Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यूपी पुलिस करेगी पूरी तैयारी, खास एक्ट में आरोपपत्र से पहले अभियोजन की 'एनओसी' अनिवार्य

    By Alok Mishra Edited By: Dharmendra Pandey
    Updated: Fri, 28 Nov 2025 06:28 PM (IST)

    UP Police: पुलिस महानिदेशक राजीव कृष्णा की ओर से सभी थानों में विभिन्न एक्ट तहत दर्ज मुकदमों में आरोपपत्र दाखिल करने से पहले अभियोजन संवर्ग के अधिकारियों से विधिक राय जरूर लिए जाने का निर्देश दिया है। ताकि साक्ष्यों के अनुरूप किसी धारा में आरोपपत्र बने और चूक की गुंजाइश न रहे।

    Hero Image

    पुलिस महानिदेशक राजीव कृष्णा

    राज्य ब्यूरो, जागरण, लखनऊ : विवेचना में चूक और साक्ष्यों के संकलन में लापरवाही। इन आरोपों से पुलिस अक्सर दो-चार होती है। ऐसे ही प्रयागराज कमिश्नरेट में दर्ज मुकदमे में पुलिस खास एक्ट के तहत गलत आरोपपत्र दाखिल करने के मामले में घिर गई।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुलिस की गलती पर नाराजगी जताई और विभिन्न्न अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में अभियोजन अधिकारियों से विमर्श के बाद ही चार्जशीट दाखिल किए जाने का आदेश दिया है। पुलिस महानिदेशक राजीव कृष्णा की ओर से सभी थानों में विभिन्न एक्ट तहत दर्ज मुकदमों में आरोपपत्र दाखिल करने से पहले अभियोजन संवर्ग के अधिकारियों से विधिक राय जरूर लिए जाने का निर्देश दिया है। ताकि साक्ष्यों के अनुरूप किसी धारा में आरोपपत्र बने और चूक की गुंजाइश न रहे।

    प्रयागराज के फूलपुर थाने में दर्ज एक मुकदमे में ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत बन रहे अपराध के मामले में पुलिस ने कापी राइट एक्ट के तहत आरोपपत्र कोर्ट में दाखिल किया गया था, जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने मामले में तीन सितंबर को आदेश जारी किया था।

    पुलिस विभिन्न मामलों में आइटी एक्ट, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, पाक्सो (प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुल अफेंसेस) एक्ट, विस्फोटक अधिनियम, विष अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम, रेलवे संपत्ति (गैरकानूनी कब्जा) अधिनियम, वन्य जीव (सुरक्षा) अधिनियम, टेलीग्राफ वायर (गैरकानूनी कब्जा) अधिनियम, आफिशियल सीक्रेट एक्ट, उप्र गोवध (निवारण) संसोधन अधिनियम समेत अन्य अधिनियमों के तहत एफआइआर दर्ज करती है।

    कानून के अनुरूप साक्ष्यों के संकलन के आधार पर अधिनियम की अलग-अलग धाराओं के तहत आरोप तय किए जाते हैं। विवेचक कई बार आरोपपत्र दाखिल करने में चूक कर जाते हैं और पुलिस को कोर्ट में विधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई बार उसकी लापरवाही का सीधा लाभ आरोपित पक्ष को मिलता है।

    डीजीपी की ओर से जारी सर्कुलर में कहा गया है कि विवेचना के बाद संकलित साक्ष्यों की समीक्षा करते हुए सुसंगत धाराओं में आरोपपत्र कोर्ट में दाखिल करना विवेचक व पर्यवेक्षण अधिकारी का विधिक दायित्व है। किसी प्रकरण में किस अधिनियम की किस धारा का अपराध कारित किया गया है, यह स्पष्ट न हो तो पर्यवेक्षण अधिकारी, जिले के संयुक्त निदेशक अभियोजन/ज्येष्ठ अभियोजन अधिकारी से राय जरूर ली जाए।