले लगभग 42 साल से रामपुर की राजनीति में अपरिहार्य रहे आजम खां को चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण में तीन साल की सजा के निहितार्थ गंभीर हैं और सभी राजनीतिक दलों के उन नेताओं के लिए हैं जिनका अपनी जुबान पर नियंत्रण नहीं है। राजनीति में विरोधियों पर करारा प्रहार किया जाना चाहिए, लेकिन उसकी भी एक सीमा है। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री पर अमर्यादित टिप्पणी सत्ता, शासन पर प्रहार है और जनभावनाओं का अपमान भी।

    आजम ने अपनी छवि बड़बोलेपन की बना रखी थी और यह उनके समर्थकों को रास आता था। अधिकारियों के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग, जिलाधिकारी से जूते साफ कराएंगे आदि वाक्य उन्हें इसलिए रास आते थे, क्योंकि इससे उनकी हनक वाली छवि सामने आती थी। हालांकि राजनीतिक मर्यादाएं इसकी अनुमति नहीं देतीं और यही वजह है कि उनके ही शब्द उनकी राजनीतिक यात्रा में अब सबसे बड़ा अवरोध बन गए हैं। अवसान काल में लोग साथ छोड़ते हैं और आजम के साथ भी वही हो रहा है।

    विवादित बयानों के पीछे की वजह

    पिछले संसदीय चुनाव में रामपुर में उनकी ओर से घोषित सपा प्रत्याशी आसिम रजा की हार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। प्रदेश की मुस्लिम राजनीति में सबसे बड़ी विडंबना यह है कि वह भाजपा के विरोध पर ही टिककर रह गई है। भाजपा से मुसलमानों को डराकर कई नेताओं ने अपनी राजनीतिक जमीन तैयार की और आजम खां भी उनमें एक हैं। पश्चिम के कई मुस्लिम नेताओं का धरातल इसी पर टिका है तो पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी या प्रयागराज में अतीक अहमद भी इसी आधार पर सदन में पहुंचे।

    समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को मुस्लिम राजनीति के इस सूत्र से एतराज नहीं, इसलिए ये राजनीतक दल ऐसे नेताओं को संरक्षण देते आए। हालांकि भारतीय जनता पार्टी को भी इसका राजनीतिक लाभ मिलता रहा और मुस्लिम एकजुटता कई क्षेत्रों में हिंदू ध्रुवीकरण का काम करती रही। नेताओं के बड़बोलेपन और विवादित बयानों के पीछे की एक वजह यह भी है कि मतों का ध्रुवीकरण हर हाल में होना चाहिए, वह भले ही किसी तरह हो। इसी वजह से बीते विधानसभा चुनाव के दौरान परिणाम आने से पहले ही मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी मंच से यह कहते नजर आए कि छह महीने किसी का ट्रांसफर नहीं होगा, पहले हिसाब किताब होगा तो शहजिल इस्लाम ने यहां तक कह दिया कि उनकी आवाज निकलेगी तो हमारी बंदूक से धुंआ नहीं गोलियां निकलेंगी।

    वैसे आजम के मामले में कोर्ट की टिप्पणी के दायरे में सभी राजनीतिक दलों के नेता आते हैं। वर्ष 2017 के चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के नेता दयाशंकर सिंह का बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती को लेकर दिया गया बयान विवादों में रहा तो इसके काउंटर में तब बहुजन समाज पार्टी में रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बयान का भी कम विरोध नहीं हुआ। दयाशंकर को राजनीतिक रूप से इसका लाभ भी मिला और पहले उनकी पत्नी और बाद में वह खुद भी मंत्री बने।

    वर्ष 2022 के चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर की जुबान तो कई बार फिसली। प्रदेश की राजनीति में बड़ी संख्या में ऐसे नेता हैं जो राजनीति का चेहरा विद्रूप करते हैं। आजम खां को सजा और उनकी विधानसभा सदस्यता जाना सभी राजनीतिक दलों के लिए भी एक नसीहत है कि अपने नेताओं पर नियंत्रण की लगाम उन्हें स्वयं भी लगानी चाहिए। भाषा की मर्यादा बनी रही तो राजनीति का धरातल और साफ-सुथरा ही होगा। मुसलमानों के लिए भी यह निर्णय एक आईना है जिसमें वे अपने वोटों के व्यापार का दुष्परिणाम देख सकते हैं।

    [वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]