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    UP: मास स्पेक्ट्रोमेट्री की मदद से और सटीक होगी ब्रेन टीबी की जांच

    By Vikash Mishra Edited By: Dharmendra Pandey
    Updated: Thu, 27 Nov 2025 02:33 PM (IST)

    Brain TB in UP:  सूबे में 2024 में लगभग 6.7 लाख टीबी के मामले दर्ज किए गए, जिसमें केवल ब्रेन टीबी के रोगी लगभग 35000 हैं। इनमें करीब 30-35 प्रतिशत बच्चे से लेकर वयस्क हैं।

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    लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान

    विकास मिश्र, जागरण, लखनऊ: टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरसकुलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। यह बीमारी मुख्य रूप से मरीज के फेफड़े को प्रभावित करती है, शरीर के अन्य अंग जैसे- गुर्दे, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी भी इसकी चपेट में आते हैं।

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    इनमें भी ब्रेन टीबी बेहद खतरनाक मानी जाती है, जिसे ट्यूबरकुलस मेनिन्जाइटिस या टीबीएम कहा जाता है। ब्रेन टीबी की जल्द व सटीक जांच न हो पाने से मृत्युदर अधिक है। तीसरे स्टेज में 75 प्रतिशत रोगियों की जान चली जाती है। इनमें बच्चे से लेकर युवाओं की संख्या 30-35 प्रतिशत है, लेकिन लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सकों के नए अध्ययन ने इस गंभीर रोग को लेकर बड़ी उम्मीद जगाई है। अब मास स्पेक्ट्रोमेट्री की मदद से ब्रेन टीबी की जांच और सटीक संभव होगी।
    मास स्पेक्ट्रोमेट्री पारंपरिक विधियों की तुलना में तेजी से टीबी का पता लगाना संभव है। यह एक ही माप से कई अणुओं का पता लगा सकती है, जो पारंपरिक इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री की तुलना में अधिक लाभप्रद है। यह साझा अध्ययन संस्थान के सीएमएस एवं जनरल मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष प्रो. विक्रम सिंह, जनरल मेडिसिन विभाग में एडिशनल प्रो. डा. मृदु सिंह, बायोकेमेस्ट्री विभाग के अध्यक्ष एडिशनल प्रो. मनीष कुलश्रेष्ठ और डॉ. जूही वर्मा ने किया, जिसे अंतरराष्ट्रीय जर्नल न्यूरोलाजिकल साइंसेज में प्रकाशित किया गया है। डाक्टरों का दावा है कि यह अध्ययन ब्रेन टीबी के उपचार में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
    यूपी में लगभग 35000 ब्रेन टीबी के मरीज
    प्रो. विक्रम सिंह के अनुसार, कुल टीबी के मामलों का लगभग एक-पांच % ब्रेन टीबी के रोगी होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2024 में देश में टीबी के मरीजों की संख्या लगभग 27 लाख थी। खास बात यह है कि अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश में टीबी के मरीज अधिक है। सूबे में 2024 में लगभग 6.7 लाख टीबी के मामले दर्ज किए गए, जिसमें केवल ब्रेन टीबी के रोगी लगभग 35000 हैं। इनमें करीब 30-35 प्रतिशत बच्चे से लेकर वयस्क हैं।
    ऐसे किया अध्ययन
    डॉ. मनीष कुलश्रेष्ठ के अनुसार, अध्ययन में कुल 172 मरीजों को शामिल किया गया, जिन्हें माइक्रोबायोलाजिकल मानकों के आधार पर निश्चित, संभावित और अन्य प्रकार के मरीजों के समूहों में बांटा गया। मरीजों के मस्तिष्क मेरू द्रव्य (सीएसएफ) नमूनों में ग्लूकोज, प्रोटीन, व्हाइट ब्लड सेल काउंट सहित कई अन्य बायोमार्कर की जांच की गई। विशेष रूप से माइकोलिक और टीबीएसए के स्तर को टैंडम मास स्पेक्ट्रोमेट्री से जांच की गई। इस तकनीक से जांच से सफलता दर 93 प्रतिशत रही।
    यह विधि पारंपरिक जांचों की तुलना में जल्दी और अधिक सटीक परिणाम देने में कारगर है। ये बायोमार्कर विशेष रूप से उन मरीजों में सर्वश्रेष्ठ विकल्प है, जिनमें परंपरागत जांचों में बीमारी की सटीक पहचान नहीं हो पाती है। जैसे-कम बैक्टीरियल लोड वाले रोगी को भी पकड़ा जा सकेगा। डॉ. मृदु सिंह ने बताया कि अध्ययन में पाए गए बायोमार्करों से संभावित, निश्चित और अन्य मेनिनजाइटिस के बीच स्पष्ट भेदभाव किया जाना संभव है। यह विधि पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक सटीकता प्रदान करती है और कुछ मामलों में बैक्टीरिया की प्रजातियों की पहचान तेजी से कर सकती है, जिससे उपचार की दिशा जल्दी निर्धारित करने में सहायता मिलेगी। इससे मृत्युदर कम होगी। डॉ. सिंह के अनुसार, ब्रेन टीबी का पता लगाने के लिए फिलहाल मुख्य परीक्षण एमआरआइ या सीटी स्कैन किया जाता है। इसके बाद रीढ़ की हड्डी से पानी (सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड) निकालने के लिए लंबर पंक्चर या स्पाइनल टैप करवाते हैं, ताकि तरल पदार्थ की जांच से बीमारी की सटकी पुष्टि हो सके।
    ब्रेन टीबी में मृत्युदर : शुरुआती चरण- 18%, मध्यम चरण- 34, आखिरी चरण- 75% तक

    ब्रेन टीबी के लक्षण
    डॉ.मृदु सिंह के अनुसार, ब्रेन टीबी के लक्षणों में सामान्य सिरदर्द, लंबे समय तक बुखार, अक्सर उल्टी-मतली और अत्यधिक थकान जैसे शुरुआती लक्षण शामिल हैं, जो धीरे-धीरे गंभीर हो सकते हैं। बीमारी बढ़ने पर गर्दन में अकड़न, मानसिक बदलाव (जैसे चिड़चिड़ापन या भ्रम), दौरे, और शरीर के अंगों का अचानक सुन्न होना या कमजोर पड़ना जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।